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Showing posts from July, 2020

संज्ञा तथा समास संबंधी प्रश्नोत्तरी

प्रश्न-1 माहेश्वर सुत्रेषु स्वर सम्बन्धी सुत्राणां संख्या अस्ति ? अ द्वौ ब त्रीणि स चत्वार:✔ द पंच   प्रश्न-2 महाभाष्योपरि प्रदीप टिकाया: रचनाकार: क: ? अ कैयट✔ ब नागेश स भट्टोजिदीक्षित द कौंडभट्ट प्रश्न-3 वर्णानां अभाव: ? अ निपात ब संयोग स विभाषा द अवसान✔   प्रश्न-4 संहिता नित्य न भवति ? अ एक:पदे ब वाक्ये✔ स धातु-उपसर्गयो: द समासे प्रश्न-5 हकारस्य यत्न: ? अ विवृत,संवार, नाद घोष✔ ब विवृत,संवार नाद अघोष स संवार, नाद घोष महाप्राण द संवृत,संवार, नाद घोष प्रश्न-6 निषेद विकल्पयो का संज्ञा भवति ? अ निपात संज्ञा ब विभाषा संज्ञा✔ स अवसान संज्ञा द एकाल संज्ञा प्रश्न-7 कस्य वर्णस्योच्चारण स्थानम् तालु विद्यते ? अ ष ब ह स श✔ द स प्रश्न-8 व्याकरणस्य आद्य: प्रवक्ता मन्यते ? अ पाणिनि ब कात्यायन स इंद्र द ब्रह्मा✔ प्रश्न-9 व्याकरणस्य द्वितीय: प्रवक्ता मन्यते ? अ शँकर ब बृहस्पति✔ स पाणिनि द कात्यायन प्रश्न-10 पाणिने: अन्य नाम् आसीत् ? अ फ़णाभृत ब आहिक: स शालंकी द शालातुरिय✔ प्रश्न-11 पतञ्जले:अन्य नाम नास्ति ? अ आहिक:✔ ब गोणिका पुत्र: स फणिभृत् द शेषावतार: प्रश्न-12 अनध्याय:भवति ? अ त्रयोदश्यांत...

अनुष्टुप छंद

श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम्। द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥ अनुष्टुप् छन्द में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में आठ वर्ण होते हैं। इस छन्द के प्रत्येक पद/चरण का छठा वर्ण गुरु होता है और पंचमाक्षर लघु होता है। प्रथम और तृतीय पाद का सातवाँ वर्ण गुरु होता है तथा दूसरे और चौथे पाद का सप्तमाक्षर लघु होता है। इस प्रकार पादों में सप्तमाक्षर क्रमश: गुरु-लघु होता रहता है - अर्थात् प्रथम पाद में गुरु, द्वितीय पाद में लघु, तृतीय पाद में गुरु और चतुर्थ पाद में लघु। प्रत्येक आठवें वर्ण के बाद यति होती है

शुकनासोपदेश,, कादंबरी के महत्वपूर्ण प्रश्न

    1. 'दातारम्' पद में प्रकृति-प्रत्यय है– (A) दा + तृच् + द्वितीया, बहु. (B) दा + अम् + प्रथमा, एक. (C) दा + तृच + द्वितीया, एक. (D) दाञ् + घञ् + प्रथमा, बहु . 2. 'वारि' शब्द का तृतीया एक. में रूप होगा– (A) वारेण (B) वारिणा (C) वारिया (D) वारिसा 3. कादम्बरी कथा का नामकरण किसके नाम पर हुआ है? (A) नायक के नाम पर (B) नायिका के नाम पर (C) दासी के नाम पर (D) शुकनास के नाम पर 4. चन्द्रापीड के एक जन्म का नाम क्या था? (A) वैशम्पायन (B) पुण्डरीक (C) कपिञ्जल (D) शूद्रक 5. चाण्डालकन्या किसके समीप आयी? (A) महाश्वेता के (B) कादम्बरी के (C) पुण्डरीक के (D) शूद्रक के 6. ​'त्रिभुवनप्रसवभूमिरिव विस्तीर्णा' विशेषता किसके लिए प्रयुक्त है? (A) विदिशा (B) उज्जयिनी (C) विन्ध्याटवी (D) हेमकूट 7. 'त्रयीमयाय त्रिगुणात्मने नम:' इस सूक्ति वाक्य में 'नम:' के योग में किस विभक्ति का प्रयोग हुआ है? (A) चतुर्थी (B) षष्ठी (C) पञ्चमी (D) प्रथमा 8. राज्याभिषेक के समय किसकी आवश्यकता होती है? (A) सेना की (B) विश्राम की (C) धन की (D) उपदेश की 9. चन्द्रापीड को किसके प्यार है? (A) मह...

शंकराचार्य आदि वेदांत दर्शन के प्रमुख आचार्य

1- आद्य शंकराचार्य– ब्रह्म-सूत्र पर सर्वप्राचीन एवं प्रामाणिक भाष्य आद्य शंकराचार्य का उपलब्ध होता है। यह शांकरभाष्य के नाम से प्रख्यात है। विश्व में भारतीय दर्शन एवं शंकराचार्य के नाम से जितनी ख्याति प्राप्त की है, उतनी न किसी आचार्य ने प्राप्त की और न ग्रन्थ ने। शंकराचार्य का जन्म 788 ई. में तथा निर्वाण 820 ई. में हुआ बताया जाता है, इनके गुरु गोविन्दपाद तथा परम गुरु गौड़पादाचार्य थे। इनके ग्रन्थों में ब्रह्मसूत्र-भाष्य (शारीरिक भाष्य), दशोपनिषद् भाष्य, गीता-भाष्य, माण्डूक्यकारिका भाष्य, विवेकचूड़ामणि, उपदेश-साहस्री आदि प्रमुख हैं। 2- भास्कराचार्य– आचार्य शंकर के समकालीन भास्कराचार्य त्रिदण्डीमत के वेदन्ती थे। ये ज्ञान एवं कर्म दोनों से मोक्ष स्वीकार करते हैं। इनके अनुसार ब्रह्म के शक्ति-विक्षेप से ही सृष्टि और स्थिति व्यापार अनवरत चलता है। इन्होंने ब्रह्मसूत्र पर एक लघु भाष्य लिखा है। 3- सर्वज्ञात्म मुनि– ये सुरेश्वराचार्य के शिष्य थे, जिन्होंने ब्रह्मसूत्र पर एक पद्यात्मक व्याख्या लिखी है, जो ‘संक्षेप-शारीरिक’ नाम से प्रसिद्ध है। 4- अद्वैतानन्द– ये रामानन्द तीर्थ के शिष्य थे, इ...

असत्कार्यवाद,, न्याय दर्शन

असत्कार्यवाद ,  कारणवाद  का  न्यायदर्शनसम्मत  सिद्धांत है। इसके अनुसार कार्य उत्पत्ति के पहले नहीं रहता। न्याय के अनुसार उपादान और निमित्त कारण अलग-अलग कार्य उत्पन्न करने की पूर्ण शक्ति नहीं है किंतु जब ये कारण मिलकर व्यापारशील होते हैं तब इनकी सम्मिलित शक्ति ऐसा कार्य उत्पन्न होता है जो इन कारणों से विलक्षण होता है। अत: कार्य सर्वथा नवीन होता है, उत्पत्ति के पहले इसका अस्तित्व नहीं होता। कारण केवल उत्पत्ति में सहायक होते हैं। सांख्यदर्शन  इसके विपरीत कार्य को उत्पत्ति के पहले कारण में स्थित मानता है, अत: उसका सिद्धांत सत्कार्यवाद कहलाता है। न्यायदर्शन, भाववादी और यथार्थवादी है। इसके अनुसार उत्पत्ति के पूर्व कार्य की स्थिति माना अनुभवविरुद्ध है। न्याय के इस सिद्धांत पर आक्षेप किया जाता है कि यदि असत् कार्य उत्पन्न होता है तो  शशश्रृंग  जैसे असत् कार्य भी उत्पन्न होने चाहिए। किंतु  न्यायमंजरी  में कहा गया है कि असत्कार्यवाद के अनुसार असत् की उत्पत्ति नहीं मानी जाती। अपितु जो उत्पन्न हुआ है उसे उत्पत्ति के पहले असत् माना जाता है।

सत्कार्यवाद,,, सांख्य दर्शन satkaryvada

सत्कार्यवाद ,  सांख्यदर्शन  का मुख्य आधार है। इस सिद्धान्त के अनुसार, बिना  कारण  के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। फलतः, इस जगत की उत्पत्ति  शून्य  से नहीं किसी मूल सत्ता से है। यह सिद्धान्त  बौद्धों  के  शून्यवाद  के विपरीत है। कार्य, अपनी उत्पत्ति के पूर्ण कारण में विद्यमान रहता है। कार्य अपने कारण का सार है। कार्य तथा कारण वस्तुतः समान प्रक्रिया के व्यक्त-अव्यक्त रूप हैं। सत्कार्यवाद के दो भेद हैं- परिणामवाद तथा विवर्तवाद।  परिणामवाद  से तात्पर्य है कि कारण वास्तविक रूप में कार्य में परिवर्तित हो जाता है। जैसे तिल तेल में, दूध दही में रूपांतरित होता है।  विवर्तवाद  के अनुसार परिवर्तन वास्तविक न होकर आभास मात्र होता है। जैसे-रस्सी में सर्प का आभास होना।

बिना कारण कार्य नहीं ,,पंचतंत्र की कहानी

2. बिना कारण कार्य नहीं हेतुरत्र भविष्यति । हर कार्य के कारण की खोज करो, अकारण कुछ भी नहीं हो सकता। एक बार मैं चौमासे में एक ब्राह्मण के घर गया था। वहाँ रहते हुए एक दिन मैंने सुना कि ब्राह्मण और ब्राह्मण-पत्नी में यह बातचीत हो रही थी : ब्राह्मण-कल सुबह कर्क-संक्रान्ति है, भिक्षा के लिए मैं दूसरे गाँव जाऊँगा। वहाँ एक ब्राह्मण सूर्यदेव की तृप्ति के लिए कुछ दान करना चाहता है। पत्नी-तुझे तो भोजन योग्य अन्न कमाना भी नहीं आता। तेरी पत्नी होकर मैंने कभी सुख नहीं भोगा, मिष्ठान नहीं खाए, वस्त्र और आभूषणों की तो बात ही क्या कहनी। ब्राह्मण-देवी! तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। अपनी इच्छा के अनुरूप धन किसी को नहीं मिलता । पेट भरने योग्य अन्न तो मैं भी ले ही आता हैं। इससे अधिक की तृष्णा का त्याग कर दो। अति तृष्णा के चक्कर में मनुष्य के माथे पर शिखा हो जाती है। ब्राह्मणी ने पूछा-यह कैसे? तब ब्राह्मण ने सूअर, शिकारी और गीदड़ की यह कथा सुनाई : 3. अति लोभ नाश का मूल अतितृष्णा न कर्त्त्या, तृष्णां नेव परित्यजेत् लोभ तो स्वाभाविक है, किन्तु अतिशय लोभ मनुष्य का सर्वनाश कर देता है। एक दिन एक शिकारी शिकार की ख...

धन सब क्लेशो की जड़,, पंचतंत्र की कहानी

1. धन सब क्लेशों की जड़ है दक्षिण देश के एक प्रान्त में महिलारोप्य नामक नगर से थोड़ी दूर महादेव जी का एक मन्दिर था। वहाँ ताम्रचूड़ नाम का भिक्षु रहता था। वह नगर से भिक्षा माँगकर भोजन कर लेता था और भिक्षा-शेष को भिक्षापात्र में रखकर खूँटों पर टाँग देता था। सुबह उसी भिक्षा-शेष में से थोड़ा-थोड़ा अन्न वह अपने नौकरों को बाँट देता था और उन नौकरों से मन्दिर की लिपाई-पुताई और सफाई कराता था। एक दिन मेरे कई जाति-भाई चूहों ने मेरे पास आकर कहा-स्वामी! वह ब्राह्मण खूँटी पर भिक्षा-शेष वाला पात्र टाँग देता है, जिससे हम उस पात्र तक नहीं पहुँच सकते। आप चाहें तो खूँटी पर टंगे पात्र तक पहुँच सकते हैं। आपकी कृपा से हमें भी प्रतिदिन उसमें से अन्न-भोजन मिल सकता है। उनकी प्रार्थना उछलकर मैं खूँटी पर टैंगे पात्र तक पहुँच गया। वहाँ से अपने साथियों को भी मैंने भरपेट अन्न दिया और स्वयं भी खूब खाया। प्रतिदिन इसी तरह मैं अपना और अपने साथियों का पेट पालता रहा। ताम्रचूड़ ब्राह्मण ने इस चोरी से बचने का एक उपाय किया। वह कहीं से बाँस का डण्डा ले आया और रात-भर खूँटी पर टंगे पात्र को खटखटाता रहता। मैं भी बाँस के पिटने क...

अधिक से अधिक मित्र बनाने चाहिए ,,पंचतंत्र की कहानी

अधिक से अधिक मित्र बनाने चाहिए दक्षिण देश के एक प्रान्त में महिलारोप्य नाम का एक नगर था। वहाँ एक विशाल वटवृक्ष की शाखाओं पर लघुपतनक नाम का कौवा रहता था एक दिन वह अपने आहार की चिन्ता में शहर की ओर चला ही था कि उसने देखा कि एक काले रंग, फटे पाँव और बिखरे बालों वाला यमदूत की तरह भयंकर व्याध उधर ही चला हा रहा है। कौवे को वृक्ष पर रहने वाले अन्य पक्षियों को भी चिन्ता थी। उन्हें व्याध के चंगुल से बचाने के लिए वह पीछे लौट पड़ा और वहाँ सब पक्षियों को सावधान कर दिया कि जब यह व्याध वृक्ष के पास भूमि पर अनाज के दाने बिखेरे, तब कोई भी पक्षी उन्हें चुगने के लालच से न जाए, उन दानों को कालकूट की तरह जहरीला समझें। कौवा अभी यह कह ही रहा था कि व्याध ने वटवृक्ष के नीचे आकर दाने बिखेर दिए और स्वयं दूर जाकर झाड़ी के पीछे छिप गया । पक्षियों ने भी लघुपतनक का उपदेश मानकर दाने नहीं चुगे। वे उन दानों को हलाहल विष की तरह मानते रहे। किन्तु इस बीच में व्याध के सौभाग्य से कबूतरों का एक दल परदेश से उड़ता हुआ वहाँ आया। इसका मुखिया चित्रग्रीव नाम का कबूतर था। लघुपतनक के बहुत समझाने पर भी वह भूमि पर बिखरे हुए उन दानों ...

मूर्खों की मित्रता विनाश करने वाली,, पंचतंत्र की कहानी

19. मूर्ख मित्र,, राजा और बंदर की कथा पण्डितोऽपि वरं शत्रुर्न मूर्खो हितकारकः । हितचिंतक मूर्ख की अपेक्षा अहितचिंतक बुद्धिमान अच्छा होता है। किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर सेवक के रूप में रहता था। वह राजा का बहुत विश्वासपात्र और भक्त था। अन्तःपुर में ही वह बेरोक-टोक जा सकता था। एक दिन राजा सो रहा था और बन्दर पंखा झल रहा था, तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठी तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार का हाथ छोड़ दिया। मक्खी तो उड़ गई, किन्तु राजा की छाती तलवार की चोट से टुकड़े हो गई। राजा मर गया।  कथा सुनाकर करटक ने कहा-इसीलिए मैं मूर्ख मित्र की अपेक्षा विद्वान शत्रु को अच्छा समझता हूँ। इधर दमनक-करटक बातचीत कर रहे थे, उधर शेर और बैल का संग्राम चल रहा था। शेर ने थोड़ी देर बाद बैल को इतना घायल कर दिया कि वह ज़मीन पर गिरकर मर गया। मित्र-हत्या के बाद पिंगलक को बड़ा पश्चात्ताप हुआ, किन्तु दमनक ने आकर पिंगलक को फिर राजनीति का उपदेश दिया। पिंगलक ने दमनक को फिर अपना प्रधानमन्त्री बना लिया। दमनक की इच्छा पूरी हुई। पिंगलक दमनक की सहायता से राज-कार्य करने लगा।

जैसे को तैसा

18. जैसे को तैसा,, महाजन और बनिए की कथा तुलां लोहसहस्रस्य यत्र खादन्ति मूषिकाः । राजंस्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं नात्र संशयः॥ जहाँ मन-भर लोहे की तराजू को चूहे खा जाएँ वहाँ की चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है। एक स्थान पर जीर्णधन नाम का बनिये का लड़का रहता था। धन की खोज में उसने परदेश जाने का विचार किया। उसके घर में विशेष सम्पत्ति तो थी नहीं, केवल एक मन-भर लोहे की तराजू थी। उसे एक महाजन के पास धरोहर रख कर वह विदेश चला गया। विदेश से वापस आने के बाद उसने महाजन से अपनी धरोहर वापसी माँगी। महाजन ने कहा-वह लोहे की तराजू तो चूहों ने खा ली। बनिया का लड़का समझ गया कि वह उसे तराजू देना नहीं चाहता।किन्तु अब उपाय कोई नहीं था। कुछ देर सोचकर उसने कहा-कोई चिन्ता नहीं। चूहों ने खा डाली तो चूहों का दोष है, तुम्हारा नहीं। तुम उसकी चिन्ता न करो। थोड़ी देर बाद उस महाजन से कहा-मित्र! नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ। तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ भेज दो, वह भी नहा आएगा।महाजन बनिये की सज्जनता से बहुत प्रभावित था, इसलिए उसने को उसके साथ नदी-स्थान के लिए भेज दिया। बनिये ने महाजन के पुत्र को वहाँ से कुछ दूर ले...

करने से पहले सोचो,, पंचतंत्र की कहानी

करने से पहले सोचो,, बगुला और सांप कथा उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तवाऽपायं च चिन्तयेत् । उपाय की चिन्ता के साथ, तज्जन्य अपाय या दुष्परिणाम की भी चिन्ता कर लेनी चाहिए। जंगल के एक बड़े वटवृक्ष की खोल में बहुत-से बगुले रहते थे। उसी वृक्ष की जड़ में एक साँप भी रहता था। वह बगुलों के छोटे-छोटे बच्चों को खा जाता था। वह बगुला सॉप द्वारा बार-बार बच्चों को खाए जाने पर बहुत दुःखी और विरक्त-सा होकर नदी के किनारे आ बैठा। उसकी आँखों में आँस भरे हुए थे। उसे इस प्रकार दुःखमग्न देखकर एक केकड़े ने पानी से निकालकर उसे कहा-मामा, क्या बात है? आज रो क्यों रहे हो? बगुले ने कहा-भेया! बात यह है कि मेरे बच्चों को साँप बार-बार खा जाता है। कुछ उपाय नहीं सूझता, किस प्रकार सॉप का नाश किया जाए।तुम्हीं कोई उपाय बताओ। केकड़े ने मन में सोचा, यह बगुला मेरा जन्मबैरी है। इसे ऐसा उपाय बताऊँगा जिससे साँप के नाश के साथ-साथ इसका भी नाश हो जाए। यहसोचकर वह बोला : मामा, एक काम करो! माँस के कुछ टुकड़े लेकर नेवले के बिल के सामने डाल दो। इसके बाद बहुत-से टुकड़े उस बिल से शुरू करके सॉप के बिल तक बिखेर दो। नेवला उन टुकड़ों को खाता-खाता स...

मित्र द्रोह का फल ,,पंचतंत्र की कहानी

धर्मबुद्धि पापबुद्धि की कथा,,मित्र-द्रोह का फल किं करोत्येव पाण्डित्यमस्थाने विनियोजितम् । अयोग्य को मिले ज्ञान की फल विपरीत ही होता है। किसी स्थान पर धर्मवुद्धि और पापवुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे।एक दिन पापबुद्धि ने सोचा कि धर्मबुद्धि की सहायता से विदेश में जाकर धन पैदा किया जाए दोनों ने देश-देशान्तरों में घूमकर प्रचुर धन पैदा किया।जब वे वापस आ रहे थे, तो गाँव के पास आकर पापबुद्धि ने सलाह दी कि इतने धन को बन्धु-बान्धवों के बीच नहीं ले जाना चाहिए। इसे देखकर ईष्ष्या होगी, लोभ होगा। किसी न किसी बहाने वे बाँटकर खाने का यत्न करेंगे। इसीलिए इस धन का बड़ा भाग ज़मीन में गाड़ देते हैं। जब जरूरत होगी लेते रहेंगे। धर्मबुद्धि यह बात मान गया। ज़मीन में गडूढा खोदकर दोनों ने अपना संचित धन वहाँ रख दिया और गाँव में चले आए । कुछ दिन बाद पापबुद्धि आधी रात को उसी स्थान पर जाकर सारा धन खोद लाया और ऊपर से मिट्टी डालकर गड्ढा भरकर चला आया । दूसरे दिन वह धर्मबुद्धि के पास गया और बोला-मित्र! मेरा परिवार बड़ा है। मुझे फिर कुछ धन की ज़रूरत पड़ गई है चलो, चलकर थोड़ा-थोड़ा और ले आएँ। धर्मबुद्धि मान गया। दोनों ने...

बंदर और चिड़िया की कथा,, पंचतंत्र की कहानी

बंदर और चिड़िया की कथा उपदेशो न दातव्यो यादृशे तादृशे जने । जिस-तिसको उपदेश देना उचित नहीं। किसी जंगल के एक घने वृक्ष की शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का एक जोड़ा रहता था। अपने घोंसले में दोनों बड़े सुख से रहते थे सर्दियों का मौसम था। उस समय एक बन्दर बर्फीली हवा और बरसात में ठिठुरता हुआ उस वृक्ष की शाखा पर आ बैठा। जाड़े के मारे उसके दाँत कटकटा रहे थे । उसेदेख चिड़िया ने कहा-अरे, तुम कौन हो? देखने में तो तुम्हारा चेहरा आदमियों का सा है; हाथ-पैर भी हैं तुम्हारे। फिर भी तुम यहाँ बैठे हो, घर बनाकर क्यों नहीं रहते ? बन्दर बोला-अरी, तुझसे चुप नहीं रह जाता? तू अपना काम कर,मेरा उपहास क्यों करती है? चिड़िया फिर भी कुछ कहती गई! वह चिढ़ गया। क्रोध में आकर उसने चिड़िया के उस घोंसले को तोड़-फोड़ डाला। करटक ने कहा-इसीलिए मैं कहता था। जिस-तिसको उपदेश नहीं देना चाहिए। किन्तु तुझपर इसका प्रभाव नहीं पड़ा। तुझे शिक्षा देना भी व्यर्थ है। बुद्धिमान को दी हुई शिक्षा का ही फल होता है। मूर्ख को दी हुई शिक्षा का फल कई बार उलटा निकल आता है, जिस तरह पापबुद्धि नाम के मूर्ख पुत्र ने विद्वता के जोश में पिता की हत्या कर दी थी...

मूर्ख को सीख ना दे,, पंचतंत्र की कहानी

14. मूर्ख को सीख ना दे,, पंचतंत्र की कहानी उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये। उपदेश से मूर्खों का क्रोध और भी भड़क उठता है, शान्त नहीं होता। किसी पर्वत के एक भाग में बन्दरों का दल रहता था। एक दिन हेमन्त ऋतु के दिनों में वहाँ इतनी बर्फ पड़ी और ऐसी हिम-वर्षा हुई कि बन्दर सर्दी के मारे ठिठुर गए। कुछ बन्दर लाल फलों को ही अग्नि-कण समझकर उन्हें फूँकें मार-मार कर सुलगाने की कोशिश करने लगे। सूचीमुख पक्षी ने तब उन्हें वृथा प्रयत्न से रोकते हुए कहा-ये आग के शोले नहीं, गुञ्जाफल हैं। इन्हें सुलगाने की व्यर्थ चेष्टा क्यों करते हो? अच्छा यह है कि कहीं गुफा-कन्दरा में चले जाओ । तभी सर्दी से रक्षा होगी। बन्दरों में एक बूढ़ा बन्दर भी था। उसने कहा-सूचीमुख इनको उपदेश न दे। ये मूर्ख हैं, तेरे उपदेश को नहीं मानेंगे, बल्कि तुझे मार डालेंगे। वह बन्दर कह ही रहा था कि एक बन्दर ने सूचीमुख को उसके पंखों से पकड़ कर झकझोर दिया। -इसीलिए मैं कहता हूँ कि मूर्ख को उपदेश देकर हम उसे शान्त नहीं करते, और भी भड़काते हैं। जिस-तिसको उपदेश देना स्वयं मूर्खता है। मूर्ख बन्दर ने उपदेश देने वाली चिड़ियों का घोंसला तोड़ दिय...

कुटिल नीति का रहस्य,, पंचतंत्र की कहानी

13. कुटिल नीति का रहस्य परस्य पीडनं कुर्वन् स्वार्थसिद्धिं च पण्डितः  गूढबुद्धिर्न लक्ष्मेत वने चतुरको यथा।॥ स्वार्थ-साधन करते हुए कपट से भी काम लेना पड़ता है। किसी जंगल में वज्रदंष्ट्र नाम का शेर रहता था। उसके दो अनुचर,चतुरक गीदड़ और क्रव्यमुख भेड़िया, हर समय उसके साथ रहते थे। एक दिन शेर ने जंगल में बैठी हुई ऊंटनी को मारा। ऊंटनी के पेट से एक छोटा-सा ऊँट का बच्चा निकला। शेर को उस बच्चे पर दया आई। घर लाकर उसने बच्चे को कहा-अब मुझसे डरने की कोई बात नहीं। मैं तुझे नहीं मारूँगा। तू जंगल में आनन्द से विहार कर। ऊँट के बच्चे के कान शंकु (कील) जैसे थे इसलिए उनका नाम शेर ने शंकुकर्ण रख दिया। वह भी शेर के अन्य अनुचरों के समान सदा शेर के साथ रहता था। जब वह बड़ा हो गया तब भी वह शेर का मित्र बना रहा। एक क्षण के लिए भी वह शेर को छोड़कर नही जाता था। एक दिन उस जंगल में एक मतवाला हाथी आ गया। उससे शेर की जबर्दस्त लड़ाई हुई। इस लड़ाई में शेर इतना घायल हो गया कि उसके लिए एक कदम आगे चलना भी भारी हो गया। अपने साथियों से उसने कहा कि तुम कोई ऐसा शिकार ले आओ जिसे मैं यहाँ बैठा-बैठा ही मार दूं। तीनों साथी श...

एक और एक ग्यारह,, पंचतंत्र की कहानी

12. एक और एक ग्यारह बहूनामप्यसाराणां समवायो हि दुर्जयः । छोटे और निर्बल भी संख्या में बहुत होकर दुर्जय हो जाते हैं। जंगल में वृक्ष की एक शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का जोड़ा रहता था।उनके अण्डे भी उसी शाखा पर बने घोंसले में थे एक दिन मतवाला हाथी वृक्ष की छाया में विश्राम करने आया। वहाँ उसने अपनी सूंड़ में पकड़कर वही शाखा तोड़ दी जिस पर चिड़ियों का पोंसला था अण्डे ज़मीन पर गिरकर टूट गए। चिड़िया अपने अण्डों के टूटने से बहुत दुःखी हो गई उसका विलाप सुनकर उसका मित्र कठफोड़ा भी वहाँ आ गया। उसने शोकातुर चिड़ा-चिड़ी को धीरज बैंधाने का बहुत यत्न किया, किन्तु उसका विलाप शान्त नहीं हुआ। चिड़िया ने कहा-यदि तू हमारा सच्चा मित्र है तो मतवाले हाथी से बदला लेने में हमारी सहायता कर। उसको मारकर ही हमारे मन को शान्ति मिलेगी। कठफोड़ ने कुछ सोचने के बाद कहा-यह काम हम दोनों का ही नहीं है। इसमें दूसरों से भी सहायता लेनी पड़ेगी। एक मक्खी मेरी मित्र है; उसकी आवाज़ बहुत सुरीली है, उसे भी बुला लेता हूँ। मक्खी ने भी जब कठफोड़े और चिड़िया की बात सुनी तो वह मतवाले हाथी को मारने में उनको सहयोग देने को तैयार हो गई। किन्तु उसन...

दूरदर्शी बनो,, पंचतंत्र की कहानी

11. दूरदर्शी बनो,, पंचतंत्र की कहानी यद् भविष्यतो विनश्यति जो होगा देखा जाएगा' कहने वाले नष्ट हो जाते हैं। एक तालाब में तीन मछलियां थी अनागत विधाता प्रत्युपन्नमती और यद्भविष्य। एक दिन मछियारों ने उन्हें देख लिया और सोचा, इस तालाब में खूब मछलियाँ हैं। आज तक कभी इसमें जाल भी नहीं डाला है, इसलिए यहाँ खूब मछलियाँ हाथ लगेंगी।-उस दिन शाम अधिक हो गई थी, खाने के लिए मछलियाँ भी पर्याप्त मिल चुकी थीं, अतः अगले दिन सुबह ही वहाँ आने का निश्चय करके वे चले गए। अनागतविधाता नाम की मछली ने उसकी बात सुनकर सब मछलियों को बुलाया और कहा-आपने उन मछियारों की बात सुन ली है। रातोंरात ही हमें यह तालाब छोड़कर दूसरे तालाब में चले जाना चाहिए। एक क्षण की भी देर करना उचित नहीं। प्रत्युत्पन्नमति ने भी उसकी बात का समर्थन किया। उसने कहा-परदेश में जाने का डर प्रायः सबको नपुंसक बना देता है। 'अपने ही कुएँ का जल पिएँगे'-यह कहकर जो लोग जन्म-भर खारा पानी पीते हैं, वे कायर होते हैं। स्वदेश का यह राग वही गाते हैं, जिनकी कोई और गति नहीं होती उन दोनों की बातें सुनकर यदूभवति नाम की मछली हैँस पड़ी। उसने कहा-किसी राह जात...

हितेषी की बात माननी चाहिए

10. हितैषी की सीख मानो सुहृदां हितकामानां न करोतीह यो वचः। सकूम इव दुरबुद्धि : काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति । हितचिन्तक मित्रों की बात पर जो ध्यान नहीं देता, वह मूर्ख नष्ट हो जाता है। एक तालाब में कम्बुग्रीव नाम का कछुआ रहता था। उसी तालाब में प्रति दिन आने वाले दो हंस, जिनका नाम संकट और विकट था, उसके मित्र थे। तीनों में इतना स्नेह था कि रोज़ शाम होने तक तीनों मिलकर बड़े प्रेम से कथालाप किया करते थे। कुछ दिन बाद वर्षा के अभाव में वह तालाब सूखने लगा। हंसों को यह देखकर कछुए से बड़ी सहानुभूति हुई। कछुए ने भी आँखों से आँसू भरकर कहा-अब यह जीवन अधिक दिन का नहीं है। पानी के बिना इस तालाब में मेरा मरण निश्चित है। तुमसे कोई उपाय बन पाए तो करो। विपत्ति में धेर्य ही काम आता है। यत्न से सब काम सिद्ध हो जाते हैं।विचार के बाद यह निश्चय किया गया कि दोनों हंस जंगल से एक बास की छरी लाएँगे। कछुआ उस छड़ी के मध्यभाग को मुख से पकड़ लेगा। हंसों का यह काम होगा कि वे दोनों ओर से छड़ी को मज़बूती से पकड़कर दूसरे तालाब के किनारे तक उड़ते हुए पहुँचेंगे ।यह निश्चय होने के बाद दोनों हैसों ने कठुए को कहा-मित्र! हम तुझे ...

टीटीहरे की कहानी,, पंचतंत्र की कहानी

9. घड़े-पत्थर का न्याय बलवन्तं रिपु दृष्ट्वा न वाऽऽमान प्रकोपयेत् शत्रु अधिक बलशाली हो तो क्रोध प्रकट न करे, शान्त हो जाए। समुद्र तट के एक भाग में एक टिटिहरी का जोड़ा रहता था । अण्डे देने से पहले टिटिहरी ने अपने पति को किसी सुरक्षित प्रदेश की खोज करने के लिए कहा। टिटिहरे ने कहा-यहाँ सभी स्थान पर्याप्त सुरक्षित हैं, तू चिन्ता न कर। टिटिहरी-समुद्र में जब ज्वार आता है तो उसकी लहरें मतवाले हाथी को भी खींचकर ले जाती हैं, इसलिए हमें इन लहरों से दूर कोई स्थान देख रखना चाहिए। टिटिहरा-समुद्र इतना दुस्साहसी नहीं है कि वह मेरी सन्तान को हानि पहुँचाए। वह मुझसे डरता है। इसलिए तू निःशंक होकर यहीं तट पर अण्डे दे। समुद्र ने टिटिहरी की ये बातें सुन लीं। उसने सोचा, यह टिटिहरा बहुत अभिमानी है। आकाश की ओर टाँगे करके भी इसीलिए सोता है कि इन टॉगो पर गिरते हुए आकाश को थाम लेगा इसका अभिमान भंग होना चाहिए। यह सोचकर उसने ज्वार आने पर टिटिहरी के अण्डों को लहरों में बहा दिया। टिटिहरी जब दूसरे दिन आई तो अण्डों को बहता देखकर रोती-बिलखती टिटिहरे से बोली-मूर्ख! मैंने पहले ही कहा था कि समुद्र की लहरें इन्हें बहा ले जा...

समझदारी से चले,, पंचतंत्र की कहानी

सेवाधर्मः परमगहनो... सेवाधर्म बड़ा कठिन धर्म है। एक जंगल में मदोत्कट नाम का शेर रहता था। उसके नौकर-चाकरों में कौवा, गीदड़, बाघ, चीता आदि अनेक पशु थे। एक दिन वन में घूमते-घूमते एक ऊंट वहाँ आ गया। शेर ने ऊँट को देखकर अपने नीकरों से पूछा-यह कौन-सा पशु कौवे ने शेर के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा-स्वामी, यह पशु ग्राम्य है और आपका भोज्य है। आप इसे खाकर भूख मिटा सकते हैं। शेर ने कहा-नहीं, यह हमारा अतिथि है; घर आए को मारना उचित नहीं। शत्रु भी अगर घर आए तो उसे नहीं मारना चाहिए। फिर, यह तो हम पर विश्वास करके हमारे घर आया है। इसे मारना पाप है। इसे अभय-दान देकर मेरे पास लाओ। मैं इससे वन में आने का प्रयोजन पूछूँगा। शेर की आज्ञा सुनकर अन्य पशु ऊँट को, जिसका नाम क्रथनक था, शेर के दरबार में लाए। ऊँट ने अपनी दुःख-भरी कहानी सुनाते हुए बतलाया कि वह अपने साथियों से बिछुड़कर जंगल में अकेला रह गया है। शेर ने उसे धीरज बँधाते हुए कहा-अब तुझे ग्राम में जाकर भार ढोने की कोई आवश्यकता नहीं है। जंगल में रहकर हरी-भरी घास से सानन्द पेट भरो और स्वतन्त्रतापूर्वक खेलो-कूदो। शेर का आश्वासन मिलने पर ऊंट जंगल में आनन्द से...

परायो की संगति का फल,,पंचतंत्र की कहानी

कुसंग का फल ,,पंचतंत्र की कहानी

. कुसंग का फल न हविज्ञातशीलस्य प्रदातव्यः प्रतिश्रयः । अज्ञात या विरोधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को आश्रय नहीं देना चाहिए। एक राजा के शयनगृह में शय्या पर बिछी सफेद चादरों के बीच एक मन्दविसर्पिणी सफेद जूँ रहती थी। एक दिन इधर-उधर घूमता हुआ एक खटमल वहाँ आ गया उस खटमल का नाम था अग्निमुख।अग्निमुख को देखकर दुःखी जूँ ने कहा -हे अग्निमुख! तू यहाँ अनुचित स्थान पर आ गया है। इससे पूर्व कि कोई आकर तुझे देखे, यहाँ से भाग जा। खटमल बोला-भगवती! घर आए हुए दुष्ट व्यक्ति का भी इतना अनादर नहीं किया जाता, जितना तू मेरा कर रही है। उससे भी कुशलक्षेम पृछा जाता है। घर बनाकर बैठने वालों का यही धर्म है। मैंने आज तक अनेक प्रकार का कटु-तिक्त, कषाय-अम्ल रस का खून पिया है; केवल मीठा खून नहीं पिया। आज इस राजा के मीटे खून का स्वाद लेना चाहता हूँ।तू तो रोज़ ही मीठा खून पीती है। एक दिन मुझे भी उसका स्वाद लेने दे । जूँ बोली-अग्निमुख! मैं राजा के सो जाने के बाद उसका खून हूं। तू बड़ा चंचल है, कहीं मुझसे पहले ही तूने खून पीना शुरू कर दिया तो दोनों ही मारे जाएँगे हाँ, मेरे पीछे रक्तपान करने की प्रतिज्ञा करे तो पीती एक रात भले ही...

अक्ल बड़ी या भैंस,, पंचतंत्र की कहानी

3. अक्ल बड़ी या भैंस उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः उपाय द्वारा जो काम हो जाता है वह पराक्रम से नहीं हो पाता एकदम स्थान पर वटवृक्ष की एक बड़ी खोल में एक कौवा-कौवी रहते थे। उसी खोल के पास एक काला सॉप भी रहता था। वह सॉप कौवी के नन्हे-नन्हे बच्चों को उनके पंख निकलने से पहले ही खा जाता था। दोनों इससे बहुत दुःखी थे। अन्त में दोनों ने अपनी दुःख-भरी कथा उस वृक्ष के नीचे रहने वाले एक गीदड़ को सुनाई, और उससे यह भी पूछा कि अबक्या किया जाए। सॉप वाले घर में रहना प्राणघातक है। गीदड़ ने कहा-इसका उपाय चतुराई से ही हो सकता है। शत्रु परउपाय द्वारा विजय पाना अधिक आसान है। एक वार एक बगुला बहुत सी उत्तम, मध्यम, अधम मछलियों को खाकर प्रलोभनवश एक करकट के हाथों उपाय से ही मारा गया था। दोनों ने पूछा-कैसे?तब गीदड़ ने कहा-सुनो : 4. बगुला भगत उपायेन जयो यादृग्रिपोस्तादृङू न हेतिभिः । उपाय से शत्रु को जीतो, हथियार से नहीं ।एक जंगल में बहत-सी मछलियों से भरा एक तालाब था। एक बगुला वहाँ दिन-प्रतिदिन मछलियों को खाने के लिए आता था, किन्तु वृद्ध होने के कारण मछलियों को पकड़ नहीं पाता था । इस तरह भूख से व्याकुल ह...

ढोल की पोल ,,पंचतंत्र की कहानी

 शब्दमात्रात् न भीतव्यम् । शब्द-मात्र से डरना उचित नहीं। गोमायु नाम का गीदड़ एक बार भूखा-प्यासा जंगल में घूम रहा था।घूमते-घूमते वह एक युद्धभूमि में पहुँच गया। वहाँ दो सेनाओं में युद्ध होकर शान्त हो गया था। किन्तु एक ढोल अभी तक वहीं पड़ा था। उस ढोल पर इधर-उधर की बेलों की शाखाएँ हवा से हिलती हुई प्रहार करती थीं।उस प्रहार से ढोल से बड़े ज़ोर की आवाज़ होती थी।आवाज़ सुनकर गोमायु बहुत डर गया। उसने सोचा, इससे पूर्व कि यह भयानक शब्दवाला जानवर मुझे देखे, मैं यहाँ से भाग जाता हूँ-किन्तु दूसरे ही क्षण उसे याद आया कि भय या आनन्द के उद्वेग में हमें सहसा कोई काम नहीं करना चाहिए। पहले भय के कारण की खोज करनी चाहिए। यह सोचकर वह धीरे-धीरे उधर चल पड़ा, जिधर से शब्द आ रहा था। शब्द के बहुत निकट पहुँचा तो ढोल को देखा। ढोल पर बेलों की शाखाएँ चोट कर रही थीं। गोमायु ने स्वयं भी उस पर हाथ मारने शुरू कर दिए। ढोल और भी जोर से बज उठा। गीदड़ ने सोचा, यह जानवर तो बहुत सीधा-सादा मालूम होता है।इसका शरीर भी बहुत बड़ा है। मांसल भी है इसे खाने से बहुत दिनों की भूख मिट जाएगी। इसमें च्बी, मांस, रक्त खूब होगा। यह सोचकर ...

अनाधिकार चेष्टा,, पंचतंत्र की कहानी

अव्यापारेषु व्यापारं यो नरः कर्तुमिच्छति। स एव निघनं याति कीलोत्पाटीव वानरः॥ दूसरे के काम में हस्तक्षेप करना मूर्खता है। एक गाँव के पास, जंगल की सीमा पर, मन्दिर बन रहा था। वहाँ के कारीगर दोपहर के समय भोजन के लिए गाँव में आ जाते थे।एक दिन जब वे गाँव में आए हुए थे तो बन्दरों का एक दल इधर-उधर घूमता हुआ वहीं आ गया जहाँ कारीगरों का काम चल रहा था। कारीगर उस समय वहां नहीं थे। बन्दरों ने इधर-उधर उछलना और खेलना शुरू कर दिया।वहीं एक कारीगर शहतीर को आधा चीरने के बाद उसमें कील फंसाकर गया था। एक बन्दर को यह कौतूहल हुआ कि यह कील यहां क्यों फँसी हैं। तब आधे चिरे हुए शहतीर पर बैठकर वह अपने दोनों हाथों से कील को बाहर खींचने लगा। कील बहुत मज़बूती से वहां गड़ी थी-इसलिए बाहर नहीं निकली। लेकिन बन्दर भी हठी था, वह पूरे बल से कील निकालनेमें जूझ गया।अन्त में भारी झटके के साथ वह कील निकल आई, किन्तु उसके निकलते ही बन्दर का पिछला भाग शहतीर के चिरे हुए दो भागों के बीच में आकर पिचक गया। अभागा बन्दर वहीं तड़प-तड़पकर मर गया।-इसीलिए मैं कहता हूँ कि हमें दूसरों के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हमें शेर के भोजन का...