ईशावास्योपनिषद 18 मंत्र
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॐ वह ( परब्रह्म) पूर्ण है और यह (कार्यब्रम्हा) भी पूर्ण है, क्योंकी पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है । तथा (प्रलयकालमें ) पूर्ण ( कार्यब्रम्हा) का पूर्णत्व लेकर ( अपने में लीन करके ) पूर्ण (परब्रह्म) ही बचा रहता है । त्रिविध ताप की शांति हो। 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 ॐ ईशा वास्यमिदम् सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।। 1 ।। १. जगत में जो कुछ स्थावर - जंगम संसार है , वह सब इश्वर के द्वारा आच्छादित है ( अर्थात उसे भगवत स्वरूप अनुभव करना चाहिये)। उसे त्याग भाव से तू अपना पालन कर ; किसी के धन की इच्छा ना कर । 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतम् समाः। एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥2॥ २. इस लोक में कर्म करते हुए ही सो बर्ष जीने की इच्छा कर...
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