धन सब क्लेशो की जड़,, पंचतंत्र की कहानी
1. धन सब क्लेशों की जड़ है
दक्षिण देश के एक प्रान्त में महिलारोप्य नामक नगर से थोड़ी दूर महादेव जी का एक मन्दिर था। वहाँ ताम्रचूड़ नाम का भिक्षु रहता था। वह नगर से भिक्षा माँगकर भोजन कर लेता था और भिक्षा-शेष को भिक्षापात्र में रखकर खूँटों पर टाँग देता था। सुबह उसी भिक्षा-शेष में से थोड़ा-थोड़ा अन्न वह अपने नौकरों को बाँट देता था और उन नौकरों से मन्दिर की लिपाई-पुताई और सफाई कराता था।
एक दिन मेरे कई जाति-भाई चूहों ने मेरे पास आकर कहा-स्वामी! वह ब्राह्मण खूँटी पर भिक्षा-शेष वाला पात्र टाँग देता है, जिससे हम उस पात्र तक नहीं पहुँच सकते। आप चाहें तो खूँटी पर टंगे पात्र तक पहुँच सकते हैं। आपकी कृपा से हमें भी प्रतिदिन उसमें से अन्न-भोजन मिल सकता
है। उनकी प्रार्थना उछलकर मैं खूँटी पर टैंगे पात्र तक पहुँच गया। वहाँ से अपने साथियों को भी मैंने भरपेट अन्न दिया और स्वयं भी खूब खाया। प्रतिदिन इसी तरह मैं अपना और अपने साथियों का पेट पालता रहा।
ताम्रचूड़ ब्राह्मण ने इस चोरी से बचने का एक उपाय किया। वह कहीं से बाँस का डण्डा ले आया और रात-भर खूँटी पर टंगे पात्र को खटखटाता रहता। मैं भी बाँस के पिटने के डर से पात्र में नहीं जाता था सारी रात
यही संघर्ष चलता रहता।
कुछ दिन बाद उस मन्दिर में बृहत्स्फिक नाम का एक संन्यासी अतिथि बनकर आया। ताम्रचूड़ ने उसका बहुत सत्कार किया। रात के समय दोनों में देर तक धर्म-चर्चा भी होती रही। किन्तु ताम्रचूड़ ने उस चर्चा के बीच भी फटे बाँस से भिक्षा-पात्र को खटखटाने का कार्यक्रम चालू रखा। आगन्तुक संन्यासी को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने समझा कि ताम्रचूड़ उनकी बात को पूरे ध्यान से नहीं सुन रहा। इसे उसने अपमान समझा। इसलिए अत्यन्त क्रोधाविष्ट होकर उसने कहा-ताम्रचूड़! तू मेरे साथ मैत्री नहीं निभा रहा। मुझसे पूरे मन से बात भी नहीं करता। मैं भी इसी समय तेरा मन्दिर छोड़कर दूसरी जगह चला जाता हूँ।
ताम्रचूड़ ने डरते हुए उत्तर दिया-मित्र, तू मेरा अनन्य मित्र हैं। मेरी व्यग्रता का कारण दूसरा है; वह यह कि वह दुष्ट चूहा खूँटी पर टं्ग भिक्षा पात्र में से भी भोज्य वस्तुओं को चुराकर खा जाता है। चूहे को डराने के लिए ही मैं भिक्षा-पात्र को खटका रहा हूँ। इस चूहे ने तो उछलने में बिल्ली
और बन्दर को भी मात कर दिया है।
बृहत्स्फिक-उस चूहे का बिल तुझे मालूम है?
ताम्रचूड़-नहीं, मैं नहीं जानता।
बृहत्स्फिक-हो न हो उसका बिल भूमि में गड़े किसी खज़़ाने के ऊपर है, तभी उसकी गर्मी से यह इतना उछलता है। कोई भी काम अकारण नहीं होता। कूटे हुए तिलों को यदि कोई बिना कूटे तिलों के भाव बेचने लगे
तो भी उसका कारण होता है।
ताम्रचूड़-कूटे हुए तिलों का उदाहरण आपने कैसे दिया?
बृहत्स्फिक ने तब कूटे हुए तिलों की बिक्री की यह कहानी सुनाई :
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