जैसे को तैसा
18. जैसे को तैसा,, महाजन और बनिए की कथा
तुलां लोहसहस्रस्य यत्र खादन्ति मूषिकाः ।
राजंस्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं नात्र संशयः॥
जहाँ मन-भर लोहे की तराजू को चूहे खा जाएँ
वहाँ की चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है।
एक स्थान पर जीर्णधन नाम का बनिये का लड़का रहता था। धन की खोज में उसने परदेश जाने का विचार किया। उसके घर में विशेष सम्पत्ति तो थी नहीं, केवल एक मन-भर लोहे की तराजू थी। उसे एक महाजन के पास धरोहर रख कर वह विदेश चला गया। विदेश से वापस आने के बाद उसने महाजन से अपनी धरोहर वापसी माँगी। महाजन ने कहा-वह लोहे की तराजू तो चूहों ने खा ली।
बनिया का लड़का समझ गया कि वह उसे तराजू देना नहीं चाहता।किन्तु अब उपाय कोई नहीं था। कुछ देर सोचकर उसने कहा-कोई चिन्ता नहीं। चूहों ने खा डाली तो चूहों का दोष है, तुम्हारा नहीं। तुम उसकी चिन्ता न करो।
थोड़ी देर बाद उस महाजन से कहा-मित्र! नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ। तुम अपने पुत्र धनदेव को मेरे साथ भेज दो, वह भी नहा आएगा।महाजन बनिये की सज्जनता से बहुत प्रभावित था, इसलिए उसने को उसके साथ नदी-स्थान के लिए भेज दिया।
बनिये ने महाजन के पुत्र को वहाँ से कुछ दूर ले जाकर एक गुफा में बन्द कर दिया। गुफा के द्वार पर बड़ी-सी शिला रख दी, जिससे वह निकलकर भाग न पाए। फिर जब वह महाजन के घर आया तो महाजन ने पूछा-
मेरा लड़का भी तो तेरे साथ स्नान के लिए गया था, वह कहाँ है।बनिये ने कहा-उसे चील उठाकर ले गई।
महाजन-यह कैसे हो सकता है? कभी चील भी इतने बड़े बच्चे को उठा कर ले जा सकती है?
बनिया-भले आदमी! यदि चील बच्चे को उठाकर नहीं ले जा सकती,तो चूहे भी मन-भर भारी तराजू को नहीं खा सकते। तुझे बच्चा चाहिए तो तराजू निकालकर दे दे।
इसी तरह विवाद करते हुए दोनों राजमहल में पहुँचे। वहाँ न्यायाधिकारी के सामने महाजन ने अपनी दुःख-कथा सुनाते हुए कहा कि इस बनिये ने मेरा लड़का चुरा लिया है। धर्माधिकारी ने बनिये से कहा-इसका लड़का इसे दे दो।
बनिया बोला-महाराज! उसे तो चील उठा ले गई है।
धर्माधिकारी-क्या कभी चील भी बच्चे को उठा ले जा सकती है?
बनिया-प्रभु! यदि मन-भर भारी तराजू को चूहे खा सकते हैं, तो चील भी बच्चे को उठाकर ले जा सकती है।
धर्माधिकारी के प्रश्न पर बनिए ने सब वृत्तान्त कह सुनाया।
कहानी कहने के बाद दमनक को करटक ने फिर कहा-तूने भी असम्भव को सम्भव बनाने का यल् किया है। तूने स्वामी का हितचिंतक होके अहित कर दिया है। ऐसे हितचिंतक मूर्ख मित्रों की अपेक्षा अहितचिंतक बैरी अच्छे होते हैं। हिंतचिंतक मूर्ख बन्दर ने हितसम्पादन करते-करते राजा का खून ही कर दिया था।
दमनक ने पूछा-कैसे?
करटक ने तब बन्दर और राजा की यह कहानी सुनाई :
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