1. कोशिका के अध्ययन के विज्ञान को क्या कहते हैं? 2. संविधान सभा के लिए चुनी गयी सभी महिलाएं किस पार्टी से संबद्ध थीं? 3. यदि कोई वस्तु प्रकाश के सभी अवयव रंगों का पूर्णतः अवशोषण कर ले, तो वह कैसी दिखाई देगी? 4. ब्रिटिश सरकार ने भारत विभाजन की घोषणा कब की? 5. द्रोणाचार्य पुरस्कार किस क्षेत्र से संबंधित है? 6. किस शहर को विश्व की इस्पात राजधानी कहा जाता है? 7. विश्व में सर्वप्रथम लिखित संविधान कहाँ लागू हुआ? 8. प्रत्येक प्राइवेट कम्पनी को अपने नाम के अंत में क्या लिखना जरूरी होता है? 9. किसे 'सीमांत गाँधी' की उपाधि प्रदान की गई? 10. कौन-सा पुरस्कार गणित के क्षेत्र में नोबेल तुल्य पुरस्कार के नाम से प्रसिद्ध है? 11. वायु में थोड़ी देर रखने पर किस धातु के ऊपर हरे रंग के बेसिक कार्बोनेट की परत जम जाती है? 12. बी. आर. अम्बेडकर का संविधान सभा में निर्वाचन कहाँ से हुआ था? 13. कोशिका विभाजन की क्रिया कहाँ आरंभ होती है? 14. बाध की गुफा का निर्माण किस काल में करवाया गया? 15. ऑस्कर पुरस्कार को अन्य किस नाम से भी जाना जाता है? 16. किस देश में 'ट्यूलिप' की खेती सर्वाधिक प्रसिद्ध है?...
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Showing posts from September, 2020
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1. विद्युत केतली विद्युत धारा के किस प्रकार के प्रभाव की युक्ति है? 2. राज्यसभा का सदस्य होने के लिए न्यूनतम उम्र कितना वर्ष निर्धारित है? 3. नाइट्रोजन का सबसे प्रमुख व्यापारिक उपयोग किसके उत्पादन में होता है? 4. पंजाब में भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक कौन थे? 5. 'राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा संस्थान' कहाँ स्थित है? 6. समभूकम्प रेखा किस प्रकार का होता है? 7. हरित रसायनों की उत्पत्ति सर्वप्रथम किस वर्ष की गई? 8. इंडियन ऑयल कारपोरेशन द्वारा हरियाणा के किस जिले में एक रिफाइनरी की स्थापना की गयी? 9. स्थायी बंदोबस्त किससे किया गया? 10. 'बाल रक्षा दिवस' कब मनाया जाता है? 11. दलहनी फसलों में कौन-सा जीवाणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है? 12. राज्यसभा की गणपूर्ति उसके कितने सदस्य संख्या से होती है? 13. प्रतिदीप्ति ट्यूबलाइट में निम्न दाब पर किसकी वाष्प होती है? 14. प्रथम आंग्ल-सिख ( 1845-46 ) युद्ध किस गवर्नर जनरल के शासन काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी? 15. 'समग्र क्रांति दिवस' कब मनाया जाता है? 16. देमबंद किस प्रकार का ज्वालामुखी है? 17. एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्री...
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1. नाइट्रोजन यौगिकों का नाइट्रोजन में परिवर्तन क्या कहलाता है? 2. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते किस माध्यम से दिए जाते हैं? 3. किसी जानवर के दूध देने की क्षमता क्या कहलाती है? 4. सर्वप्रथम स्वास्तिक चिह्न के अवशेष किस सभ्यता से प्राप्त हुए हैं? 5. 'गरीब दिवस' कब मनाया जाता है? 6. किलिमंजारो किस प्रकार का ज्वालामुखी है? 7. अमेरिका ने दास-व्यापार पर कब प्रतिबंध लगाया? 8. भारत में औद्योगिक मूल-सृजन किस राज्य में सर्वाधिक है? 9. ऋग्वेद के तीसरे प्रधान देवता कौन थे? 10. थल सेना के कमीशण्ड अधिकारियों में सर्वोच्च पद कौन-सा है? 11. सूर्य में ऊर्जा कैसे उत्पन्न होती है? 12. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को प्रतिमाह कितना वेतन मिलता है? 13. किसे 'भविष्य का ईंधन' कहा जाता है? 14. राजा की उत्पत्ति का प्रथम साक्ष्य किस ग्रंथ में मिलता है? 15. नौ सेना का मुख्यालय कहाँ स्थित है? 16. विश्व का सबसे अधिक लौंग उत्पादक देश कौन-सा है? 17. पोटैशियम अल्पता की कमी से कौन-सा रक्तचाप होता है? 18. भारत में प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादकता में सर्वोच्च दो राज्य कौन-कौन ह...
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1. किस पादप को 'शाकीय भारतीय डॉक्टर' कहा जाता है? 2. सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों को प्रतिमाह कितना वेतन मिलता है? 3. हड़प्पा सभ्यता की आयताकार मुहरें सामान्यतः किससे बनी हैं? 4. 'सैय्यद उस सलातीन' उपाधि किसने धारण की? 5. वायु सेना का मुख्यालय कहाँ स्थित है? 6. रबड़ का कृषि के अंतर्गत सर्वाधिक क्षेत्रफल किस देश का है? 7. 1857 ई. में नाना साहेब ने किस स्थान पर विद्रोह की कमान संभाली थी? 8. भूमि का स्वामित्व धारण करने की अधिकतम सीमा क्या कहलाती है? 9. सल्तनकालीन सैन्य व्यवस्था का आधार मंगोल सैन्य व्यवस्था की कौन-सी प्रणाली थी? 10. भारत के किस राष्ट्रपति ने भारत की धर्म निरपेक्षता को स्थिरतापूर्वक सर्व धर्म समभाव कहा? 11. नाभिक का आकार कितना होता है? 12. कौन-सा न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय भी है? 13. हाइड्रोजन की खोज किसने की? 14. 'भारत ट्रेड यूनियन फेडरेशन' की स्थापना किसने की? 15. 'तोराह' किस समुदाय का पवित्र ग्रंथ है? 16. किस किस्म के कपास को 'भारतीय कपास' कहते हैं? 17. विश्व की कौन-सी नदी सर्वाधिक प्रदूषित नदी है? 18. क...
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1. किसने बताया कि प्रत्येक द्रव्यमान ऊर्जा के समतुल्य है? 2. राजभाषा आयोग के प्रथम अध्यक्ष कौन थे? 3. प्रोड्यूशर गैस और जल गैस के ईंधन के रूप में किसका प्रयोग होता है? 4. पूर्णतः केन्द्र के नियंत्रण में रहने वाली भूमि क्या कहलाती थी? 5. वह कौन-सा देश है, जिसने पुनः 12 वर्षों के अन्तराल के पश्चात् यूनेस्को की सदस्यता ग्रहण की? 6. विश्व में थोरियम का सबसे बड़ा संचित भंडार किस देश में है? 7. एक वयस्क में रक्त का औसत आयतन कितना होता है? 8. किस भारतीय राज्य का वित्तीय लेन-देन भारतीय रिवर्ज बैंक के माध्यम से नहीं होता है? 9. किसने अपनी राजधानी गुलबर्ग से हटाकर बीदर में स्थापित की? 10. 'ऑकलैंड' किस देश का प्रसिद्ध शहर है? 11. 'बसरा' किसकी नस्ल है? 12. राजभाषा विभाग किस मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है? 13. जैन धर्म का सबसे बड़ा केन्द्र कौन-सा नगर था? 14. शिहाबुद्दीन ने बीदर का नया नाम क्या रखा? 15. एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा द्वीप कौन-सा है? 16. भारत में थोरियम का सबसे बड़ा संचित भंडार किस राज्य में है? 17. जहाँगीर के मकबरा का निर्माण किसने करवाया था? 18. भारतीय रिवर्ज बैंक...
भारतीय स्थापत्य कला और निर्माणकर्ता
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🏵️ महत्वपूर्ण भारतीय स्थापत्य कला और निर्माणकर्ता 🏵️ प्रयाग स्तम्भ लेख > प्रयाग > समुद्रगुप्त जूनागढ अभिलेख > जूनागढ़ > स्कन्दगुप्त रानी का अभिलेख > कौशाम्बी > अशोक सुदर्शन झील > काठियावाड़ > मौर्य वंश गिरनार अभिलेख > रूद्रदामन प्रथम अजंता-एलोरा गुफाएं > औरंगाबाद, महाराष्ट्र, > गुप्त शासकों बाघ की गुफा > ग्ववालियर > गुुुप्त शासक एलीफेंटा की गुफा > मुंबई, महाराष्ट्र, > राष्ट्रकूट शासकों सूर्य मंदिर कोणार्क > ओडिशा > नरसिंह देव -1 साँची का स्तूप > रायसेेन, मध्यप्रदेश > अशोक जगन्नाथ मंदिर > पुरी, ओडिशा > अनन्तवर्मन गंग 🌼मध्यकालीन स्थापत्य कला और निर्माणकर्ता🌼 कुतुब मीनार > दिल्ली, > कुतुबुद्दीन ऐबक स्वर्ण मंदिर > अमृतसर, पंजाब, > गुरु रामदास ताजमहल > आगरा,उत्तर प्रदेश, > शाहजहां अकबर की समाधि > सिकंदरा, उत्तर प्रदेश, > अकबर बीबी का मकबरा > औरंगाबाद, महाराष्ट्र, > औरंगजेब ...
चार युगों के बारे मे जाने
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युग हिंदू सभ्यता के अनुसार पुराणों में चार युगों के बारे में बताया गया है। 1. सतयुग 2. त्रेता युग 3. द्वापर युग 4. कलयुग इसमें हर युग को युग से खराब बताया गया है। कहा गया है कि जब एक युग के बाद दूसरा युग आरंभ होता है, नैतिक मूल्यों और सामाजिक मानदंडों का पतन हो जाता है। इतिहास में युगों के काल, स्थान का विशेष महत्व किया गया है। युग अवतार जीवों का विकास 1. सतयुग मत्स्य अवतार मछली : जलीय जीव कूर्म अवतार कछुआ : उभयचर वराह अवतार सूअर : थल का पशु नरसिंह अवतार अर्ध्दमानव : पशु व मानव के बीच का जीव 2. त्रेतायुग वामन अवतार बौना : लघु मानव परशुराम अवतार शस्त्र...
रस, रस के प्रकार
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रस कविता के पढने और नाटक को देखने से पाठक और श्रोता को जिस आन्नद की अनुभूति होती है, उसे ही रस कहा जाता है। रस से पूर्ण वाक्य ही काव्य कहलाता है। रस को ही काव्य की आत्मा कहते है। भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र मे लिखा है- “विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति” अर्थात विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से रस बनता है। इसके के मुख्य तत्व निम्न है- १. स्थायी भाव २. विभाव ३. अनुभाव ४. संचारी भाव स्थायी भाव- मनुष्य के हृदय मे कुछ भाव स्थायी रूप से रहते है, इन्हे ही स्थायी भाव कहा जाता है। ये मुख्यतः 9 होते है। रति – श्रंगार हास – हास्य शोक – करूण उत्साह – वीर क्रोध – रौद्र भय – भयानक जुगुत्सा – वीभत्स विस्मय – अद्भुत निर्वेद – शान्त विभाव-🌺 रसों को उद्दीप्त या उदित करने वाले तत्वो को विभाव कहते है। इसके तीन भेद है- आलम्बन, उद्दीपन, आश्रय । अनुभाव –🌺 मन के भाव को व्यकत करने वाली शारीरिक या मानसिक क्रिया को अनुभाव कहते है। संचारी भाव –🌺 वे भाव जो मन मे अल्प काल के लिए आकर चले जाते है , संचारी भाव कहलाते है। स्थायी भाव को पूर्ण करके क्षण भर ...
शब्द परिभाषा तथा प्रकार
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शब्द🌺 दो वर्णो के मेल से बनने वाले स्वतन्त्र और सार्थक ध्वनि को शब्द कहते है। भाषाविदो के अनुसार अर्थ के लिए यह भाषा की सबसे छोटी स्वतन्त्र इकाई है। शब्द के भेद मुख्य रूप से चार आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है- 1. रचना के आधार पर 2. अर्थ के आधार पर 3. उत्पत्ति के आधार पर 4. रूपान्तर के आधार 1. रचना के आधार पर- रचना के आधार पर तीन प्रकार है- १. रूढ़ २.यौगिक ३. योगरूढ़ १. रूढ़ – जिनका कोई खण्ड सार्थक नही होता है, लेकिन वे परम्परागत रूप से विशेष अर्थ प्रदान करते है। रूढ कहलाते है। जैसे- पानी, हाथी, घोड़ा आदि। २. यौगिक- दो सार्थक खण्डो से मिलकर बना होता है, यौगिक कहलाते है। जैसे- विद्यालय – विद्या + आलय रामायण – राम + अयण ३. योगरूढ़- वैसे शब्द जो यौगिक होते है, पर अपना सामान्य अर्थ त्याग कर विशेष अर्थ ग्रहण कर लेते है। योगरूढ़ कहलाते है। जैसे- लम्बोदर – गणेश दिनकर- सूर्य ...
🌺 संस्कृत की लिपि 🌺
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🌺 संस्कृत की लिपि 🌺 मोहनजोदडो और हडप्पा में जो प्राचीनतम सामप्री प्राप्त हुई उसमें कुछ लेख भी हैं। ये ऐसी लिपि में हैं जो ब्राह्मी या खरोष्ट्री (जो भारत की प्राचीनतम लिपियां मानी गई. हैं) से मेल नहीं खाती। उस लिपि का वाचन करने का प्रयास कुछ विद्वानों ने किया, परंतु उनके वाचन में एकवाक्यता न होने के कारण, वह लिपि अभी तक अवाचित ही मानी जाती है। अजमेर जिले के बडली या बर्ली गांव में और नेपाल की तराई में पिप्रावा नामक स्थान में दो छोटे छोटे शिलालेख मिले हैं। उनके अक्षर पढे गए हैं, परंतु जिस लिपि में वे लिखे गए है वह सम्राट अशोक से पूर्वकालीन मानी गई है। वैदिक वाङ्मय, त्रिपिटक साहित्य, जैन ग्रंथ, पाणिनि की अष्टाध्यायी इत्यादि प्राचीन प्रमाणों से प्राचीन भारत की लेखनकला का अस्तित्व प्रतीत होता है और उन प्रमाणों से भारत को लिपिज्ञान पाश्चात्य या चीनी सभ्यता के संपर्क से प्राप्त हुआ इस प्रकार के यूरोपीय विद्वानों के मत का खंडन होता है। जैनों के पन्नवणासूत्र में और समवायंग सूत्र में 18 लिपियों के नाम मिलते हैं। बौद्धों के ललितविस्तर में 64 लिपियों के नाम आए हैं, जिनमें ब्राह्मी और खरोष्ट्...
संस्कृत भाषा का समपूर्ण इतिहास,,
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संस्कृत भाषा संस्कृत शब्द का प्रयोग अनेकविध अर्थों में संस्कृत साहित्य में किया गया है। उन सभी प्रयोगों में सुशोभित करना, अलंकृत करना, पवित्र करना, प्रशिक्षित करना, सतेज करना, निर्दोष करना, इत्यादि भाव व्यक्त होते हैं। जब किसी भाषा को संस्कृत विशेषण लगाया जाता है, तब यह अर्थ माना जाता है कि वह भाषा अर्थात् उस भाषा के बहुत से शब्द, निश्चित अर्थ व्यक्त करने की दृष्टि से भाषा शास्त्रीय पद्धति के अनुसार विवेचन कर, निर्दोष किए गए हैं। उन शब्दों में स्वर, व्यंजन, हस्व, दीर्घ इत्यादि किसी प्रकार की विकृतता सदोषता बाकी नहीं रही। बहुतांश शब्दों का निरुक्ति व्युत्पत्ति आदि दृष्टि से पूर्णतया संशोधन करने के कारण, संपूर्ण भाषा में जो परिपूर्णता, परिपक्वता या विशुद्धता निर्माण हुई, उसी कारण भारतीय मनीषियों ने अपनी संस्कापूत भाषा की स्तुति, “दैवी वाक्' (संस्कृतं नाम दैवी वाक्) (काव्यादर्श- 1-33) इस अनन्य साधारण विशेषण से की। देवभाषा, अमरभाषा, गीर्वाणवाणी, अमृतवाणी, सुरभारती, इत्यादि संस्कृत भाषा के निर्देशक अनेकविध रूढ शब्दप्रयोग, इस भाषा की संस्कारपूर्तता के कारण निर्माण हुई अपूर्वताअद्भुतता.,...
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छठा अध्यायसंपादित करें छठा अध्याय आत्मसंयम योग है जिसका विषय नाम से ही प्रकट है। जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम-यही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहते हैं। सातवें अध्यायसंपादित करें की संज्ञा ज्ञानविज्ञान योग है। ये प्राचीन भारतीय दर्शन की दो परिभाषाएँ हैं। उनमें भी विज्ञान शब्द वैदिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था। सृष्टि के नानात्व का ज्ञान विज्ञान है और नानात्व से एकत्व की ओर प्रगति ज्ञान है। ये दोनों दृष्टियाँ मानव के लिए उचित हैं। इस प्रसंग में विज्ञान की दृष्टि से अपरा और परा प्रकृति के इन दो रूपों की जो सुनिश्चित व्याख्या यहाँ गीता ने दी है, वह अवश्य ध्यान देने योग्य है। अपरा प्रकृति में आठ तत्व हैं, पंचभूत, मन, बुद्धि और अहंकार। जिस अंड से मानव का जन्म होता है। उसमें ये आठों रहते हैं। किंतु यह प्राकृत सर्ग है अर्थात् यह जड़ है। इसमें ईश्वर की चेष्टा के संपर्क से जो चेतना आती है उसे परा प्रकृति कहते हैं; वही जीव है। आठ तत्वों के साथ मिलकर जीवन नवाँ तत्व हो जाता है। इस अध्याय में भगवान के अनेक रूपों का उल्लेख कि...
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पाँचवे अध्यायसंपादित करें पाँचवे अध्याय कर्मसंन्यास योग नामक में फिर वे ही युक्तियाँ और दृढ़ रूप में कहीं गई हैं। इसमें कर्म के साथ जो मन का संबंध है, उसके संस्कार पर या उसे विशुद्ध करने पर विशेष ध्यान दिलाया गया है। यह भी कहा गया है कि ऊँचे धरातल पर पहुँचकर सांख्य और योग में कोई भेद नहीं रह जाता है। किसी एक मार्ग पर ठीक प्रकार से चले तो समान फल प्राप्त होता है। जीवन के जितने कर्म हैं, सबको समर्पण कर देने से व्यक्ति एकदम शांति के ध्रुव बिंदु पर पहुँच जाता है और जल में खिले कमल के समान कर्म रूपी जल से लिप्त नहीं होता। भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में कर्मयोग और साधु पुरुष का वर्णन करते हैं। तथा बताते हैं कि मैं सृष्टि के हर जीव में समान रूप से रहता हूँ अतः प्राणी को समदर्शी होना चाहिए। “ विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।। शुनि चैव श्वपाके च पंडिता: समदर्शिन: „ "ज्ञानी महापुरुष विद्या-विनययुक्त ब्राह्मण में और चाण्डाल में तथा गाय, हाथी एवं कुत्ते में भी समरूप परमात्मा को देखने वाले होते हैं।"
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चौथे अध्यायसंपादित करें चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बाताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। इसमें सच्चे कर्मयोग को चक्रवर्ती राजाओं की परंपरा में घटित माना है। मांधाता, सुदर्शन आदि अनेक चक्रवर्ती राजाओं के दृष्टांत दिए गए हैं। यहीं गीता का वह प्रसिद्ध आश्वासन है कि जब जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है, अर्थात् भगवान की शक्तिविशेष रूप से मूर्त होती है। यहीं पर एक वाक्य विशेष ध्यान देने योग्य है- क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा (४१२)। ‘कर्म से सिद्धि’-इससे बड़ा प्रभावशाली जय सूत्र गीतादर्शन में नहीं है। किंतु गीतातत्व इस सूत्र में इतना सुधार और करता है कि वह कर्म असंग भाव से अर्थात् फलासक्ति से बचकर करना चाहिए। भगवान बताते हैं कि सबसे पहले मैंने यह ज्ञान भगवान सूर्य को दिया था। सूर्य के पश्चात गुरु परंपरा द्वारा आगे बढ़ा। किन्तु अब यह लुप्तप्राय हो गया ...
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तीसरे अध्यायसंपादित करें इस प्रकार सांख्य की व्याख्या का उत्तर सुनकर कर्मयोग नामक तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य और योग इन दोनों मार्गों में आप किसे अच्छा समझते हैं और क्यों नहीं यह निश्चित कहते कि मैं इन दोनों में से किसे अपनाऊँ? इसपर कृष्ण ने भी उतनी ही स्पष्टता से उत्तर दिया कि लोक में दो निष्ठाएँ या जीवनदृष्टियाँ हैं-सांख्यवादियों के लिए ज्ञानयोग है और कर्ममार्गियों के लिए कर्मयोग है। यहाँ कोई व्यक्ति कर्म छोड़ ही नहीं सकता। प्रकृति तीनों गुणों के प्रभाव से व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। कर्म से बचनेवालों के प्रति एक बड़ी शंका है, वह यह कि वे ऊपर से तो कर्म छोड़ बैठते हैं पर मन ही मन उसमें डूबे रहते हैं। यह स्थिति असह्य है और इसे कृष्ण ने गीता में मिथ्याचार कहा है। मन में कर्मेद्रियों को रोककर कर्म करना ही सरल मानवीय मार्ग है। कृष्ण ने चुनौती के रूप में यहाँ तक कह दिया कि कर्म के बिना तो खाने के लिए अन्न भी नहीं मिल सकता। फिर कृष्ण ने कर्म के विधान को चक्र के रूप में उपस्थित किया। न केव...
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दूसरे अध्यायसंपादित करें दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है। इसमें जीवन की दो प्राचीन संमानित परंपराओं का तर्कों द्वारा वर्णन आया है। अर्जुन को उस कृपण स्थिति में रोते देखकर कृष्ण ने उसका ध्यान दिलाया है कि इस प्रकार का क्लैव्य और हृदय की क्षुद्र दुर्बलता अर्जुन जैसे वीर के लिए उचित नहीं। कृष्ण ने अर्जुन की अब तक दी हुई सब युक्तियों को प्रज्ञावाद का झूठा रूप कहा। उनकी युक्ति यह है कि प्रज्ञादर्शन काल, कर्म और स्वभाव से होनेवाले संसार की सब घटनाओं और स्थितियों को अनिवार्य रूप से स्वीकार करता है। जीना और मरना, जन्म लेना और बढ़ना, विषयों का आना और जाना। सुख और दुख का अनुभव, ये तो संसार में होते ही हैं, इसी को प्राचीन आचार्य पर्यायवाद का नाम भी देते थे। काल की चक्रगति इन सब स्थितियों को लाती है और ले जाती है। जीवन के इस स्वभाव को जान लेने पर फिर शोक नहीं होता। यही भगवान का व्यंग्य है कि प्रज्ञा के दृष्टिकोण को मानते हुए भी अर्जुन इस प्रकार के मोह में क्यों पड़ गया है। ऊपर के दृष्टिकोण का एक आवश्यक अंग जीवन की नित्यता और शरीर की अनित्यता था। नित्य जीव क...
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प्रथम अध्याय,, प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है । वह गीता के उपदेश का विलक्षण नाटकीय रंगमंच प्रस्तुत करता है जिसमें श्रोता और वक्ता दोनों ही कुतूहल शांति के लिए नहीं वरन् जीवन की प्रगाढ़ समस्या के समाधान के लिये प्रवृत्त होते हैं। शौर्य और धैर्य, साहस और बल इन चारों गुणों की प्रभूत मात्रा से अर्जुन का व्यक्तित्व बना था और इन चारों के ऊपर दो गुण और थे एक क्षमा, दूसरी प्रज्ञा। बलप्रधान क्षात्रधर्म से प्राप्त होनेवाली स्थिति में पहुँचकर सहसा अर्जुन के चित्त पर एक दूसरे ही प्रकार के मनोभाव का आक्रमण हुआ, कार्पण्य का। एक विचित्र प्रकार की करुणा उसके मन में भर गई और उसका क्षात्र स्वभाव लुप्त हो गया। जिस कर्तव्य के लिए वह कटिबद्ध हुआ था उससे वह विमुख हो गया। ऊपर से देखने पर तो इस स्थिति के पक्ष में उसके तर्क धर्मयुक्त जान पड़ते हैं, किंतु उसने स्वयं ही उसे कार्पण्य दोष कहा है और यह माना है कि मन की इस कातरता के कारण उसका जन्मसिद्ध स्वभाव उपहत या नष्ट हो गया था। वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि युद्ध करे अ...
पाणिनीय शिक्षा संपूर्ण श्लोक
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🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️ अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि पाणिनीयं मतं यथा । शास्त्रानुपूर्वं तद्विदाद्यथोक्तं लोकवेदयोः ॥ १॥ प्रसिद्धमपि शब्दार्थमविज्ञातमबुद्धिभिः । पुनर्व्यक्तीकरिष्यामि वाच उच्चारणे विधिम् ॥ २॥ त्रिषष्टिश्चतुःषटिर्वा वर्णा शम्भुमतेमताः । प्राकृते संस्कृते चापि स्वयं प्रोक्ताः स्वयंभुवा ॥ ३॥ स्वरा विंशतिरेकश्च स्पर्शानां पञ्चविंशतिः । यादयश्च स्मृता ह्यष्टौ चत्वारश्च यमाः स्मृताः ॥ ४॥ अनुस्वारो विसर्गश्च ꣳक-पौ चापि पराश्रितौ । दुःस्पृष्टो चापि विज्ञेयो ॡकारो प्लुत एव सः ॥ ५॥ ॥१॥ आत्मा बुद्ध्या समेत्यार्थान्मनो युङ्क्ते विवक्षया । मनः कायाग्निमाहन्ति सः प्रेरयति मारुतम् ॥ ६॥ मारुस्तूरसिचरन्मन्द्रं जनयति स्वरम् । प्रातःसवनयोगं तं छन्दो गायत्रमाश्रितम् ॥ ७॥ कण्ठे माध्यन्दिनयुगं मध्यमं त्रैष्टुभानुगम् । तारं तार्तीयसवनं शीर्षण्यं जागतानुगतम् ॥ ८॥ सोदीर्णो मूर्ध्न्यभिहतो वक्रमापद्य मारुतः । वर्णाञ्जनयते तेषां विभागः पञ्चधा स्मृतः ॥ ९॥ स्वरतः कालतः स्थानात्प्रयत्नादनुप्रदानतः । इति वर्णविदः प्राहुर्निपुणं तन्निबोधत ॥ १०॥ ॥२॥ ...
11से 14 श्लोक
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उदातानुदात्तश्च स्वरितश्च स्वरास्त्रयः । ह्रस्वो दीर्घः प्लुत इति कालतो नियमा अचि ॥ ११॥ उदात्ते निषादगान्धारावनुदात्त ऋषभधैवतौ । स्वरित्प्रभवा ह्येते षड्जमध्यमपञ्चमाः ॥ १२॥ अष्टौ स्थानानि वर्णानामुर: कण्ठः शिरस्तथा । जिह्वामूलं च दन्ताश्च नासिकोष्ठौ च तालु च ॥ १३॥ ओभावश्च विवृत्तिश्च शषसा रेफ एव च । जिह्वामूलमुपध्मा च गतिरष्टविधोष्मणः ॥ १४॥
6 से 10 श्लोक
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आत्मा बुद्ध्या समेत्यार्थान्मनो युङ्क्ते विवक्षया । मनः कायाग्निमाहन्ति सः प्रेरयति मारुतम् ॥ ६॥ मारुस्तूरसिचरन्मन्द्रं जनयति स्वरम् । प्रातःसवनयोगं तं छन्दो गायत्रमाश्रितम् ॥ ७॥ कण्ठे माध्यन्दिनयुगं मध्यमं त्रैष्टुभानुगम् । तारं तार्तीयसवनं शीर्षण्यं जागतानुगतम् ॥ ८॥ सोदीर्णो मूर्ध्न्यभिहतो वक्रमापद्य मारुतः । वर्णाञ्जनयते तेषां विभागः पञ्चधा स्मृतः ॥ ९॥ स्वरतः कालतः स्थानात्प्रयत्नादनुप्रदानतः । इति वर्णविदः प्राहुर्निपुणं तन्निबोधत ॥ १०॥
पाणिनीय शिक्षा 1 से 5 श्लोक
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अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि पाणिनीयं मतं यथा । शास्त्रानुपूर्वं तद्विदाद्यथोक्तं लोकवेदयोः ॥ १॥ प्रसिद्धमपि शब्दार्थमविज्ञातमबुद्धिभिः । पुनर्व्यक्तीकरिष्यामि वाच उच्चारणे विधिम् ॥ २॥ त्रिषष्टिश्चतुःषटिर्वा वर्णा शम्भुमतेमताः । प्राकृते संस्कृते चापि स्वयं प्रोक्ताः स्वयंभुवा ॥ ३॥ स्वरा विंशतिरेकश्च स्पर्शानां पञ्चविंशतिः । यादयश्च स्मृता ह्यष्टौ चत्वारश्च यमाः स्मृताः ॥ ४॥ अनुस्वारो विसर्गश्च ꣳक-पौ चापि पराश्रितौ । दुःस्पृष्टो चापि विज्ञेयो ॡकारो प्लुत एव सः ॥ ५॥ ॥१॥
पाणिनीय-शिक्षा
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🏵️पाणिनीय-शिक्षा 🏵️ महर्षि पाणिनि द्वारा शब्दोच्चारण के यथार्थ ज्ञान के लिये रचित सूत्रात्मक ग्रंथ। अर्वाचीन श्लोकात्मक शिक्षा का रचयिता अन्य व्यक्ति है, पर इसका आधार यह पाणिनीय शिक्षासूत्र है। मूल पाणिनिरचित शिक्षासूत्रों का पुनरुद्धार महर्षि दयानन्द सरस्वती ने बडे परिश्रम से किया, तथा वर्णोच्चार शिक्षा के नाम से ई. 1879 में हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित किया।पाणिनीय श्लोकात्मक शिक्षा पर दो टीकाएं लिखी हैं- 1) शिक्षाप्रकाश 2) शिक्षा पंजिका। शिक्षाप्रकाशकार के अनुसार वर्तमान श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा का रचयिता पाणिनि का कनिष्ठ भ्राता पिङ्गल है। इस शिक्षा के दो पाठ हैं। लघु या याजुष पाठ- 35 श्लोक। बृहत् या आर्षपाठ- 60 श्लोक ।उपर निर्दिष्ट दोनों टीकाएं लघुपाठ पर हैं। 🏵️शिक्षा शब्द के व्युत्पत्तिपरक अर्थ 🏵️ सामान्यतः शिक्ष अभ्यासे' धातु से 'शिक्षणं शिक्षा की व्युत्पत्ति से कुछ भी सीखना तथा अभ्यास करना शिक्षा है। दूसरी दृष्टि से 'शक्तृ शक्ती धातु के सन्नन्त शिक्ष' रूप से इस की निष्पत्ति है। तदनुसार शक्तुमिच्छा शिक्षा है - अर्थात् सकने या शक्ति प्राप्त करने की...
कृत प्रत्यय ,, सविस्तार विवेचन
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🏵️कृत् प्रत्यय🏵️ प्रत्यय-कृत प्रत्यय की परिभाषा जानने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि प्रत्यय किसे कहते हैं ? इसलिए कहा जा रहा है कि ऐसे शब्दांश जो शब्दों के अन्त में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं। उन्हें प्रत्यय Suffix कहा जाता है। जैसे-गम् + क्त्वा = गत्वा। पठ् + अनीयर् = पठनीय । विनता + ढक् = वैनतेय। शरीर + ठक = शारीरिक आदि । 🌼उपसर्ग 🌼 धातु या अन्य शब्दों के आरम्भ में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन करते हैं या अर्थ में विशेषता लाते हैं। जैसे-हार का अर्थ है पराजय परन्तु जब इसके साथ वि उपसर्ग जोड़ा जायेगा तो विहार बनेगा जिसका अर्थ होगा "घूमना" इसी प्रकार प्रहार = प्रहार (चोट), आ + हार = आहार(भोजन), सम् + हार = संहार (समाप्ति) । कथन से प्र जोड़ने पर प्रकथन का अर्थ होगा विशेष कथन। यहाँ उपसर्ग द्वारा अर्थ में केवल विशेषता लायी गयी है। उपसर्ग संख्या में 22 होते हैं। जैसे-प्र, परा, अप, सम्, अनु, अब, निस्.निर, इस. दुर ,वि. आर (आ), नि, अधि, अपि, अति , सु, उत्, अभि, प्रति, परि, उप।अंग्रेजी मे...