कांगड़ा किला,, हिमाचल का इतिहास

 कांगड़ा दुर्ग, जिला काँगड़ा 


जिला मुख्यालय काँगड़ा (32° 54' उत्तर व 76° 15' पूर्व) चण्डीगढ़-धर्मशाला राष्ट्रीय राजमार्ग सं. 88 पर चण्डीगढ़ से 225 कि0मी0 की दूरी पर तथा पठानकोट मण्डी राष्ट्रीय राजमार्ग सं. 20 पर पठानकोट से 85 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। काँगड़ा दुर्ग शहर के किनारे मांझी (पाताल गंगा) और बाणगंगा नदियों के संगम पर एक ऊँची पहाड़ी पर बना है जहाँ एक लम्बे तंग रास्ते से पहुँचा जा सकता है ।

 एक अनुश्रुति के अनुसार काँगड़ा के प्रसिद्ध किले का निर्माण सुशर्माचन्द्र द्वारा महाभारत युद्ध के बाद आनन-फानन में किया गया था। स्पष्ट साक्ष्यों के अभाव में इस किले की प्राचीनता को सुनिश्चित करना कठिन है परन्तु किले के दर्शनी दरवाजे के टूटे हुए भाग के अवशेषों एवं जैन और ब्राह्मण सन्प्रदाय के मन्दिरों से अवशेषों के आधार पर इसे 9वीं-10वीं शताब्दी से प्राचीन नहीं माना जा सकता।

किले का प्राचीनतम् अभिलेखीकृत प्रमाण सन् 1009 ई0 में मुहम्मद गजनी के आक्रमण के समय का मिलता है। सन् 1043 ई० में दिल्ली के हिन्दू राजाओं ने इस किले पर अधिकार कर लिया और तीन शताब्दियों तक इसे अपने अधिपत्य में रखा। तद्नन्तर सन् 1337 ई0 में मुहम्मद तुगलक ने व सन् 1365 ई0 में उसके उत्तराधिकारी फिरोज तुगलक ने इस किले पर शासन किया।

सन् 1556 ई0 में अकबर ने नगरकोट की विजय के उपरान्त भारतीय राजकुमार धर्मचन्द्र का सहयोग प्राप्त किया। तत्पश्चात् सन् 1563 ई0 में धर्मचन्द्र के पुत्र माणिक्य चन्द्र को नगरकोट का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया। दस वर्ष पश्चात् जयचन्द्र ने काँगड़ा दुर्ग की गद्दी संभाली। सन् 1571 ईस्वी में सन्देह के कारण पुनः अकबर के आदेश से खानजहाँ ने किले पर आक्रमण कर दिया परन्तु किले पर कब्जा करने में असफल रहा। इसके उपरान्त सन् 1621 ई0 में जहाँगीर ने किले. को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया था।

औरंगज़ेब के शासन काल तक यह किला सैय्यद हुसैन खान, हसन अब्दुल्ला खान, पठान एवं नवाब सैय्यद खलिलुल्लाह खान के कब्जे में रहा। औंरगजेब की मृत्यु के उपरान्त अनेक शासकों के अधीन रहने के बाद सन् 1743 ई0 में नवाब सैफ उल्लाह ने इस किले पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया जो कि उनकी मृत्यु (1783 ई0) तक बना रहा। सिक्ख नेता जयसिंह घानी ने सन् 1783 ई0 में काँगड़ा किले पर अधिकार कर लिया। इसके बाद चार वर्ष तक गोरखा सेनापति अमरसिंह थापा ने इस किले को घेरे रखा लेकिन वह इसे जीतने में सफल नहीं हो सका । अन्त में, सन् 1809 ई0 में रणजीत सिंह ने किले को अपने अधिकार में लेने का प्रयास किया । गोरखों की पराजय के बाद काँगड़ा दुर्ग पर सिक्खों का अधिकार स्थापित हुआ और अगले 37 वर्षों में यह दुर्ग इनके अधिकार में रहा । मार्च 1846 ई0 में जालन्धर राज्य के अंग्रेजी हुकूमत के समक्ष समर्पण के साथ यह किला अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया। सन् 1905 ई0 के विनाशकारी भूकम्प के कुछ वर्ष पूर्व ही अंग्रेजों ने किले को खाली कर दिया था और सन् 1909 ई0 में इस किले को राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक घोषित किया गया।

 किले में प्रवेश दो दरवाजों के मध्य अवस्थित एक छोटे प्रांगण से है, जिसे फारक कहा जाता है। इसका निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था। यहाँ से एक लम्बी संकरी गली लौहदरवाजे एवं अमीरी दरवाजे तक जाती है। यह दोनों दरवाजे प्रथम मुगल गवर्नर नवाब अलीफ खाँन को समर्पित हैं। इसके बाद यह गली एक तीव्र मोड़ लेती हुई जहाँगीर दरवाजे तक जाती है जिसका निर्माण जहाँगीर ने दुर्ग विजय के बाद करवाया था। चढ़ाई के अन्त में किले का ऊपरी दरवाजा है जिसे अंधेरी अथवा हंदेली दरवाजा कहते हैं। इस द्वार के आगे महल परिसर है जिसके प्रवेश द्वार को दर्शनी दरवाजा कहा जाता है। इस दरवाजे के दोनों तरफ नदीदेवी गंगा एवं यमुना की प्रतिमा अवस्थित है। यह दरवाजा एक आंगन में खुलता है, जिसके दाहिनी ओर कुछ कक्ष एवं बाँई तरफ एक जैन मठ परिसर अवस्थित है। इसके दक्षिणी तरफ उत्तराभिमुख लक्ष्मीनारायण, शीतला माता एवं अम्बिका देवी के मन्दिर हैं।

आंगन से एक सीढ़ी महल एवं निगरानी बुर्ज को जाती है। सीढ़ी के प्रारम्भ में एक द्वार बना है जिसे 'महलों का दरवाजा' अथवा 'महल दरवाजा' भी कहते हैं।

अन्धेरी एवं दर्शनी दरवाजे के बीच एक संकरी गली है जो किले के पीछे की ओर जाती है, जहाँ निश्चित अन्तराल पर बारूद खाना, सूखा तालाब, बारादरी, शिवमन्दिर, नौगजा पीर, कपूर सागर एवं अनेक कुएं स्थित हैं।

लक्ष्मीनारायण मन्दिर के पश्चिम में शीतला माता मन्दिर है। यह एक कक्षीय मन्दिर उत्तराभिमुख एवं उत्तरदक्षिण योजना पर निर्मित हैं। इस मन्दिर की छत अलंकृत स्तम्भों पर आधारित है जिसमें पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा में बालकनी बनी है। यह मन्दिर नागर शैली का रहा होगा जो 9वीं 10वीं शताब्दी का प्रतीत होता हैं।


अम्बिका देवी मन्दिर पश्चिमाभिमुख गर्भगृह एवं मण्डपयुक्त है। गर्भगृह आयताकार है, इसकी छत समतल है जिसमें अम्बिका देवी की मूर्ति है। वर्गाकार मण्डप पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण की ओर खुलता है। वर्तमान में इसमें एक आदिनाथ की मूर्ति स्थापित है जिस पर 1446 ई0 तिथि (उत्कीर्ण है) अंकित है।

किलें के सबसे ऊँचे मैदानी भाग में कुछ अवशेष मिले हैं जहाँ पहले कभी राजमहल हुआ करता था। वर्तमान में यहाँ कुएं, फर्श व नालियों के अवशेष स्पष्ट दिखाई देते हैं। दक्षिणी शीर्ष पर अवस्थित पुनरोद्धारित संरचना एक रसोईघर की प्रतीत होती है। यहाँ से एक रास्ता निगरानीबुर्ज की ओर जाता है।

 अन्धेरी दरवाजे के ठीक नजदीक एक संकरा रास्ता छोटी पहाड़ी की ओर जाता है जहाँ पर कभी बारूद-खाना हुआ करता था। अन्धेरी दरवाजे के पास रास्ता दो दिशाओं में बंट जाता है। एक रास्ता उत्तर में किले के पीछे की तरफ जाता है जिसके दायीं ओर मस्जिद के अवशेष मिलते हैं। इसका निर्माण 1573 ई0 में अकबर के गवर्नर खाँनजहाँ ने करवाया था। इससे आगे जाने पर पूर्व पश्चिम में फैला सूखा तालाब स्थित है जिसमें नीचे तक सीढ़ियां बनी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि महमूद गजनी ने एक सुरंग के रास्ते राजप्रसाद को लूटा था। यह सुंरग पहाड़ी से मांझी नदी की ओर समाप्त होती थी। मुसलमान शासकों के समय इस रास्ते से कुछ दूरी पर एक वर्गाकार एवं हवादार संरचना थी जिसमें नौ कक्ष एवं बारह निकास थे जो कि सम्भवत् बारादरी रही होगी। सुरक्षा दीवार के उत्तरी हिस्से में स्थित पिछला द्वार दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पहला भाग जो कि नदी की तरफ से आता है, जहाँ से एक तीव्र मोड़ लेकर ऊँची सीढ़ियों से दीवार के सहारे दूसरे भाग तक पहुँचा जा सकता है। पिछले दरवाजे को पार करने के बाद बाँई तरफ शिव मन्दिर स्थित है। मन्दिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है, जबकि दक्षिणी तरफ नन्दी पर आसीन गौरीशंकर प्रतिमा स्थित है। ये दोनों मूर्तियाँ 19वीं शताब्दी की हैं। शिव मन्दिर के निकट ही नौगजा पीर की मजार है। ऐसी मान्यता है कि यह एक नौ फुट लम्बे फकीर की समाधि है।

लौटते समय दीवार के ठीक पहले एक रास्ता नीचे की तरफ दक्षिणी दिशा की ओर जाता है जो कपूर तालाब के पास खत्म होता है। कपूर तालाब योजना में वर्गाकार है। इसमें नीचे जाने के लिए स्तम्भयुक्त दरवाजे व सीढ़ियां बनी है। नीचे विशाल पत्थर पर बैठे हुए विष्णु एवं चंवर लिये हुए द्वारपाल उत्कीर्ण हैं। सभी दिशाओं से नालियां आकर पूर्वी दिशा में दीवार के साथ निर्मित जलनिकास प्रणाली में मिलती है। यहीं पर दक्षिणी पूर्वी किनारे पर एक संकरा कुंआ स्थित है।

इसके अतिरिक्त किला परिसर में एक दर्शनीय पुरातात्विक संग्रहालय भी स्थित है। इस संग्रहालय में पाषाण काल के उपकरण, मूर्तियाँ, सिक्के इत्यादि संग्रहित एवं प्रदर्शित किये गए हैं जो काँगडा किला एवं इसके आसपास के क्षेत्रों (काँगड़ा घाटी) से एकत्र किए गए हैं।


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  1. Name Shivani Devi
    Sr no 46
    Major Hindi
    Minor history

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  2. simran devi
    1901hi077
    major Hindi
    2nd year

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  3. Sejal Kasav
    Major sub.- pol.sci
    Monir sub.- hindi
    Sr.no.-01

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  4. Mehak
    Sr.no.34
    Major Political science

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  5. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr.No.70

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  6. Riya thakur
    Sr. No. 22
    Major political science
    Dehri

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  7. Neha Devi
    Major History
    Sr no 62

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  8. Chetna choudhary Major pol science sr no 13

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  9. Monika kalia
    Srno 23
    Major history

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  10. Taniya sharma
    Pol. Science
    Sr no. 21

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  11. Bharti choudhary major political science and minor Hindi Sr no 30

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  12. Poonam devi sr no 23 major political science

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  13. Name rahul kumar
    Major- history
    Sr no. 92

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  14. Name rahul kumar
    Major history
    Sr no. 92

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  15. Name -Riya
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  16. Sourabh Singh Major Hindi minor History SR.no 20

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  17. Riya thakur
    Sr. No. 22
    Major political science

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  18. Divya Kumari major political science sr.no 60.

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  19. Shivam choudhary
    Sr. No. 78
    Major political science

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  20. Rishav sharma major pol science sr no 65

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  21. Kalpna choudhary Roll no 1901Hi065

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  22. ektaekta982@gmail.com
    Varsha Devi Pol 24

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  23. Pallvi choudhary
    Major- pol. Sc
    Minor- history
    Sr. No-72

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  24. Tanvi Kumari
    SR.no. 69
    Major . Pol.science

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  25. Diksha Devi
    Major history
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  26. Name - Riya
    Sr.no . -49
    Major- political science
    Minor- history

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