स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की कथावस्तु
स्वप्नवासवदत्तम्- यह महाकवि भास का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। इसकी कथावस्तु पर विशेष चर्चा नीचे की जा रही है:
3. स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की कथावस्तु का सार "स्वप्नवासवदत्तम्" छ: अंकों का नाटक है। इसमें वत्सदेश के राजा उदयन के पद्मावती के साथ पुनर्विवाह का वर्णन मुख्य रूप से किया गया है। नाटक की पृष्ठभूमि इस प्रकार है- वत्सराज उदयन के राज्य के कुछ भाग को उसका पड़ौसी राजा 'आरुणि' छीन लेता है। उदयन अपनी राजधानी कौशाम्बी को छोड़कर लावाणक नामक गाँव में अपने प्रधानमन्त्री यौगन्धरायण, पत्नी वासवदत्ता तथा अन्य निष्ठावान् मन्त्रियों एवं शुभचिन्तकों के साथ रहना आरम्भ कर देता है। वहाँ रहते हुए प्रधानमन्त्री रानी वासवदत्ता को विश्वास में लेकर कुछ मन्त्रियों के साथ अपहृत राज्य को पुनः प्राप्त करने की एक योजना बनाता है। योजना का पूरा प्रारूप उदयन से गुप्त रखा जाता है।
यह योजना पुष्पक एवं भद्र नामक ज्योतिषियों के द्वारा की गयी भविष्यवाणी को आधार बनाकर बनायी जाती है। ज्योतिषियों ने दो बातें कही थीं पहली के अनुसार राजा पर विपत्ति आनी थी तथा दूसरी यह कि पद्मावती से उदयन की शादी होगी। क्योंकि पहली बात सत्य सिद्ध हो चुकी थी। अतः दूसरी के सत्य होने की प्रबल सम्भावना थी। यौगन्धरायण का यह मानना था कि यदि उदयन का विवाह पद्मावती से होना ही है; तो शीघ्र करवाया जाये ताकि पद्मावती के भाई राजा दर्शक की सेना की सहायता से अपना छीना हुआ राज्य शीघ्र ही पुनः प्राप्त किया जा सके। इस योजना को कार्यरूप हो जाती हूँसे पूछती है कि आप मुझे महासेन की बहू कह रही है यह महासेन कौन है ? वासवदत्ता बताती है कि उज्जयिनी का राजा प्रद्योत जो अपने बेटे का रिश्ता आपको भेजता है; उसे ही महती सेना रखने के कारण महासेन कहते हैं। इस पर पद्मावती की दासी कहती है कि हमारी राजकुमारी उससे विवाह नहीं करना चाहती है। अपितु दयालु राजा उदयन के साथ विवाह करना चाहती है। इतने में पद्मावती की धाय वहाँ प्रवेश करती है और सूचना देती है कि उसकी सगाई कर दी गयी। पूछने पर पता चलता है कि वत्सराज उदयन किसी अन्य प्रयोजन से दर्शक के पास आये थे। उनकी आयु, कुल, शील और रूप को देखकर महाराजा ने पद्मावती के विवाह का प्रस्ताव उनके समक्ष रखा और उन्होंने इसकी स्वीकृति भी दे दी। तभी वहाँ एक दूसरी दासी प्रवेश करती है और बताती है कि आज ही शुभ मुहूर्त है। इसलिए विवाह का मांगलिक कार्य आज ही सम्पन्न होगा। अत: जल्दी कीजिए सभी भीतर चली जाती हैं।
तृतीय अंक-तृतीय अंक का आरम्भ रंगमंच पर वासवदत्ता के प्रवेश से होता है। महलों में अपने पति उदयन के साथ पद्मावती के विवाहोत्सव से खिन्न वासवदत्ता अपने मन को बहलाने के लिए प्रमदवन में चली जाती है। वह वहाँ पर अपने भाग्य को कोसती है। उसके मन में आत्महत्या का विचार भी आता है परन्तु अपने पति से पुनर्मिलन की आशा से वह इस विचार को मन पर भारी नहीं पड़ने देती। तभी एक दासी वासवदत्ता को ढूँढती हुई वहाँ आ पहुँचती है। वह बताती है कि हमारी महारानी जी कहती हैं कि वासवदत्ता पद्मावती की कुशल, उच्चकुल में जन्मी हुई अत्यन्त प्रियसखी है। अत: उसे ही वरमाला गूंथनी चाहिए। वासवदत्ता न चाहते हुए भी यौगन्धरायण की योजना की सफलता के लिए वर एवं वधू दोनों के लिए विवाह की मागंलिक मालाएँ गूंथ देती है। इतने में चेटी बताती है कि जामाता स्नान कर चुके हैं। अतः शीघ्र मालायें मेरे पास दे दो। वासवदत्ता बात-चीत में चेटी के मुख से यह सुन लेती है कि जामाता अत्यधिक सुन्दर है। अपने पति की परोक्ष में प्रशंसा सुनकर वासवदत्ता को बड़ा सन्तोष होता है। इसके पश्चात् चेटी (दासी) मालायें लेकर चली जाती है। वासवदत्ता के मन को अपने पति की किसी और से शादी होने से बड़ा आघात पहुँचता है। वह शय्या पर लेटकर इस दुःख से किसी तरह उबरने का प्रयास करती है।
चतुर्थाङ्क-चतुर्थ अंक का आरम्भ रंगमंच पर विदूषक के प्रवेश से होता है। विदूषक से सूचना मिलती है कि पद्मावती और उदयन का विवाह सम्पन्न हो चुका है। अब राजा और विदूषक पद्मावती के मायके में राजकीय अतिथि के रूप में सुखपूर्वक रह रहे हैं। पद्मावती भी अपने अभीष्ट वर को पाकर प्रसन्न है। वह वासवदत्ता और चेटी के साथ प्रमदवन में शेफालिका के फूल देखने चली जाती है। पीछे से राजा और विदूषक भी उन्हें ढूंढते हुए वही पहुँच जाते हैं। पद्मावती यद्यपि राजा से प्रमदवन में ही मिलजुलकर बात-चीत करना चाहती है परन्तु वासवदत्ता साथ होने के कारण वह ऐसा नहीं करना चाहती। पद्मावती जानती है कि वासवदत्ता परपुरुष दर्शन से परहेज करती है; अतः वे सभी एक लतामण्डप में छुप जाती हैं। धूप से बचने के लिए राजा और विदूषक भी उसी लतामण्डप में प्रवेश करने लगते हैं परन्तु दासी अन्दर से भौरों से लदी फूलों की एक शाखा को हिलाकर उन्हें बाहर ही रोक देती है। वे लतामण्डप के बाहर ही शिला पर बैठ जाते हैं। वस्तुतः राजा और विदूषक यह नहीं जानते हैं कि पद्मावती और वासवदत्ता आदि इसी लतामण्डप में छुपी हैं। एकान्त समझ कर विदूषक राजा से पूछता है कि उसे पहले वाली पत्नी वासवदत्ता अधिक प्रिया थी या नयी पत्नी पद्मावती ? राजा वासवदत्ता की याद आते ही व्याकुल हो उठता है। वह विदूषक के इस प्रश्न को टालने का भरसक प्रयास करता है परन्तु विदूषक के हठ के आगे वह झुक जाता है। राजा बताता है कि यद्यपि रूपशील और माधुर्य के कारण मैं पद्मावती से प्रेम करता हूँ तथापि वासवदत्ता से बन्धे मेरे हृदय को वह हर नहीं पायी है। उनकी इन बातों को सुनकर लतामण्डप के भीतर बैठी पद्मावती और वासवदत्ता के हृदय में भिन्न-भिन्न प्रकार का तूफान मचा है। उधर राजा वासवदत्ता की याद आने से अधीर होकर आँसु बहाने लगता है। विदूषक मुँह धोने के लिए जल लेने चला जाता है। मौके का लाभ उठाकर वे लड़कियाँ लतामण्डप से खिसक जाना चाहती हैं परन्तु वासवदत्ता यह कहकर पद्मावती को राजा के पास भेज देती है कि इस अवस्था में राजा को अकेला छोड़ना उचित नहीं है। चेटी और वासवदत्ता दोनों महलों में चली जाती हैं। पद्मावती राजा के पास जाकर रोने का कारण पूछती है। राजा सकपका जाता है। वह कोई उत्तर नहीं दे पाता तभी विदूषक जल लेकर आ पहुँचता है। पद्मावती उससे पूछती है कि यह सब क्या हो रहा है? पहले तो पद्मावती को देखकर विदूषक हड़बड़ा जाता है परन्तु फिर चतुराई के साथ उत्तर देता है कि काश के फूलों के परागकणों के राजा की आँख में गिरने से उनकी आँखों में आँसु आ गये हैं। पद्मावती सब जानते हुए भी इस बात को अधिक तूल नहीं देना चाहती। अतः वह स्वयं जल से राजा का मुँह धुलवाती है। बातचीत होने से भेद न खुल जाये इसलिए विदूषक राजा को याद दिलाता है कि मगधराज के साथ चल कर आपको प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मिलना है। इसलिए चलो समय अधिक हो गया है। इसके साथ ही सभी राजमहल चले जाते हैं।
पंचम अंक-पंचम अंक का आरम्भ पद्मावती की शिरीवेदना के समाचार से होता है। दो दासियों की बातचीत से पता चलता है कि पद्मावती के सिर में दर्द हो रहा है और उसकी शय्या समुद्रगृह में लगायी गयी है। इनमें से एक वासवदत्ता को शिरोवेदना की सूचना देती है और दूसरी दासी विदूषक के माध्यम से राजा के पास इसकी सूचना भेजती है। राजा वसन्तक (विदूषक) से पद्मावती की शिरोवेदना का समाचार सुनकर उसी के साथ समुद्रगृह पहुँच जाता है। जब राजा वहाँ पहुँचता है तब तक पद्मावती वहाँ नहीं पहुंची थी। राजा पद्मावती के लिए बिछायी गयी शय्या पर लेट जाता है। उसे थोड़ी ही देर में नींद आ जाती है। विदूषक उन्हें चद्दर उढ़ा देता है और अपने लिए कम्बल लेने चला जाता है। उधर वासवदत्ता भी चेटी से पद्मावती की शिरोवेदना के सन्दर्भ में सुनकर समुद्रगृह चली आती है। चादर ओढ़ कर सोये राजा को वह पद्मावती ही समझती है और पलंग पर ही बैठ जाती है। वह सोई हुई पद्मावती को नहीं जगाना चाहती क्योंकि उसे लगा कि पद्मावती को नींद में आराम मिल रहा है। वह पद्मावती के साथ ही लेट जाती है। उसी समय राजा को स्वप्न आता है। वह स्वप्न में दिखायी दे रही वासवदत्ता के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हुए बड़बड़ाता है। वासवदत्ता राजा की स्वप्नावस्था को समझ लेती है। वह वहां से निकल जाना चाहती है ताकि उसे कोई वहाँ देख न ले। संयोग से उसी समय स्वप्न में दिखायी देने वाली वासवदत्ता भी भागने लगती है। राजा उसे पकड़ने का प्रयास करता है; परन्तु वह भाग निकलती है। उसे पकड़ने के प्रयास में राजा द्वार से टकरा जाता है और उसकी नींद खुल जाती है। इसी समय विदूषक वापिस आ जाता है। राजा उससे वासवदत्ता के वास्तविक मिलन की बात करता है और कहता है कि वासवदत्ता जीवित है। विदूषक इसे राजा का पागलपन समझते हुए कहता है कि आपने स्वप्न में वासवदत्ता को देखा होगा। उन दोनों की वासवदत्ता विषयक बहस जारी ही थी कि उसी समय कांचुकी सूचना देता है कि दर्शक की सहायता से रुमणवान ने आपके शत्रु आरुणि पर आक्रमण कर दिया है। आपके शत्रुओं में फूट डाल दी गयी है। बहुतों को अपनी ओर मिला लिया गया। आपके प्रयाण के समय जो सेना आपका सहयोग और रक्षा करेगी उसे भी तैयार कर दिया गया है। शत्रुविनाश के सारे साधन तैयार हैं। आपकी सेनाओं ने गंगा नदी पार कर ली है। इसलिए अब आप वत्सदेश को अपने हाथ में आया हुआ ही समझो।यह सुनकर राजा उदयन के मन में आरुणि से बदला लेने की भावना जाग उठती है और वह भी युद्धभूमि में आरुणि के विनाश के लिए चला जाता है।
षष्ठ अंक-छठे अंक के आरम्भ में वासवदत्ता के माता-पिता द्वारा प्रेषित कांचुकीय और वासवदत्ता की धात्री उदयन के पास आते हैं। परन्तु उदयन की द्वारपालिका बताती है कि महाराज इस समय किसी से भी मिलने के मूढ में नहीं हैं। कारण पूछने पर पता चलता है कि आज जब महाराज सूर्यमुख प्रासाद में गये तो उसी समय उन्हें कहीं से वीणा के बजने की आवाज़ सुनाई दी। राजा को लगा कि यह वासवदत्ता की वीणा घोषवती की आवाज़ है। राज-सेवकों के द्वारा पता करवाने पर पता चला कि यह वीणा वस्तुतः घोषवती है। जो नदी के किनारे झाड़ियों में फँसी हुई किसी व्यक्ति को मिली है। राजसेवक वीणा को ले आते हैं और राजा उसे गोद में लेकर मूर्छित हो जाता है। किसी प्रकार पुनः सचेत होने पर राजा उसे देखकर वासवदत्ता की स्मृति से व्याकुल हो उठता है। द्वारपालिका से राजा की व्याकुलता के इस कारण को सुनकर कांचुकीय कहता है कि हम जो सूचना लाये हैं; वह भी वासवदत्ता से ही सम्बन्धित है। अत: आप राजा साहब को हमारे आने की सूचना अवश्य दे दीजिए। प्रतिहारी राजा को सूचना दे देती है कि महासेन के पास से रैभ्यस गोत्र का काञ्चुकीय और वसुन्धरा नाम की वासवदत्ता की धात्री आपसे मिलना चाहते हैं।
राजा पद्मावती के साथ उन दोनों से मिलता है। कांचुकीय तथा वसुन्धरा राजा को उसकी विजय पर वधाई देते हैं। उसके बाद वे उस चित्रफलक को भी राजा को सौंपते हैं जो वासवदत्ता के माता-पिता ने उनकी शादी के उपलक्ष्य में बनवाया है। वस्तुत: उदयन और वासवदत्ता के गान्धर्व विवाह करके भाग जाने पर महासेन और अंगारवती ने लोकलाज हेतु उन दोनों के चित्रों को आधार बनाकर उनकी शादी की रस्म पूरी की थी। उसी उपलक्ष्य में यह चित्रफलक बनाया गया था। राजा और पद्मावती दोनों चित्रफलक को देखते हैं। चित्रलिखिता वासवदत्ता को देखकर पद्मावती कहती है कि महाराज वासवदत्ता से पूर्णरूप से मिलती शक्ल वाली एक लड़की मेरे पास रहती है जो किसी ब्राह्मण परिव्राजक ने मेरे पास धरोहर के रूप में रखी है। राजा पहले तो यह सुनकर प्रसन्न होता है कि वासवदत्ता जैसी लड़की मेरे पास रहती है; परन्तु ब्राह्मणभगिनी सुनकर सुनकर निराश हो जाता है।
इसी समय वह संन्यासी (यौगन्धरायण) जो यह कहकर वासवदत्ता को धरोहर के रूप में पद्मावती के पास रख गया था कि यह मेरी बहन है और इसका पति विदेश गया है; उसे लेने आ पहुँचता है। राजा पद्मावती को उसकी धरोहर लौटाने को कहते हैं। पद्मावती वासवदत्ता को बुला लेती है; परन्तु वासवदत्ता परपुरुष के दर्शनों से परहेज करने के कारण घूघट निकाल कर ही वहाँ उपस्थित होती है। इसलिए राजा की दर्शनों की इच्छा पूरी नहीं हो पाती। राजा पद्मावती को परामर्श देता है कि धरोहर को साक्षियों के समक्ष लौटाना चाहिए। इसलिए वसुन्धरा नामक धात्री को इसका साक्षी बना लो। वासवदत्ता की धात्री रह चुकी वसुन्धरा जब चूंघट उठाकर देखती है तो वह पहचान लेती है कि यह तो वासवदत्ता है। उसके मुख से इस बात को सुनकर सभी प्रसन्न एवं आश्चर्यचकित हो जाते हैं। राजा उन्हें भवन के अन्दर जाने को कहता है। उधर संन्यासी बना यौगन्धरायण हठ करता है कि यह मेरी बहन है; इसे मुझे लौटा दो। थोड़ी देर नोंक-झोंक के बाद राजा कहता है कि हम घूघट हटाकर इसकी समानता देखेंगे; तभी यौगन्धरायण स्वयं को प्रकट कर देता है। वासवदत्ता और यौगन्धरायण दोनों कहते हैं कि महाराज की जय हो। राजा दोनों को देखकर हैरान हो जाता है; उसे लगता है कि कहीं मैं पहले की तरह स्वप्न में ही यह सारी घटना तो नहीं देख रहा हूँ।
यौगन्धरायण राजा से देवी को छुपाने के अपराध की क्षमा याचना करता है। राजा कहते हैं कि आप हमारे निष्ठावान् मन्त्री हैं। आपने ही तो हमें अपनी चालों से विजयी बनाया है। उधर पद्मावती भी वासवदत्ता के पाँव पड़कर क्षमायाचना करती है। कि अनजाने में मुझसे आपके प्रति कोई गलती हो गयी हो तो क्षमा कर दीजिए। राजा यौगन्धरायण से यह भी पूछता है कि वासवदत्ता को छुपाने में आपका क्या उद्देश्य था। यौगन्धरायण अपनी सारी योजना और योजना का आधार ज्योतिषियों की भविष्यवाणी आदि के विषय में बता देता है। राजा पुनः पूछता है कि क्या रुमण्वान आदि को यह सब मालूम था ? यौगन्धरायण कहता है कि स्वामी ! आपको छोड़कर सभी को इस योजना की जानकारी थी। यह जानकर राजा शर्मिन्दा सा भी अनुभव करता है तथा प्रसन्न भी।
इसके बाद यौगन्धरायण राजा को परामर्श देता है कि वासवदत्ता के जीवित होने की सूचना लेकर कांचुकीय और वसुन्धरा को शीघ्र महासेन के पास भेज दो। परन्तु राजा कहता है कि हम सभी स्वयं जाकर यह समाचार उन्हें देंगे। इसके साथ ही नाटक का कथानक समाप्त हो जाता है।
Comments
Post a Comment