अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्त के अनुसार आचार्य का स्वरूप

 अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्त के अनुसार आचार्य का स्वरूप

आचार्य अर्थात् जो अपने शिष्यों को आचार यानी शिष्टाचार ग्रहण करवाये या अर्थों का चयन करके शिष्यों को बताये उसे आचार्य कहते हैं

गुरू, अध्यापक और प्राध्यापक भी आचार्य के ही पर्यायवाची शब्द है। इस विश्व में हर सफल और असफल व्यक्ति की सफलता और असफलता का कारण आचार्य ही होता है। सौभाग्य से जिन विद्यार्थियों को वास्तविक आचार्य प्राप्त हो जाते हैं; वे सफल और जिन्हें वास्तविक आचार्य नहीं मिल पाते वे असफल हो जाते हैं। इसका अभिप्राय यह हुआ

कि आचार्यों का सदाचार्य होना परमावश्यक है। तन्त्रसार नामक ग्रन्थ में गुरू (आचार्य) में अपेक्षित का वर्णन इस प्रकार किया गया है

शान्तो दान्त: कुलीनश्च विनीतः शुद्धवेशवान्। शुद्धाचारः सुप्रतिष्ठिताः शुचिर्दक्षः सुबुद्धिमान्॥ अध्यात्म ध्यान निष्ठश्च मन्त्र तन्त्र विशारदः ।

निग्रहानुग्रहे शक्तो गुरूरित्यभिधीयते। अर्थात् जो व्यक्ति शान्त स्वभाव वाला हो, दान्त हो अर्थात् जिसका मन, बुद्धि, अहंकार आदि आन्तरिक इन्द्रियों पर नियन्त्रण हो, जो विनम्र हो तथा स्वच्छ वेशधारण करता हो, सदाचारी, कर्तव्य परायण, विभिन्न विधाओं का ज्ञाता एवं अच्छा प्रशासक और दयालु हो वही व्यक्ति आचार्य होने का अधिकारी होता है।

अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्त में भी आचार्य के निम्न महत्त्वपूर्ण गुणों पर प्रकाश डाला गया है।

1. सदाचारण कर्ता-ब्रह्मचर्य सूक्त में उसे गुरू, अध्यापक, शिक्षक आदि नामों से सम्बोधित न करके आचार्य शब्द से सम्बोधित किया गया है। यास्काचार्य ने आचार्य शब्द की निरुक्ति करते हुए लिखा है कि-"आचारं ग्राहयति स्व शिष्येभ्य अथवा आचिनोति अर्था न् इति आचार्य।" अर्थात् जो अपने शिष्यों को सदाचार (अनुशासन) सिखाता है तथा जो विभिन्न विषयों की जानकारियाँ प्राप्त करके अपने शिष्यों का ज्ञान बढ़ाता है। उसे आचार्य कहते हैं। आचार्य शब्द का प्रयोग करके वैदिक ऋषि इस तथ्य पर बल देना चाहता है कि अध्यापक में सदाचरण और विषय का ज्ञान ये दो गुण अतीव अनिवार्य हैं। वर्तमान काल में यौन शोषण की घटनाएं शिक्षकों में इस गुण के अभाव को दर्शाती हैं।

2. पितृभाव-ब्रह्मचर्य सूक्त आचार्यों के लिए जो दूसरा अनिवार्य गुण माना गया है; वह है आचार्यों में पितृत्व भाव का होना। क्योंकि जब तक गुरूजन शिष्यों को अपने बच्चों के समान नहीं समझेंगे तब तक वे उन्हें सर्वश्रेष्ठ बनाने के प्रयास नहीं कर सकते। इसलिए इस सूक्त में कहा गया है कि आचार्य को चाहिए कि वह शिष्य का उपनयन संस्कार करके उसे जैसे माता बच्चे को अपने गर्भ में रखती है; उसी प्रकार वह उस शिष्य को अपने समीप रखे। यथा

'आचार्य उपनयमानो ब्रह्मचारिणं कृणुते गर्भमन्तः।" (11-0-5-3) इसीलिए आगमों में कहा गया है कि "मातृतः पितृतः शुद्धः शुद्धभावो जितेन्द्रियः।" वाचस्पत्यम् पृ० 2614. अर्थात् आचार्य को माता-पिता से भी अधिक शुद्ध विचार शिष्य के प्रति रखने चाहिए। क्योंकि उसने पोषण के साथ-साथ शिक्षण भी करना होता है।वर्तमान युग में इस मातृत्व एवं पितृत्व गुण के अभाव में शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के समक्ष ही हज़ारों बच्चे पथ भ्रष्ट होकर जीवन के लक्ष्य से भटक रहे हैं। इस समस्या के समाधान के लिए शिक्षकों को शिष्यों के प्रति ब्रह्मचर्य सूक्त के अनुसार मातृ-पितृभाव रखना होगा।

3. आध्यात्मिकता-ब्रह्मचर्य सूक्त में आचार्यों में अपेक्षित तीसरा गुण यह बताया गया है कि आचार्य अपने शिष्यों को इह लोक की शिक्षा के साथ-साथ परलोक की शिक्षा अर्थात् आध्यात्मिक ज्ञान भी प्राप्त करवाये। भौतिक ज्ञान केवल ऐहिक जीवन को सुखी बनाता है तथा अधिकाधिक अर्थार्जन की प्रवृत्ति के कारण अशान्ति कारक होता है। इसके नियन्त्रण के लिए पारलौकिक यानी अध्यात्म का ज्ञान भी आवश्यक है जो आचार्य में होना परमावश्यक है। इसीलिए कहा गया है कि

"आचार्यस्ततक्ष उभे इमे उर्वी गम्भीरे पृथिवीं दिवं च।" (11-0-5-8) अर्थात् आचार्य ही पृथ्वी से लेकर धुलोक तक के सब पदार्थों का ज्ञान ब्रह्मचारी को देता है।

वर्तमान शिक्षा केवल कलाकौशल सिखा रही है। उन्हें अध्यात्म की शिक्षा नहीं दी जा रही है। इसलिए केवल मशीनी मनुष्य तैयार हो रहे हैं। वास्तविक इन्सान नहीं बन पा रहे हैं। अतः इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए आचार्यों को अध्यात्म की ओर भी ध्यान देना होगा।

4. दोषापहारक-सूक्त में आचार्य को दोषों को दूर करने वाला, स्वच्छता का पुरोधा और रोगों से बचने के उपाय बनाने वाला कहा गया है। जैसे-"आचार्यों मृत्युर्वरूण: सोमधोषधयः पयः।"

अर्थात् आचार्य वही हो सकता है जो शिष्य के दोषों के लिए मृत्यु के समान हो अर्थात् जो शिष्य के दोषों का हरण करने वाला हो, जो वरूण (भौम जल का देवता) के समान अर्थात् अस्वच्छता के लिए जल के समान शोधक हो एवं सोम चन्द्रमा जिस प्रकार औषधियों में रस भरता है ठीक उसी प्रकार जो शिष्यों को शक्तिशाली बनने के उपाय बताये; वही वास्तविक आचार्य है।

5. जितेन्द्रिय-ब्रह्मचर्य सूक्त के अनुसार आचार्य का जितेन्द्रिय होना परमावश्यक है। वहाँ कहा गया है कि"आचार्यों ब्रह्मचारी'' (11-5-16) अर्थात् आचार्य को ब्रह्मचारी यानी जितेन्द्रिय होना चाहिए। यदि वर्तमान युग के समस्त आचार्य इस नियम का पालन करें तो आज गुरू शिष्य के सम्बन्धों का जो संकट उपस्थित हुआ है, उसका समाधान हो जायेगा।

अतः स्पष्ट है कि ब्रह्मचर्य सूक्त के अनुसार आचार्य को सदाचारी, मातृ-पितृ तुल्य, आध्यात्मिक, दोषनिवारक स्वच्छता का अग्रदूत एवं जितेन्द्रिय होना चाहिए।


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  1. Anjli
    Major-Political science
    Minor-history
    Sr.no-73

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  2. Poonam devi sr no 23 major political science

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  3. Mehak
    Sr.no.34
    Major Political science

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  4. Anuj Riyal
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  5. Name Rahul kumar
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    Sr no. 92

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  6. Sejal kasav
    Major sub - pol.sci
    Minor sub.- hindi
    Sr.no.-01

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  7. Priyanka Devi
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  8. Mamta Bhardwaj
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  9. Priyanka Choudhary
    Major political science and minor Hindi sr no 12

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  10. Monika kalia
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    Major history

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  11. Monika kalia
    Srno23
    Major history

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  12. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr.No.70

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  13. Name_ Shivani
    Sr.no.11
    Major Hindi

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  14. Bharti choudhary major political science and minor Hindi Sr no 30

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  15. Name-Riya
    Major -History
    Sr. No-76

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  16. Name-Riya
    Major -History
    Sr. No-76

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  17. Chetna choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13

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  18. Shivani Devi
    Sr. no 46
    Major Hindi
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  19. Name Priyanka devi, Major History, Ser No 30.

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  20. Vivek Kumar Pol science sr no 38 dehri

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  21. Sonali dhiman
    Major -political science
    Sr. no. -19

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  22. Sourabh Singh sr.no 20 Major Hindi Minor History

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  23. Name jyotika Kumari Sr no 5 major Hindi minor history

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  24. Rishav Sharma major pol science sr no 65

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  25. Anshika Kumari
    Sr. No. 7
    Major hindi

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    Serial no. 2
    Major- Hindi

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  27. Shivam choudhary
    Sr. No. -78
    Major- political science

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  28. Taniya sharma
    Pol. Science
    Sr no. 21

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  29. Akriti choudhary
    Major history
    Sr.no 11

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  30. Divya Kumari major political science sr.no 60.

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  31. Name palvinder kaur major history sr no 9

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  32. Tanvi Kumari
    SR.no. 69
    Major. Pol.science

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  33. Name palvinder kaur major history sr no 9

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  34. ektaekta982@gmail.com
    Varsha Devi Pol 24

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  35. Name - Riya
    Sr.no 49
    Major- political science
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  36. Poonam devi sr no 23 major political science

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  37. Mamta Devi sr no 147major history

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  38. Sourabh singh major Hindi minor history Sr no 20

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  39. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr.No.70

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  40. Rishav sharma major pol science sr no 65

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  41. Sejal Kasav
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    Sr.no.-01

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  42. Anuj Riyal
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    Sr. No. _ 02
    (Dheri)

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  43. Monikasharma sr no.26 major hindi sr no.26

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  46. Name Richa Sr.no 35
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  48. Chetna choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13

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  49. Anjli
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  50. Tanvi Kumari
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  51. Name -Riya
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    Sr. No. -76

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  53. Divya Kumari major political science sr.no 60.

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  56. Taniya sharma
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  57. Name Simran kour
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  58. Name rahul Kumar
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  59. Shivam choudhary
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