महाकवि दण्डी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जीवन-चरित-
महाकवि दण्डी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जीवन-चरित-
संस्कृत के कवि यद्यपि अपने जीवन-चरित के सन्दर्भ में मौन ही हैं तथापि दण्डी के जीवन के सन्दर्भ में कुछ जानकारियाँ “अवन्ती सुन्दरी-कथा" में उपलब्ध होती हैं। यह दण्डी की ही रचना मानी जाती है। इसके अनुसार भारवि के तीन पुत्र थे, उनमें मध्यम पुत्र का नाम मनोरथ था। मनोरथ के चार पुत्र हुए जिनमें वीरदत्त सबसे छोटा था। वीरदत्त की पत्नी गौरी थी। उन्हीं वीरदत्त तथा गौरी के पुत्र थे महाकवि दण्डी। बाल्यकाल में ही दण्डी अनाथ हो गये थे। अनाथ होने पर ये काञ्ची (काञ्जीवरम्) में अकेले ही रहते थे। काञ्ची में विप्लव होने पर ये जंगलों में रहे तत्पश्चात् जब शहर में शान्ति हो गयी तब ये पल्लव नरेश की सभा में आये और वहीं रहने लगे। ऐसा माना जाता है कि पल्लव नरेश के पुत्र को शिक्षा देने के लिए ही दण्डी ने काव्यादर्श की रचना की थी।
🌺स्थितिकाल-महाकवि दण्डी का स्थिति काल सप्तम शताब्दी का अन्त और अष्टम शताब्दी का आरम्भ माना जाता है। क्योंकि नवम् शताब्दी के ग्रन्थों में दण्डी का नामोल्लेख पाया जाता है। 815 ई० के आस-पास हुए कन्नड़ कवि अमोघ वर्ष के अलंकारग्रन्थ "कविराजमार्ग" में काव्यादर्श के कई उदाहरण अक्षरशः उद्धृत हैं। अतः दण्डी का समय इससे पूर्व माना जाता है।
दण्डी के काव्यादर्श का निम्न पद्य बाणभट्ट की कादम्बरी के शुकनासोपदेश से प्रभावित प्रतीत होता है। पद्य इस प्रकार है
अरत्नालोक संहार्यमवार्यं सूर्यरश्मिभिः। दृष्टिरोधकरं यूनां यौवनप्रभवं तमः॥ दण्डी के उपर्युक्त पद्य पर बाण भट्ट की कादम्बरी की निम्न पंक्तियों का प्रभाव है
केवलं च निसर्गतः एवाभानु अष्टम् भेद्यमरनालोकोच्छेद्यम्-प्रदीपप्रभापनेयमतिगहनं तमो यौवनप्रभवम्।"
बाणभट्ट जी का काल 650 ई० के आस-पास निश्चित रूप से माना जाता है। अतः दण्डी सप्तम शताब्दी के अन्त तथा सप्तम के आरम्भ में प्रादुर्भूत हुए माने जाते हैं।
🌺 महाकवि दण्डी की कृतियाँ🌺 महाकवि दण्डी की तीन रचनाएँ मानी जाती हैं। इस तथ्य का समर्थन कविवर राजशेखर ने अपनी शार्ङ्गधरपद्धति में स्पष्ट रूप से किया है। यथा
योग्नयस्त्रयो वेदास्त्रयो देवास्त्रयो गुणाः। त्रयो दण्डिप्रबन्धाश्च त्रिषु लोकेषु विश्रुताः॥ जो नामतः-दशकुमारचरित, काव्यादर्श और अवन्तीसुन्दरी कथा मानी जाती हैं । कतिपय विद्वान् अवन्तीसुन्दरी-कथा के स्थान पर "छन्दोविचिति" को इनकी तीसरी रचना मानते रहे हैं क्योंकि इसका वर्णन काव्यादर्श में आता है तथापि विद्वानों ने प्रमाणपुरःसर इसका खण्डन किया है। इनकी रचनाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
🏵️ दशकुमारचरितम्🏵️ दशकुमारचरित महाकवि दण्डी की गद्यरचना है। दण्डी की अन्य रचनाएँ काव्यादर्श और अवन्तिसुन्दरीकथा मानी जाती हैं। महाकवि दण्डी लालित्यपूर्ण गद्य लिखने के लिए विख्यात हैं। इनका दशकुमारचरित उनके इस गुण को प्रकट करने में समर्थ है। इस काव्य का कथानक इस प्रकार है
दशकुमारचरित इस नाम से ही स्पष्ट है कि इस काव्य का विषय दश कुमारों के चरित्र का वर्णन करना है। यह गद्यकाव्य पूर्वपीठिका, उत्तरपीठिका और उपसंहार इन तीन भागों में विभक्त है। इसका अवान्तर वर्गीकरण उच्छ्वासों हुआ है। पूर्वपीठिका में पाँच उच्छ्वास हैं। उत्तरपीठिका में आठ उच्छ्वास और उपसंहार भाग का कोई वर्गीकरण नहीं है। पूर्वपीठिका में दो राजकुमारों सोमदत्त और पुष्पोद्भव के चरित्र वर्णित हैं। उत्तरपीठिका में राजवाहन, अपहार वर्मा, उपहार वर्मा, अर्थपाल, प्रमति, मित्रगुप्त, मन्त्रगुप्त और सुश्रुत इन आठ राजकुमारों के चरित वर्णित हैं। उपसंहार में विश्रुत का चरित्र वर्णित है। काव्य का आरम्भ इस प्रकार होता है कि पुष्पपुरी (आधुनिक पटना) का राजा राजहंस मालवेश्वर मानसार को पराजित करता है परन्तु तपस्या के प्रभाव से सम्पन्न होने के कारण मानसार पाटलिपुत्र (पटना) पर चढ़ाई कर देता है और राजहंस को युद्ध में परास्त कर देता है। परास्त होकर राजा राजहंस सपरिवार जंगल में चला जाता है। वहीं पर उनकी रानी के पुत्र उत्पन्न होता है, जिसका नाम राजवाहन रखा जाता है। राजहंस के मन्त्रियों के भी पुत्र होते हैं। जब राजकुमार और मन्त्रियों के पुत्र बड़े हो जाते हैं; तब वे सब यात्रा पर चले जाते हैं। दुर्भाग्य से वे सब एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं और अलग-अलग स्थानों पर जाकर संकटपूर्ण तथा विचित्र जीवन यापन करते हैं। पुनः वे एक-एक करके राजवाहन से मिलते हैं और अपने-अपने जीवन यापन की विचित्र घटनाएँ राजवाहन को सुनाते हैं। इनके ये वृत्तान्त ही दशकुमारचरित में क्रमश: वर्णित हैं।
दशकुमारचरित घटनाप्रधान काव्य है। इसमें उल्लास, रोमांच और विषाद से पूर्ण घटनाएँ वर्णित हैं। छल-कपट, सचझूठ, मारकाट आदि से ओत-प्रोत यह एक अत्यन्त सजीव रचना है। इसमें तत्कालीन समाज और धार्मिक दशा का वर्णन बड़ी सजीवता के साथ किया गया है। दशकुमारचरित में प्रयुक्त गद्यशैली बड़ी सुबोध, सरल और प्रवाहमयी है। दशकुमारचरित के गद्य न तो श्लेष से बोझिल हैं और न ही समासों से प्रताड़ित हैं। अलंकारों के आडम्बर से सर्वत्र बचा गया है तथा सर्वत्र ललित पदावली का प्रयोग किया गया है। दशकुमार चरित संस्कृतसाहित्य की गौरवमयी रचना है तथा इसकी गणना गद्यकाव्यत्रयी में की जाती है। साहित्यिक दृष्टि से दशकुमारचरित एक श्लाघनीय रचना है। यह आख्यानकाव्य का उज्ज्वल दृष्टान्त है। इसके पात्र जीते-जागते जगत् के प्राणी हैं जिनका चित्रण शिष्ट, हास्य तथा मधुर व्यंग्य का आश्रय लेकर किया गया है। कुमारों के वर्णन में आयी अवान्तर कथाएँ भी मुख्य कथा में किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न नहीं करती हैं। गद्य प्रतिदिन के व्यवहार योग्य सजीव और चुस्त है। यह न तो सुबन्धु के गद्य के समान प्रत्यक्षर श्लेषमय है और न ही बाण के गद्य के समान समासों से बोझिल है। गद्य के सरल, सरस और प्राञ्जल होने के कारण ही विद्वानों में दण्डी के विषय में "दण्डिनः पदलालित्यम्" यह आभाणक प्रचलित है।
🌼 काव्यादर्श🌼महाकवि दण्डी की द्वितीय रचना काव्यादर्श है। यह अलंकारशास्त्र से अर्थात् काव्यशास्त्र से सम्बन्धित रचना है। काव्यशास्त्र से सम्बन्धित रचनाओं से अभिप्राय उन रचनाओं से है; जो काव्यरचना के प्रयोजन उसके लक्षण, भेदोपभेदों, गुण, दोष, रस, अलंकार आदि विषयों की विवेचना करती हैं। भरतनाट्यशास्त्र, काव्यालंकार, साहित्यदर्पण, काव्यप्रकाश तथा काव्यादर्श आदि ग्रन्थ इसी विधा के ग्रन्थ हैं। महाकवि दण्डी रीति सम्प्रदाय के उद्भावक माने जाते हैं। इसलिए रीतियों का वर्णन तथा स्थापना काव्यादर्श की विषय-वस्तु का वैशिष्ट्य है।
काव्यादर्श चार परिच्छेदों में विभक्त है। चारों परिच्छेदों में 660 पद्य हैं। इसमें काव्यशास्त्रीय परिभाषाएँ तथा नियमोपनियम पद्यों में दिये गये हैं।। प्रथम परिच्छेद में काव्यलक्षण, काव्य तथा गौड़ी दो रीतियों, दस काव्य गुणों, काव्यरचना के तीन हेतुओं-प्रतिभा, श्रुत और अभियोग अर्थात् अभ्यास आदि विषयों का वर्णन किया गया है। दण्डी ने काव्यादर्श में काव्य का लक्षण देते हुए कहा है कि
कथ्यते काव्यम् इष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली। अर्थात् अभीष्टार्थ की द्योतक पदावली काव्य कहलाती है। इसीप्रकार रीति को पारिभाषित करते हुए दण्डी ने कहा है कि अस्त्यनेको गिरां मार्गः सूक्ष्मभेदः परस्परम्। तत्र वैदर्भी गौडीयौ वयेते प्रस्फुटान्तरौ॥ इस प्रकार अतीव सटीक परिभाषाएँ दण्डी जी ने अपने काव्यादर्श में दी हैं।
काव्यादर्श का द्वितीय परिच्छेद अलंकारों के वर्णन से सम्भृत है। इसमें 35 अलंकारों को उदाहरण सहित सम्मिलित किया गया है। काव्यादर्श में अलंकारों के लक्षण भी अतीव सरल और स्पष्ट हैं। यथा
"सम्भावनमथोत्प्रेक्षा प्रकृतस्य समेन यत्।" अर्थात् उपमेय की उपमान के रूप में सम्भावना उत्प्रेक्षा अलंकार कहलाता है।
तृतीय परिच्छेद में शब्दालंकार यमक, चित्रबन्ध और प्रहेलिका तथा उसके 16 भेदों का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। यमक के भेदोपभेदों का यहाँ विस्तृत वर्णन है।
चतुर्थ परिच्छेद में काव्यदोषों का विवेचन किया गया है। दण्डी का काव्यादर्श विद्वत्समाज में अतीव लोकप्रिय रहा है। इसकी शैली लालित्ययुक्त और प्रवाहपूर्ण है।
इस ग्रन्थ की लोकप्रियता का पता इस बात से भी चलता है कि यह ग्रन्थ कई भाषाओं में अनुदित हो चुका है। कन्नड़ भाषा में काव्यादर्श का अनुवाद "कविराजमार्ग" के नाम से सिंहली में 'सिय-बस लकर' (स्वभाषालंकार) के नाम से और तिब्बती में भी इसका अनुवाद उपलब्ध है। काव्य में तीन गुणों की अपेक्षा दस गुण मानना और वैदर्भी तथा गौडीरीति का भेद स्पष्ट करना दण्डी के काव्यादर्श की उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं।
महाकवि दण्डी के ये दो रचनाएँ निर्विवाद रूप से विद्वानों ने मानी हैं। तीसरी रचना कुछ विद्वान् “छन्दोविचिति" तथा कुछ 'अवन्तीसुन्दरी कथा' को मानते हैं।
Name rahul kumar
ReplyDeleteMajor history
Sr no. 92
Sejal Kasav
ReplyDeleteMajor sub.- Pol science
Minor sub.- hindi
Sr.no.-01
Name Richa Sr.no 35Major hindi
ReplyDeleteNeha Devi
ReplyDeleteMajor History
Sr no 62
Mehak
ReplyDeleteSr.no.34
Major Political science
Ser No 30, Major History
ReplyDeleteTanu guleria Sr. No.32
ReplyDeleteMajor political science
Major hindi
ReplyDeleteSr no 16
Name Akshita Kumari Major Political Science Sr.No.70
ReplyDeleteName -Riya
ReplyDeleteMajor -History
Sr. No. -76
Bharti choudhary major political science and minor Hindi Sr no 30
ReplyDeleteRiya thakur
ReplyDeleteSr. No. 22
Major political science
Monikakalia
ReplyDeleteSrno23
Major history
Monikakalia
ReplyDeleteSrno23
Major history
Riya thakur
ReplyDeleteSr. No. 22
Major political science
Priyanka Devi
ReplyDeleteSr.no.23
Major history
Varsha Devi Pol 24
ReplyDeleteAkanksha sharma
ReplyDeleteSr no 13
Major hindi
Name Simran kour
ReplyDeleteSr no 36
Major history
Roshan sr no 31 major hindi
DeleteMamta Devi
ReplyDeleteSr no147
Tanvi Kumari
ReplyDeleteSR.no. 69
Major. Pol. Science
Jagriti Sharma
ReplyDeleteSerial no. 2
Major -Hindi
Name anjlee
ReplyDeleteSr. No. 36
Major.History
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletePriyanka choudhary
ReplyDeleteMajor political science and minor Hindi sr no 12
Rishav sharma major pol science sr no 65
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletePoonam devi sr no 23 major political science dehri
ReplyDeleteManu
ReplyDeletemajor history
sr no 75
Mohini sharma
ReplyDeleteSr.no.18
History
Name:Palak
ReplyDeleteSr. No. 22
Major:Hindi
Divya Kumari
ReplyDeleteMajor political science sr.no 60
VIVEk Kumar Pol science sr no 38 dehri
ReplyDeleteAnili
ReplyDeleteMajor-Political science
Minor-history
sr.no-73
Name:Priti
ReplyDeleteSr.no.24
Name Shivani Devi
ReplyDeleteSr no 46
Major Hindi
Minor history
Arti sharma
ReplyDeleteSr no 32
Major hindi
Name jyotika Kumari Major hindi Sr no 5
ReplyDeleteMajor history
ReplyDeleteSr no 29
Kajal pathania major history Sr no14
ReplyDeleteShikha
ReplyDeleteSr.no.7
Major history
sonali dhiman major political science Sr. no. 19
ReplyDeleteDiksha Devi
ReplyDeleteMajor history
Sr. No. 50
Name Simran kour
ReplyDeleteSr no 36
Major history
Bharti choudhary major political science and minor Hindi Sr no 30
ReplyDeleteName - Riya
ReplyDeleteSr. No.49
Major- political science
Minor - history