ब्रह्मचर्य सूक्त में वर्णित ब्रह्मचर्य के गुण
ब्रह्मचर्य सूक्त में वर्णित ब्रह्मचर्य के गुण
1. आचार्यों के प्रति श्रद्धा-ब्रह्मचर्य का प्रथम गुण तप यानी कठोर व्रत है जिसमें इन्द्रियों का संयम प्रमुख होता है। इस तथ्य को ब्रह्मचर्य सूक्त में इस प्रकार प्रकट किया गया है-"आचार्य तपसा पिपर्ति।" अर्थात् ब्रह्मचारी अपने तप से अर्थात् इन्द्रिय संयम रूपी कठोर नियमों के पालन से अपने आचार्य को प्रसन्न करता है। ब्रह्मचर्य हेतु वीर्यस्खलन न करने पर बल दिया जाता है क्योंकि शास्त्र में लिखा है कि-
"न रेतः (वीर्यम् ) स्कन्दयेत् क्वचित्।"
इसीलिए ब्रह्मचर्य सूक्त के प्रथम मन्त्र में ही यह कहा गया है कि ब्रह्मचारी वही है जो तप (इन्द्रिय संयम) से अपने आचार्य को प्रसन्न करे यानी समस्त विद्यार्थियों को अपने-अपने गुरूजनों के प्रति श्रद्धाभाव रखना चाहिए उनकी Good Book में रहना चाहिए। यही बात गीता में भगवान् कृष्ण ने भी कही है कि
श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
2. पर्यावरण संरक्षण-ब्रह्मचर्य का दूसरा बड़ा गुण है कि वह सभी देवों को अपने तप से प्रसन्न करे। यथा"सर्वान्स देवांस्तपात्र पिपर्ति।" (अथर्ववेद 11-0-5-2) यहां देवता का अर्थ है वह प्राकृतिक वस्तु जो हमें कुछ देता है। इसके अनुसार सूर्य हमें प्रकाश देता है, वनस्पति हमारे लिए अनेकानेक फल, अन्न, ईंधन औषधियों को देते हैं, पृथ्वी हमारे लिए अन्न, खनिज आदि प्रभूत वस्तुएं प्रदान करती हैं। अतः ये सूर्य, पृथ्वी, वनस्पति आदि सब देवता कहलाते हैं। ( ददाति इति देवता) इसका अभिप्राय यह है कि ब्रह्मचारी को अपने गुणों से पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए। यदि अथर्ववेद के इस परामर्श को देश के सभी ब्रह्मचारी यानी विद्यार्थी मानें तो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या ही नहीं आ सकती है।
3. लोकानुरंजन-अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्त में ब्रह्मचर्य का तीसरा गुण लोगों को अपने कल्याणकारी कर्मों से प्रसन्न करना बताया गया है। यथा-
"ब्रह्मचारी समिधा मेखलया श्रमेण लोकांस्तपसा पिपर्ति।" (11-0-5-4)अर्थात् ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह अपने तप (परोपकारी कर्म) करते हुए यज्ञ (सत्संगति) करें। कटिबद्ध यानी समाज सेवा के लिए हमेशा तैयार रहे तथा परिश्रमपूर्वक लोगों को प्रसन्न रखने का प्रयास करें। आज के समस्त ब्रह्मचारियों (विद्यार्थियों) को इन गुणों की महती आवश्यकता है क्योंकि समाज तभी प्रसन्न रह सकता है यदि उसकी भावी पीढ़ी Good Company में रहेगी। Alert रहेगी और Hard Worker होगी।
4. ब्रह्मचारी शृंगार प्रिय एवं फैशन प्रिय न हो-ब्रह्मचर्य सूक्त के छठे मन्त्र में कहा गया है कि ब्रह्मचारी को कृष्णमृगचर्म के अर्थात् (साधारण) वस्त्र धारण करने चाहिए तथा उसे दाढ़ी मूछ आदि बढ़ाकर ही रहना चाहिए यानी सजने संवरने में समय नष्ट नहीं करना चाहिए। यथा-"काणं वस्त्रानो दीक्षितो दीर्घश्मश्रुः।" यहां दीक्षित शब्द का अर्थ है लोक कल्याण हेतु सत्य एवं धर्मायता का पालन करने का व्रत लिया हुआ विद्यार्थी।
5. पाखण्डियों अथवा आततायियों का विनाशक-अथर्ववेद का ऋषि कहता है कि ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह अपनी योनि अर्थात् ब्रह्मचर्य में रहते हुए इन्द्र के समान शक्तिशाली (वज्रधारी) बनकर असुरों अर्थात् पाखण्डियों या आततायियों (दुष्टों का) संहार करें। यथा-"योनाविन्द्रो ह भूत्वासुरांस्ततह।" वस्तुतः अन्ध विश्वासों को दूर करना और दुष्टों का नाश करना यह प्रत्येक भावी नागरिक के जीवन का लक्ष्य होना अनिवार्य है।
6. ब्रह्मचारी विद्वान् एवं प्रजापालक बने-ब्रह्मचारी को चाहिए कि वह आचार्य अर्थात् पढ़-लिखकर विद्वान् और शिष्टाचारी तथा प्रजापति यानी समाज का पालन करने वाला बने। यथा-"आचार्यों ब्रह्मचारी ब्रह्मचारी प्रजापतिः।" इसका स्पष्ट अभिप्राय यह है कि ब्रह्मचारी को प्रचुर विद्या अध्ययन करके प्रजाओं परिवार अथवा समाज का पालन-पोषण करने का सामर्थ्य प्राप्त करना चाहिए यानी capable to earn बनना चाहिए।
7. युवा होने पर विवाह करना-अथर्ववेद के ब्रह्मचर्य सूक्त में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि लड़की और लड़के दोनों को 25 वर्ष तक यानी युवा होने तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करके विवाह की इच्छा करनी चाहिए। यथा
'ब्रह्मचर्येण कन्या युवानं विन्दते पतिम्।" (11-0-5-18) इस मन्त्र से स्पष्ट है कि ब्रह्मचर्य लड़के और लड़कियों दोनों के लिए अनिवार्य है तथा विवाह पूर्व मजनुगिरी शास्त्र विरूद्ध है।
8. ब्रह्मचर्य से मृत्यु को जीता जा सकता-ब्रह्मचर्य (ब्रह्मज्ञान और वीर्य संरक्षण) में वह ताकत है जिसके द्वारा हम मृत्यु को भी जीत सकते हैं क्योंकि जो अमर हुए हैं यानी देवत्व को प्राप्त हुए हैं; उसके पीछे ब्रह्मचर्य ही कारण है। अत: नैष्टिक ब्रह्मचर्य यानी सारी उम्र ब्रह्मचारी रहकर मृत्यु पर भी विजय पायी जा सकती है। यथा
"ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपानत।" (11-0-5-19) भाव यह कि ब्रह्मचर्य से स्वास्थ्य लाभ होता है; जिससे आयु बढ़ती है।
9. ब्रह्मचर्य से मेधा (बुद्धि) बढ़ती है-ब्रह्मचर्य अर्थात् इन्द्रिय संयम पराशक्ति में विश्वास और कठोर श्रम से ब्रह्मचारी ब्रह्म मेधा सर्वश्रेष्ठ बुद्धि को प्राप्त करते हैं। यथा-
"ब्रह्मचारी ब्रह्मभाजद् ब्रह्ममेधाम्।" (11-0-5-24)। अतः जो विद्यार्थी अपनी मेधा शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं; उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
10. ख्याति की प्राप्ति-ब्रह्मचर्य का पालन करके ब्रह्मचारी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बनकर विशेष ख्याति को प्राप्त करता है। यथा (ब्रह्मचारी) "पृथिव्यां बहु रोचते।" अर्थात् ब्रह्मचारी संसार में अतीव ख्याति प्राप्त करता है।
अतः स्पष्ट है कि ब्रह्मचारी को इन्द्रिय संयमी, तपस्वी तथा पर्यावरण रक्षक बनकर ब्रह्मचर्य से मेधावी बनकर संसार में विशेष ख्याति प्राप्त करनी चाहिए।
Sejal kasav
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Minor sub.- hindi
Sr.no.-01
Name -Riya
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Sr. No. -76
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ReplyDeleteName Akshita Kumari Major Political Science Sr.No.70
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Neha Devi
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Sr no 62
Anchal
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Arti sharma
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Priyanka Devi
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Chetna choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13
ReplyDeleteMehak
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Major Political science
Name Priyanka devi
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Ser No 30.
Aarti,
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Sr no.5
Diksha Devi
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Sr. No. 50
Aarti,
ReplyDeleteMajor history,
Sr.no.5
Manu
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sr no 75
Name:Priti
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Rishav sharma major pol science sr no 65
ReplyDeleteName Richa Sr.no 35
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Sr no.36
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Monikasharma sr no.26 major hindi
ReplyDeleteJagriti Sharma
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Major-Hindi
Name jyotika Kumari Major hindi Sr no 5 minor history
ReplyDeletePriyanka choudhary
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Name rahul Kumar
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Sr no. 92
Divya Kumari major political science sr.no 60
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ReplyDeleteVarsha Devi Pol 24
Shivam choudhary
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Major - political science
Taniya sharma
ReplyDeletePol. Science sr no. 21
Mamta Bhardwaj
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Taniya devi sr no37
ReplyDeleteRiya thakur
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Major political science
Name:Palak
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Major:Hindi
Sonali dhiman political science Sr. no. 19
ReplyDeleteName Sejal Mehta
ReplyDeleteSr no33
Major Hindi
Name tanu guleria
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Tanvi Kumari
ReplyDeleteSR. No. 69
Major . Pol.science
Major hindi
ReplyDeleteSr no 16
Name -riya
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