नीतिशतक

 ☸️नीतिशतक ☸️

नीतिशतक भर्तृहरि की विख्यात कृति है। शायद विरला ही कोई संस्कृतज्ञ होगा जिसे इस लोकविश्रुत शतक के पद्य कंठस्थ न हों। यह शतक ही वस्तुतः भर्तृहरि की कीर्ति का स्तम्भ है। इसमें उनके वे अनुभव संकलित प्रतीत होते हैं, जो उन्होंने राज्य संचालन में अनुभूत किये होंगे। यह भी मुक्तक काव्य है तथा इसमें 122 तक पद्य उपलब्ध होते हैं।

-नीतिशतक में सर्वप्रथम भर्तृहरि ब्रह्म को प्रणाम करते हैं। उसके पश्चात् उन्होंने वह प्रसिद्ध श्लोक लिखा है जिसके आधार पर उनके जीवनचरित की कल्पना की गयी है। यथा

यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता 

साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः। 

अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या

धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च॥ 

इसमें समस्त शृंगारिक भावों का खण्डन किया गया है। आगे नीति के विषय को दुर्जन- निन्दा, विद्वत्प्रसंशा, सत्संग का महत्त्व, धन का समुचित प्रयोग, तेजस्वी का स्वभाव, सेवाधर्म की कठिनाई, भाग्य की अटलता एवं परोपकार की प्रशंसा आदि पर केन्द्रित किया है। यहाँ कतिपय विषयों पर उनके विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

🏵️1. दुर्जननिन्दा-भर्तृहरि जी का मानना है कि दुर्जन दुराग्रही होते हैं उन्हें किसी भी प्रकार प्रसन्न नहीं किया जा सकता है। मनुष्य मगरमच्छ की दाढ़ों से मणि निकाल सकता है, विकट तरंगों से युक्त समुद्र को भी तैर कर पार कर सकता है परन्तु मूर्ख को प्रसन्न करना अतीव कठिन है। वे कहते हैं कि

लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्

न तु प्रतिनिविष्ट मूर्खजन चित्तमाराधयेत्।

 भर्तृहरि जी ने मूर्खता को छिपाने की एक ही विधि उनके लिए सर्वश्रेष्ठ बतायी है और वह है मौन रहना। यथा विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥

 कवि जी का मानना है कि विश्व में हर रोग का निदान है, हर समस्या का हल है परन्तु मूर्ख को सुधारने की कोई औषधि नहीं है यथा

"सर्वस्यौषधमस्तिशास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम्॥" 

इसलिए भर्तृहरि जी का समाज को उपदेश है कि दुर्जन का संग न करें चाहे वह विद्याविभूषित ही क्यों न हो। यथा

दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाऽलड्कृतोऽपि सन्।

मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः॥ 

🏵️विद्या एवं शिष्टाचार का महत्त्व-भर्तृहरि जी का मानना था कि मनुष्य वही है जो सुशिक्षित, सुशील, गुणी व धार्मिक तथा तपस्वी एवं दानी हो। जिनमें ये गुण नहीं है वे तो पृथ्वी पर भारस्वरूप हैं तथा मनुष्य के आकार में पशुओं की तरह जीवनव्यतीत करते हैं। यथा

येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।

ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चन्ति॥ 

वे तो साहित्य-संगीत आदि कलाओं से विरहित मनुष्य को पशु ही मानते थे। उन्होंने लिखा है कि

"साहित्यसंगीतकला विहीनः साक्षात्पशुः पुच्छ विषाणहीनः॥" 

☸️नीतिनिपुण बनने के लिए भर्तृहरि जी ने मधुरवाणी की अहं भूमिका मानी है। वे लिखते हैं कि मनुष्य की शोभा किसी भी आभूषण से उतनी नहीं हो सकती है जितनी वाणी से होती है। यथा

केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला

..क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥ 

वाणी के साथ-साथ विद्या को उन्होंने कुरूपों का रूप माना है। यथा

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्न गुप्तं धनं 

विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरुणां गुरुः। 

विद्या बंधुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं

विद्या राजसु पूज्यते न तु धनं विद्याविहीनः पशुः॥ 

🏵️सत्संगति का महत्त्व-भर्तृहरि जीवन में सत्संग को अतीव महत्त्व देते थे। उनका मानना है कि सत्संग से बुद्धि निर्मल होती है, वाणी में सत्य का संचार होता है, मान सम्मान बढ़ता है, अवगुण दूर होते हैं तथा चित्त प्रसन्न और यश.........की है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि सत्संगति मनुष्य के लिए सब कुछ प्राप्त कराती है। इसीलिए नीतिशतक में लिखा है कि-"सत्संगतिः कथय किन्न करोति पुंसाम्।

☸️" धन का महत्त्व-मनुष्य चाहे कितना भी विद्वान्, गुणवान् और सुशील क्यों न हो यदि उसके पास धन नहीं है,तो समाज में उसे उचित मान-सम्मान नहीं मिल पाता है। इसीलिए उन्होंने कहा है कि

यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः, स पण्डितः स श्रुतवान्गुणज्ञः।

स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वेगुणाः कांचनमाश्रयन्ति॥

धन को उन्होंने यद्यपि समस्त गुणों का आश्रय तो कहा है तथापि वे जानते थे कि धनमद में मनुष्य अनेकानेक बुराइयों को अपना लेता है। इसलिए उन्होंने धन के समुचित प्रयोग का वर्णन भी किया है। वे कहते हैं कि

दानं भोगो नाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।

यो न ददाति न भुक्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति॥ 

नीतिशतक में इन विषयों के अतिरिक्त नीति एवं लोकव्यवहार के अनेक विषयों का वर्णन किया है। भर्तृहरि जी ने भाग्य को अनिवार्य और अपरिहार्य माना है। सेवाधर्म को एक दुष्कर कार्य कहा है। यथा

"सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः।" 

क्रोध को वे मनुष्य का शत्रु मानते हैं, जो अपने को भी पराया बना देता है। इसलिए भर्तृहरि चाहते थे कि मनुष्य धैर्य, क्षमा, वाक्चातुर्य, शूरवीरता, यश:कामना, अध्ययन में रुचि आदि उन गुणों को अपनायें जो महापुरुषों के स्वाभाविक गुण हैं।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि समाजोपयोगी मनुष्य बनने हेतु नीतिशतक का अध्ययन प्रत्येक मनुष्य के लिए परमोपयोगी है।


Comments

  1. Name Priyanka devi,Major History, Ser No 30....

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  2. Sejal kasav
    Major sub.- pol.science
    Minor sub.- hindi
    Sr.no.-01

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  3. Pallvi choudhary
    Major- pol. Sc
    Minor- history
    Sr. No-72

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  4. Pallvi choudhary
    Major- pol. Sc
    Minor- history
    Sr. No-72

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  5. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr.No.70

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  6. Mehak
    Sr.no.34
    Major political science

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  7. Chetna choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13

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  8. Name Richa Sr.no 35
    Major hindi

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  9. Poonam Devi sr no 23 major political science

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  10. Tanvi Kumari
    Sr. No. 69
    Major. Pol. science

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  11. Taniya sharma
    Pol. Science
    Sr no. 21

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  12. VIVEk Kumar Pol science sr no 38 dehri

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  13. Mohini sharma
    Sr. No. 18
    History

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  14. ektaekta982@gmail.com
    Varsha Devi Pol 24

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  15. Diksha Devi
    Major history
    Sr. No. 50

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  16. Riya thakur
    Sr. No. 22
    Major political science

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  17. Name palvinder kaur major history sr no 9

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  18. Name -Riya
    Major -History
    Sr. No. -76

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  19. Pallvi choudhary
    Major_pol.sc
    Minor- history
    Sr. No-72

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  20. Name Simran kour
    Sr no 36
    Major history

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