भर्तृहरि की रचनाएँ

 ☸️भर्तृहरि की रचनाएँ☸️

 काशी के प्रसिद्ध आर्यसमाजी विद्वान् युधिष्ठिर मीमांसक ने अपनी 'संस्कृतव्याकरणसाहित्य का इतिहास' नामक में भर्तृहरि की निम्नलिखित रचनाओं का उल्लेख किया है

1. महाभाष्यदीपिका-यह महर्षि पाणिनि विरचित अष्टाध्यायी की व्याख्या है। 

2. वाक्यपदीय-यह भी संस्कृत व्याकरण का उच्चकोटि का ग्रन्थ है।

 3. वाक्यपदीय टीका-यह ग्रन्थ अपने ही अत्यन्त क्लिष्ट ग्रन्थ वाक्यपदीय पर भर्तृहरि द्वारा स्वयं लिखी गयी टीका है। जो वाक्यपदीय के तीन काण्डों में से पहले दो पर ही लिखी गयी है। 

4. मीमांसाभाष्य-मीमांसाभाष्य महर्षि गौतमविरचित मीमांसा सूत्रों की व्याख्या है। 

5. वेदान्तसूत्रवृत्ति-यह ग्रन्थ महर्षि वेदव्यासविरचित वेदान्तसूत्रों की व्याख्या है

 6. शब्दधातुसमीक्षा- यह भी व्याख्या सम्बन्धी ग्रन्थ है। इसमें संस्कृतव्याकरण के शब्दों एवं धातुओं की स्वतन्त्र समीक्षा की गयी है। ☸️उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त भर्तृहरि की प्रसिद्धि का आधार उनके तीन शतक "शृंगारशतक, नीतिशतक और वैराग्यशतक" हैं। ये तीनों शतक खण्डकाव्य हैं तथा उनके अनुभव पर आधारित रचनाएँ हैं। उन्होंने युवावस्था में शृंगार का जो अनुभव किया उसे शृंगारशतक में तथा राज्य-संचालन में नीति का जो स्वरूप देखा उसे नीतिशतक में एवं सांसारिक भोगों में अरुचि हो जाने पर वैराग्य का जो अनुभव किया उसे वैराग्यशतक में वर्णित किया है। इनके तीनों शतकों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है

✡️शृंगारशतक✡️

 शृंगारशतक में शताधिक पद्य हैं। यह मुक्तक काव्यों की श्रेणी में आता है। क्योंकि इसका प्रत्येक पद्य स्वयं में स्वतन्त्र अर्थ का द्योतक है। इसके श्लोकों का अर्थ जानने के लिए पूर्वापर सन्दर्भ की आवश्यकता नहीं होती है।

इसके प्रथम श्लोक में सौन्दर्य के देवता कामदेव को नमस्कार किया है। यथा-"तस्मै नमो भगवते कुसुमायुधाय।" शृंगारशतक में स्त्रियों को बन्धन कहा है। यथा-समस्त भावैः खलु बन्धनं स्त्रियः। इसी प्रसंग में स्त्रियों के आभूषणों एवं पुरुषों को आकृष्ट करने वाले उनके भ्रूकटाक्ष, मधुरवाक्, लज्जापूर्णहास, धीमी चाल, आदि हाव-भावों का वर्णन किया है। भर्तृहरि कहते हैं कि लाल कमल सदृश आँखों वाली मृगनयनी तरुणियाँ सभी का मन हर लेती हैं। यथा"कुर्वन्ति कस्य न मनो विवशं तरुण्यो" कवि कहते हैं कि नारी की देह वैरागियों को भी क्षुब्ध कर देती है। जैसे

"मुक्तानां सतताधिवासरुचिरं वक्षोजकुंभद्वय

मित्थं तन्विवपुः प्रशान्तमपि ते क्षोभं करोत्येव न॥ 

भर्तृहरि जी कहते हैं कि इन मृगनयनी स्त्रियों के विना संसार शून्यस्वरूप ही है, वस्तुतः ये ही वास्तविक स्वर्गस्वरूपा हैं। कवि ने उन्हें ही घर का सौन्दर्य तथा उनके शरीर के भोग को ही परमपुण्य कहा है। साथ ही विरहीजनों की दशा का वर्णन किया है और कहा है कि प्रेमोन्मत्त नारियों को ब्रह्मा भी नहीं रोक पाता है। यथा

उन्मत्तप्रेम संरम्भादारभन्ते यदंगनाः।

तत्र प्रत्यूहमाधातुं ब्रह्मापि खलु कातरः॥ 

इस प्रकार शृंगारशतक में स्त्री सौन्दर्य, यौवन की उपभोग इच्छा एवं काम की दुर्वार्यता का वर्णन किया गया है। यह भर्तृहरि के यौवन के अनुभवों की रचना प्रतीत होती है। कवि ने काम को विवेक का हन्ता कहकर समाज को इससे बचने का उपदेश भी दिया है।

☸️नीतिशतक ☸️

नीतिशतक भर्तृहरि की विख्यात कृति है। शायद विरला ही कोई संस्कृतज्ञ होगा जिसे इस लोकविश्रुत शतक के पद्य कंठस्थ न हों। यह शतक ही वस्तुतः भर्तृहरि की कीर्ति का स्तम्भ है। इसमें उनके वे अनुभव संकलित प्रतीत होते हैं, जो उन्होंने राज्य संचालन में अनुभूत किये होंगे। यह भी मुक्तक काव्य है तथा इसमें 122 तक पद्य उपलब्ध होते हैं।

-नीतिशतक में सर्वप्रथम भर्तृहरि ब्रह्म को प्रणाम करते हैं। उसके पश्चात् उन्होंने वह प्रसिद्ध श्लोक लिखा है जिसके आधार पर उनके जीवनचरित की कल्पना की गयी है। यथा

यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता 

साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः। 

अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या

धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च॥ 

इसमें समस्त शृंगारिक भावों का खण्डन किया गया है। आगे नीति के विषय को दुर्जन- निन्दा, विद्वत्प्रसंशा, सत्संग का महत्त्व, धन का समुचित प्रयोग, तेजस्वी का स्वभाव, सेवाधर्म की कठिनाई, भाग्य की अटलता एवं परोपकार की प्रशंसा आदि पर केन्द्रित किया है। यहाँ कतिपय विषयों पर उनके विचार प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

🏵️1. दुर्जननिन्दा-भर्तृहरि जी का मानना है कि दुर्जन दुराग्रही होते हैं उन्हें किसी भी प्रकार प्रसन्न नहीं किया जा सकता है। मनुष्य मगरमच्छ की दाढ़ों से मणि निकाल सकता है, विकट तरंगों से युक्त समुद्र को भी तैर कर पार कर सकता है परन्तु मूर्ख को प्रसन्न करना अतीव कठिन है। वे कहते हैं कि

लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्

न तु प्रतिनिविष्ट मूर्खजन चित्तमाराधयेत्।

 भर्तृहरि जी ने मूर्खता को छिपाने की एक ही विधि उनके लिए सर्वश्रेष्ठ बतायी है और वह है मौन रहना। यथा विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥

 कवि जी का मानना है कि विश्व में हर रोग का निदान है, हर समस्या का हल है परन्तु मूर्ख को सुधारने की कोई औषधि नहीं है यथा

"सर्वस्यौषधमस्तिशास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम्॥" 

इसलिए भर्तृहरि जी का समाज को उपदेश है कि दुर्जन का संग न करें चाहे वह विद्याविभूषित ही क्यों न हो। यथा

दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाऽलड्कृतोऽपि सन्।

मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः॥ 

🏵️विद्या एवं शिष्टाचार का महत्त्व-भर्तृहरि जी का मानना था कि मनुष्य वही है जो सुशिक्षित, सुशील, गुणी व धार्मिक तथा तपस्वी एवं दानी हो। जिनमें ये गुण नहीं है वे तो पृथ्वी पर भारस्वरूप हैं तथा मनुष्य के आकार में पशुओं की तरह जीवनव्यतीत करते हैं। यथा

येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।

ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चन्ति॥ 

वे तो साहित्य-संगीत आदि कलाओं से विरहित मनुष्य को पशु ही मानते थे। उन्होंने लिखा है कि

"साहित्यसंगीतकला विहीनः साक्षात्पशुः पुच्छ विषाणहीनः॥" 

☸️नीतिनिपुण बनने के लिए भर्तृहरि जी ने मधुरवाणी की अहं भूमिका मानी है। वे लिखते हैं कि मनुष्य की शोभा किसी भी आभूषण से उतनी नहीं हो सकती है जितनी वाणी से होती है। यथा

केयूराणि न भूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला

..क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥ 

वाणी के साथ-साथ विद्या को उन्होंने कुरूपों का रूप माना है। यथा

विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्न गुप्तं धनं 

विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरुणां गुरुः। 

विद्या बंधुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं

विद्या राजसु पूज्यते न तु धनं विद्याविहीनः पशुः॥ 

🏵️सत्संगति का महत्त्व-भर्तृहरि जीवन में सत्संग को अतीव महत्त्व देते थे। उनका मानना है कि सत्संग से बुद्धि निर्मल होती है, वाणी में सत्य का संचार होता है, मान सम्मान बढ़ता है, अवगुण दूर होते हैं तथा चित्त प्रसन्न और यश.........की है। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि सत्संगति मनुष्य के लिए सब कुछ प्राप्त कराती है। इसीलिए नीतिशतक में लिखा है कि-"सत्संगतिः कथय किन्न करोति पुंसाम्।

☸️" धन का महत्त्व-मनुष्य चाहे कितना भी विद्वान्, गुणवान् और सुशील क्यों न हो यदि उसके पास धन नहीं है,तो समाज में उसे उचित मान-सम्मान नहीं मिल पाता है। इसीलिए उन्होंने कहा है कि

यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः, स पण्डितः स श्रुतवान्गुणज्ञः।

स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वेगुणाः कांचनमाश्रयन्ति॥

धन को उन्होंने यद्यपि समस्त गुणों का आश्रय तो कहा है तथापि वे जानते थे कि धनमद में मनुष्य अनेकानेक बुराइयों को अपना लेता है। इसलिए उन्होंने धन के समुचित प्रयोग का वर्णन भी किया है। वे कहते हैं कि

दानं भोगो नाशस्तिस्त्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।

यो न ददाति न भुक्ते तस्य तृतीया गतिर्भवति॥ 

नीतिशतक में इन विषयों के अतिरिक्त नीति एवं लोकव्यवहार के अनेक विषयों का वर्णन किया है। भर्तृहरि जी ने भाग्य को अनिवार्य और अपरिहार्य माना है। सेवाधर्म को एक दुष्कर कार्य कहा है। यथा

"सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः।" 

क्रोध को वे मनुष्य का शत्रु मानते हैं, जो अपने को भी पराया बना देता है। इसलिए भर्तृहरि चाहते थे कि मनुष्य धैर्य, क्षमा, वाक्चातुर्य, शूरवीरता, यश:कामना, अध्ययन में रुचि आदि उन गुणों को अपनायें जो महापुरुषों के स्वाभाविक गुण हैं।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि समाजोपयोगी मनुष्य बनने हेतु नीतिशतक का अध्ययन प्रत्येक मनुष्य के लिए परमोपयोगी है।


☸️वैराग्यशतक☸️

शतक परम्परा में भर्तृहरि की यह तृतीया रचना प्रतीत होती है। युवावस्था के भोगपरक जीवन और शासक के नीतिनैपुण्य के जो अनुभव थे, उन सबका सार वैराग्यशतक में उपलब्ध होता है। वैराग्यशतक में भी विभिन्न छन्दों में संकलित शताधिक पद्य हैं। वैराग्यशतक में तृष्णा की दुष्वारता, प्रमाद की हानियों, भोगों की दुःखान्तता, वृद्धावस्था में मृत्युभय, विषयों के त्याग में सुख, राजा से त्यागी की श्रेष्ठता, राजा और विद्वान् की तुलना, बुद्धिमान् के कर्त्तव्य करालकाल की महिमा, सुखी-जीवन की परिभाषा, मन की चंचलता और संसार की अनित्यता आदि अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। भोगों की अनन्तता और तृष्णा की अनन्तता का वर्णन मनोरंजक ढंग से वैराग्यशतक में उपलब्ध होता है। यथा

भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्तास्तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः।

कालो न यातो वयमेव यातास्तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः॥

संसार के समस्त सुखों को नि:सार पाकर भर्तृहरि जी कहते हैं कि केवल शिवभक्ति ही परम सुखदायी है। यथा"सर्वं वस्तु भयान्वितं भुविनृणां शम्भोः पदं निर्भयम्॥" इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह विषय भोगों के पीछे भागते हुए मतवाले मन को अपने वश में करने का प्रयत्न करे। यथा

'क्षीवस्यान्तःकरणकरिण: संयमालानलीलाम्॥" 

चित्त को संसार से समेट कर ब्रह्म में आसक्त करें क्योंकि यही संसाररूपी सागर को पार करने का एकमात्र साधन है। यथा

ब्रह्मण्यासक्तचित्ता भवत भव भवाम्भोधिपारं तरितुम्॥" 

संक्षेप में कहा जा सकता है कि वैराग्यशतक के अनुसार प्रभुशरण ही जीवन के वास्तविक सुख का आधार है।

Comments

  1. Vishal bharti
    Major political science
    Sr no 16

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  2. Name -Riya
    Major -History
    Sr.no.-76

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  3. Pallavi pathania majer history sr.no. 45

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  4. Akriti choudhary
    Major history
    Sr no 11

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  5. Riya thakur
    Sr. No. 22
    Major political science

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  6. Name Priyanka devi ,Major History, Ser No 30.

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  7. Name. MOnika
    Sr.no23
    Major. History

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  8. Jagriti Sharma
    Serial no. 2
    Major-Hindi

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  9. Name arti sharma
    Sr no 32
    Major hindi

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  10. Sejal kasav
    Major sub.- pol science
    Minor sub.- hindi
    Sr.no.- 01

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  11. Rishav sharma major pol science sr no 65

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  12. Mehak
    Sr.no.34
    Major.political science

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  13. Rahul kumar
    Major. History
    Sry. No. 92

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  14. Poonam devi sr no 23 major political science

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  15. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr. No. 70

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  16. Mamta Bhardwaj
    Send no 01
    Major history

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  17. Name jyotika Kumari Major hindi Sr no 5

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  18. Name Priya major history sr.no .History

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  19. Divya Kumari
    Sr.No 60 major pol science

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  20. Kajal pathania major history sr no14

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  21. Tanvi Kumari
    Sr. No. 69
    Major pol. Science

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  22. Priyanka Devi
    Sr.no.23
    Major history

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  23. Mamta devi major history sr no 147

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  24. Neha Devi major history Sr no 62

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  25. Name Priya major history Roll Number 2001HS029

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  26. Chetna choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13

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  27. Sejal Kasav
    Major sub.-pol science
    Minor sub.-hindi
    Roll no.-2001PS001

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  28. Name palvinder kour major history minor hindi roll no 2001hs018

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  29. Jagriti Sharma
    Roll no. 2001HI003
    Major-Hindi

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  30. Priyanka choudhary major political science and minor Hindi sr no 12

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  31. Monika
    Rollno200HS014
    Major history

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  32. Akshita Kumari Major Political Science Roll No 2001PS035

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  33. Name rahul Kumar
    Major history
    Minor hindi
    Sr no. 92

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  34. Akanksha sharma sr no 13
    Major hindi
    Minor history

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  35. Shivam choudhary
    Sr. No. 78
    Major political science

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  36. Mehak
    Roll no.2001PS004
    Major political science

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  37. Tanu Guleria
    Sr. No. 32
    Major political science

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  38. Taniya sharma
    Pol. Science
    Sr no. 21

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  39. Priyanka Devi
    Ser no 30
    Major History
    Minor Hindi

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  40. Anuj Riyal
    Major __ Political Science
    Minor __ History
    Roll no. __ 2001PS025

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  41. Bharti choudhary major political science and minor Hindi Sr no 30

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  42. Anjli
    Major political science
    Minor history
    Roll.no 2001PS054

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  43. Manu
    Major history
    Minor Hindi
    Sr no 75

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  44. Name:Palak
    Sr. No. 22
    Major:Hindi
    Minor:History

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  45. Name Shivani Devi
    Sr no 46
    Major Hindi
    Minor history

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  46. Sourabh singh major Hindi minor history Sr no 20

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  47. Varsha Devi
    Major political science
    Sr no. 24

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  48. Name -Riya
    Major -History
    At. No. -76

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  49. Name -Riya
    Major -History
    At. No. -76

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  50. Monika Dadwal
    Major History
    Minor Hindi
    Sr.no 72

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  51. Pallvi choudhary
    Major-pol.sc
    Minor-history
    Sr.no-72

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  52. Name Rahul kumar
    Major history
    Sr.no.92

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  53. भर्तृहरी ची तीन शतके जीवनाचा अर्क आहेत....<.sdlimaye@gmail.com>

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