अव्ययीभाव
समास के मुख्यरूप से चार भेद हैं-
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. द्वन्द्व समास
4. बहुव्रीहि समास
कर्मधारय एवं द्विगु तत्पुरुष के ही दो अन्य भेद हैं। इनको जोड़कर कभी-कभी समास के छ भेद बता दिये जाते हैं।
☸️ अव्ययीभाव☸️
जिस समास में पूर्वपद का अर्थप्रधान हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं । “पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावः' इस समास का नाम अव्ययीभाव इसलिए पड़ा है क्योंकि इसका पहला पद कोई न कोई अव्यय (उपसर्ग या निपात) होता है।
✡️पूर्वपद एवं उत्तरपद🕉️-समासों की परिभाषाओं को समझने के लिए पूर्वपद तथा उत्तरपद को समझना अनिवार्य है। हम पहले जान चुके हैं कि समास में कम से कम दो पदों का होना अनिवार्य होता है। जैसे-"राजपुरुषः'' में एक "राज" (राजन्) पद है तथा दूसरा “पुरुष" पद है। इनमें "राज" पहला पद होने के कारण पूर्वपद कहलाता है तथा पुरुष दूसरापद होने के कारण उत्तरपद (परे वाला) कहलाता है।
अव्ययीभाव में पूर्वपद के अर्थ की प्रधानता का अर्थ है कि पहले पद का अर्थ ही मुख्य होगा। जैसे उपगङ्गम् में उप एवं गङ्गा दो पद हैं। इनमें उप (समीप) इसी अर्थ की प्रधानता है।
✡️अव्ययीभाव समास होने पर परिवर्तन,🕉️
अव्ययीभाव समास करने पर जिस अर्थ को शब्द द्योतित कर रहे हों उसी अर्थ का उपसर्ग आरम्भ में जोड़ दिया जाता है। जैसे-नद्या: समीपे = उपनदि यहाँ समीप अर्थ को प्रकट करने वाला "उप" उपसर्ग जोड़ा गया है। विष्णोः पश्चात् = अनुविष्णु यहाँ पश्चात् अर्थ को प्रकट करने वाला “अनु" उपसर्ग जोड़ा गया है।
2. दूसरे शब्द का अन्तिम वर्ण दीर्घ हो तो समास होने पर ह्रस्व हो जायेगा। अर्थात् आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ क्रमश: (अ, इ, उ, ऋ, इ, इ, उ, उ) ध्यान देने योग्य बात यह है कि ए ऐ ह्रस्व होकर इ में तथा ओ, औ ह्रस्व होकर "उ" में बदल जाते हैं। जैसे उपनदि में नदी की दीर्घ (बड़ी) ई छोटी "इ" में परिवर्तित हो गयी है। इसी प्रकार उप + गो: (गो: समीपे) उपगु तथा उप + नौ (नावः समीपे) = उपनु ।
3. अव्ययीभावसमास का समस्तपद सदैव नपुंसकलिंग एवं प्रथमा विभक्ति के एकवचन में ही प्रयुक्त होता है। जैसे निर्मक्षिकम्, यथाशक्ति आदि।
4. जिन शब्दों के अन्त में "न्" हो उनमें "न्" का लोप हो जाता है। जैसे उप + राजन् राज्ञः समीपे = उपराजम्, उप + चर्मन् = उपचर्म (चर्मणः समीपे)
5. शरत्, विपाश्, अनस्, मनस् उपानह, दिव्, हिमवत्, अनडुह, दिश् , दृश्, विश्, चेतस्, चतुर्, त्यद्, तद्, यद्, कियत् इन शब्दों का जब अव्ययीभाव समास होता है तब इनके अन्त में "अ" जोड़ दिया जाता है। जैसे शरदः समीपम् उपशरदम्। यदि शरद् में अ नहीं जोड़ते तो प्रथमा के एक वचन में उपशरद् रूप बनना था। "अ' जुड़ने से शरद् शब्द फल की तरह अकारान्त नपुंसकलिंग बन गया। तब प्रथमा एकवचन में रूप बना = उपशरदम्। प्रतिविपाशम्, अधिमनसम् उपदिशम् आदि।
6. अव्ययीभावसमास में सह शब्द को "स" हो जाता है। परन्तु कालवाचकशब्द सह के आगे नहीं होना चाहिए। जैसे-सह + हरि = सहरि (हरेः सादृश्यम्) सह + सखी = ससखि (सदृशः सख्या), सह + चक्रम् = सचक्रम् (चक्रेणयुगपत्)
7. अव्ययों का निम्न अर्थों में ही शब्दों के साथ समास होता है
☸️(क) विभक्ति अर्थ में-हरौ इति = अधि + हरि = अधिहरि (हरि के विषय में)। यहाँ हरौ में सप्तमी विभक्ति है, उसी के अर्थ में अधि अव्ययप्रयुक्त है। इसी प्रकार अधिरामम्, अधिविष्णु आदि।
☸️(ख) समीप अर्थ में-उप + गङ्गा (गङ्गायाः समीपम्) = उपगङ्गम्। (गङ्गा के समीप)
☸️ (ग) समृद्धि अर्थ में-सु + मद्रम् (मद्राणां समृद्धिः) = सुमद्रम् (मद्रास की समृद्धि)
☸️(घ) व्यृद्धि (अवनति, नाश) अर्थ में-दुर + यवनम् (यवनानां व्यृद्धिः) = दुर्यवनम् (म्लेच्छों की दुर्दशा)
☸️(ङ) अभाव अर्थ में-निर् + मशक (मशकानामभावः) = निर्मशकम् (मच्छरों का अभाव)
☸️ (च) अत्यय (नाश) अर्थ में-अति + हिमम् (हिमस्यात्ययः) = अतिहिमम् (ठण्ड की समाप्ति)
☸️(छ) असम्प्रति (अनौचित्य) अर्थ में-अति + निद्रा (निद्रा सम्प्रति न युज्यते)= अतिनिद्रम् (निद्रा के लिए अनुपयुक्त काल)
☸️(ज) शब्दप्रादुर्भाव अर्थ में-इति + हरिः (हरिशब्दस्य प्रकाश:) = इतिहरि (हरि शब्द का उच्चारण) ।
☸️(झ) पश्चात् अर्थ में-अनु + विष्णु (विष्णोः पश्चात्) = अनुविष्णु (विष्णु के पीछे)
☸️(ञ) यथा के अर्थ में- यथा शब्द योग्यता, वीप्सा (वारंवारता), अनतिक्रम (उल्लंघन न करना) तथा सादृश्य इन चार अर्थों में प्रयुक्त होता है। इन चारों अर्थों को नीचे उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है। यथा
यथा (योग्यता अर्थ में)- अनु + रूप (रूपस्य योग्यम्) = अनुरूपम् (रूप के योग्य)
यथा (वीप्सा अर्थ में) प्रति + दिन (दिनं दिनं प्रति) = प्रतिदिनम् यथा (अनतिक्रम अर्थ में)-यथा + शक्ति (शक्तिमनतिक्रम्य) = यथाशक्ति यथा (सादृश्य अर्थ में)-सह + हरि (हरेः सादृश्यम्) = सहरि (हरि के सदृश)
(ट) अनुपूर्व्य (क्रम) अर्थ में-अनु + ज्येष्ठ (ज्येष्ठस्यानुपूर्येण) = अनुज्येष्ठम् ज्येष्ठ के क्रम से (Seniority wise)
(ठ) यौगपद्य (एक साथ होने ) अर्थ में-सह + चक्र (चक्रेण युगपत्) सचक्रम् (चक्र के साथ)
(ड) सम्पत्ति के अर्थ में-स + क्षत्र (क्षत्राणां सम्पत्तिः) = सक्षत्रम् (क्षत्रियों की सम्पति)
Kalpna choudhary Roll no 1901HI065
ReplyDeleteKalpna choudhary Roll no 1901HI065
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ReplyDeleteVandna Bharti roll no 1901HI031
ReplyDeleteRupinder 1901HI004
ReplyDeletePriya choudhary 1807ph124
ReplyDeleterozi
ReplyDelete1901hi085
ReplyDeletePriyanka
roll number 1901hi059
Siya pathania 1901hi074
ReplyDeleteSonali Devi 1901hi039
ReplyDeleteShaveta kaler 1901hi058
ReplyDeleteShivani Devi
ReplyDeleteRoll. No 1901hi051
Ankita Kumari Roll No 1901Hi035
ReplyDeletePooja Devi
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Tanu Bala 1901hi079
ReplyDeleteRekha Devi
ReplyDelete1901hi024
Shweta kumari 1901hi011
ReplyDeletePriyanka 1901Hi034
ReplyDeletePooja
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simran devi
ReplyDelete1901hi077
major Hindi
Shivani Sharma 1901hi022
ReplyDeleteAnubala1801hi058
ReplyDeletePriyanka
ReplyDelete1901Hi034
Shikha manhas 1901hi072
ReplyDeleteKalpna choudhary Roll no 1901Hi065
ReplyDeleteTanu Bala 1901hi079
ReplyDeletesimran devi
ReplyDelete1901hi077
major Hindi
2nd year
Manisha 1901hi054
ReplyDeleteManisha 1901hi010
ReplyDeleteShweta kumari 1901hi011
ReplyDeleteShruti Pathania
ReplyDelete1901HI014
Shaweta choudhary
ReplyDelete1901hi038
1901hi079
ReplyDeleteKalpna choudhary Roll no 1901Hi065
ReplyDeletePooja Devi
ReplyDelete1901HI029
Shaweta choudhary
ReplyDelete1901hi038
Vandna Bharti roll no 1901hi031
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