क्त्वा एवं ल्यप् प्रत्यय

 🏵️ क्त्वा एवं ल्यप् प्रत्यय🏵️

जब एक ही कर्ता कई क्रियाओं का एक साथ सम्पादन करता है; उस समय वह क्रम में पहले एक क्रिया को करेगा तत्पश्चात् दूसरी क्रिया को करेगा। ऐसी स्थिति में जो क्रिया पहले सम्पन्न होती है; उससे क्त्वा प्रत्यय जोड़ा जाता है।
हिन्दी भाषा में जिस अर्थ की अभिव्यक्ति "करके " पद द्वारा होती; जैसे खेल करके, सो करके, खा करके उसी अर्थ की अभिव्यक्ति संस्कृत में धातुओं के साथ क्त्वा प्रत्यय जोड़ कर की जाती है। 
क्त्वा प्रत्यय का त्वा शेष रहता है। जैसे-
यह हस कर बोला। इस वाक्य में "वह" कर्ता है। इस कर्ता ने उपर्युक्त वाक्य में दो क्रियाओं हँसना और बोलना का
सम्पादन किया है। उनमें से हंसने की क्रिया पहले सम्पन्न हुई है तथा बाद में बोलने की क्रिया हुई है। अत: क्त्वा (त्वा)प्रत्यय का प्रयोग हस् धातु से होगा। वद् धातु के साथ नहीं। इसलिए उपयुक्त वाक्य का अनुवाद होगा-"स हसित्वा अवदत"
🌼कत्वा प्रत्यय जोड़ने के निम्न नियम हैं-
क्त्वा प्रत्यय जोड़कर बने शब्द अव्यय होते हैं। इसलिए उनमें लिंग, वचन तथा विभक्ति के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है।
(ii) क्त्वा प्रत्यय धातुओं से प्रायः उनके मूल रूप से ही जोड़ दिया जाता है। 
जैसे-नी + क्त्वा = नीत्वा (लेजाकर), 
       कृ + क्त्वा = कृत्वा (करके), 
       पा + क्त्वा = पीत्वा, 
       दृश् + क्त्वा = दृष्ट्वा ।
(iii) क्त्वा प्रत्यय जोड़ने पर कतिपय धातुओं में धातु और प्रत्यय के बीच में "इ" जुड़ जाती है। 
जैसे-पठ् + क्त्वा= पठित्वा, 
       लिख + क्त्वा = लिखित्वा।
(iv) ऐसी नकारान्त धातुएँ जिनके बाद "इ" का आगम नहीं होता है, उनसे क्वा प्रत्यय जोड़ने पर उनके अन्तिम
न का लोप हो जाता है। 
जैसे -मन् + क्त्वा = मत्वा (मानकर), 
       हन् + क्त्वा = हत्वा (मारकर), 
       नम् + क्त्वा = नत्वा(नमस्कार करके), 
       गम् + क्त्वा = गत्वा (जाकर) आदि।

🏵️ल्यप् प्रत्यय🏵️
ल्यप प्रत्यय कत्वा के स्थान पर ही होता है। यदि धातु से पूर्व कोई उपसर्ग हो और उस धातु से क्त्वा प्रत्यय जोड़ा जाये तो क्त्वा ल्यप् में परिवर्तित हो जाता है। ल्यप् का "य" शेष रहता है तथा यह भी क्त्वा के अर्थ को ही व्यक्त करता है।
               जैसे-सम् + भू + क्त्वा
यहाँ धातु से पूर्व सम् उपसर्ग होने के कारण क्त्वा के स्थान पर ल्यप् (य) हो गया, तब रूप बना सम्भूय (अच्छी प्रकार होकर)। यदि सम् उपसर्ग को हटा दें तो रूप बनेगा भूत्वा (होकर)।
              सम् + भू +ल्यप-- सम्भूय
                        भू+कत्वा--भूत्वा

👉ल्यप् के पूर्व यदि धातु का ह्रस्व स्वर हो तो धातु और ल्यप् के "य" के मध्य त् जुड़ जाता है। 
जैसे-वि + जि+ ल्यप्--विजित्य
यहाँ ल्यप् प्रत्यय से पूर्व जि धातु में ह्रस्व स्वर अर्थात् छोटी इ है। अत: धातु और प्रत्यय के बीच त् जुड़ जायेगा
तब रूप बनेगा विजित्य (जीतकर)। इसी प्रकार 
आ + धृ + ल्यप् = आधृत्य।

👉धातुओं के क्त्वा एवं ल्यबन्त (ल्यप् + अन्त) रूप
धातु क्त्वा प्रत्यान्त रूप। अर्थ ल्यबन्त रूप अर्थ
कथ् कथयित्वा कहकर प्रकथ्य विशेष रूप से कहकर
रक्ष् रक्षित्वा। रक्षा करके संरक्ष्य अच्छे से रक्षा करके
कृ कृत्वा करके उपकृत्य उपकार करके
नम् नत्वा नमस्कार करके प्रणम्य विशेषत से प्रणाम करके
पच पक्त्वा पकाकर सम्पच्य भली-भान्ति पकाकर
नी नीत्वा ले जाकर आनीय लाकर
पा पीत्वा पीकर प्रपीय अधिक पीकर
पत् पतित्वा गिरकर निपत्य निश्चित रूप से गिरकर
नृत् नर्तित्वा नाचकर संनृत्य भली-भान्ति नाचकर
हस् हसित्वा हँसकर विहस्य विशेष रूप से हँसकर
क्रीड् क्रीडित्वा खेलकर प्रक्रीड्य अत्यधिक खेल कर
शु श्रुत्वा सुनकर संश्रुत्य भली-भान्ति सुनकर
हन् हत्वा मारकर संहत्य भली-भान्ति मारकर
पृच्छ् पृष्ट्वा पूछकर सम्पृच्छ्य भली-भान्ति पूछकर
दृश दृष्ट्वा देखकर सदृश्य भली-भान्ति देखकर
भू भूत्वा होकर सम्भूय भली-भान्ति होकर
पठ पठित्वा पढकर सम्पठ्य भली-भान्ति पढ़कर
वच उक्त्वा बोलकर प्रोच्य अधिक बोलकर
रच रचयित्वा रचकर विरच्य विशेष रूप से रचकर
गृहीत्वा ग्रहण करके प्रगृह्य विशेष रूप से ग्रहण करके
चि चित्वा चुनकर संचित्य भली-भान्ति चुनकर
क्री क्रीत्वा खरीदकर विक्रीय बेचकर
कूर्दित्वा कूदकर प्रकूर्च बड़ी छलांग लगाकर
अस् भूत्वा होकर सम्भूय भली-भान्ति होकर
अर्च अर्चित्वा पूजा करके समर्थ्य भली-भान्ति पूजा करके
अद् जग्ध्वा खाकर प्रजग्ध्य भली-भान्ति खाकर

Comments

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  2. simran devi
    1901hi077
    major Hindi
    2nd year

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