मंत्रोंच्चारण क्यूं करना चाहिए,,जाने

 * वैज्ञानिकों का भी मानना है कि ध्वनि तरंगें ऊर्जा का ही एक रूप हैं। मंत्र में निहित बीजाक्षरों में उच्चारित ध्वनियों से शक्तिशाली विद्युत तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो चमत्कारी प्रभाव डालती हैं।

* सकारात्मक ध्वनियां शरीर के तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं जबकि नकारात्मक ध्वनियां शरीर की ऊर्जा तक का ह्रास कर देती हैं। मंत्र और कुछ नहीं, बल्कि सकारात्मक ध्वनियों का समूह है, जो विभिन्न शब्दों के संयोग से पैदा होते हैं।

* मंत्रों की ध्वनि से हमारे स्थूल और सूक्ष्म शरीर दोनों सकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। स्थूल शरीर जहां स्वस्थ होने लगता हैं, वहीं जब सूक्ष्म शरीर प्रभावित होता है तो हम में या तो सिद्धियों का उद्भव होने लगता है या हमारा संबंध ईथर माध्यम से हो जाता है और इस तरह हमारे मन व मस्तिष्क से निकली इच्छाएं फलित होने लगती हैं।

* निश्चित क्रम में संग्रहीत विशेष वर्ण जिनका विशेष प्रकार से उच्चारण करने पर एक निश्चित अर्थ निकलता है। अंत: मंत्रों के उच्चारण में अधिक शुद्धता का ध्यान रखा जाता है। अशुद्ध उच्चारण से इसका दुष्प्रभाव भी हो सकता है।

* रामचरित मानस में मंत्र जप को भक्ति का 5वां प्रकार माना गया है। मंत्र जप से उत्पन्न शब्द शक्ति संकल्प बल तथा श्रद्धा बल से और अधिक शक्तिशाली होकर अंतरिक्ष में व्याप्त ईश्वरीय चेतना के संपर्क में आती है जिसके फलस्वरूप मंत्र का चमत्कारिक प्रभाव साधक को सिद्धियों के रूप में मिलता है।

* शाप और वरदान इसी मंत्र शक्ति और शब्द शक्ति के मिश्रित परिणाम हैं। साधक का मंत्र उच्चारण जितना अधिक स्पष्ट होगा, मंत्र बल उतना ही प्रचंड होता जाएगा।

* मंत्रों में अनेक प्रकार की शक्तियां निहित होती हैं जिसके प्रभाव से देवी-देवताओं की शक्तियों का अनुग्रह प्राप्त किया जा सकता है। मंत्र एक ऐसा साधन है, जो मनुष्य की सोई हुई सुसुप्त शक्तियों को सक्रिय कर देता है।

 

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