♈महर्षि भृगु♈
भृगु - एक सूक्तदृष्टा। ऋग्वेद के नववें मंडल का 65 व
सूक्त भृगु तथा जमदग्नि ने तथा दसवे मंडल का 19 वां
सूक्त भृगु, मथित तथा च्यवन ने मिलकर रचा है।
भृगु के जन्म के संबंध में भिन्न भिन्न मत है, परंतु
सामान्यतः ब्रह्मदेव से उनकी उत्पत्ति बतलाई जाती है। ऐतरेय
ब्राह्मण, गोपथ ब्राह्मण, तैत्तिरीय ब्राह्मण, महाभारत, भागवत
और पुराणों में उनकी उत्पत्ति की कथाएं है।
ऋग्वेद में उल्लेख है कि भृगु ने मानव जाति के उपयोग
के लिये अग्नि का आविष्कार किया। भृगु शब्द भृज धातु
से बना है, जिसका अर्थ भूनना है। महाभारतकार भृगु शब्द
की उत्पत्ति भृक् धातु से बतलाते हैं, जिसका अर्थ ज्वाला
है। ऋग्वेद ने मातरिश्वा को अग्नि का आविष्कारकर्ता बतलाया
है। एक ही तत्त्व के दो आविष्कार होने से, प्रश्न निर्माण
होता है कि दोनों के आविष्कार को क्या विशेषता है। इसका
समाधान इस प्रकार है : मातारिश्वा ने भौतिकशास्त्र की दृष्टि
से तथा भृगु ने व्यावहारिक उपयोग की दृष्टि से अग्नि का
आविष्कार किया।
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