तत्पुरुष समास
✡️तत्पुरुष समास ✡️
जिस समास में उत्तरपद के अर्थ की प्रधानता हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। "उत्तरपदार्थ प्रधानतत्पुरुषः जैसे-राज्ञःपुरुषः = राजपुरुषः यहाँ पर राजा और पुरुष दो पद हैं। परन्तु उत्तरपद "पुरुष" के अर्थ की ही प्रधानता है क्योंकि यदि किसी को कहें कि राजपुरुष को बुला लाओ तो वह व्यक्ति राजा को न लाते हुए किसी पुरुष को ही लाता है। अतः स्पष्ट है कि इसमें उत्तरपद की प्रधानता है। तत्पुरुष में पूर्वपद उत्तरपद के विशेषण का कार्य करता है। इसलिए राजपुरुष का अर्थ राजा का नौकर माना जाता है।
✡️भेद✡️
तत्पुरुष के तीन मुख्य भेद माने जाते हैं।
1. व्यधिकरणतत्पुरुष
2. समानाधिकरणतत्पुरुष
3.अन्यतत्पुरुष
✡️1. व्यधिकरणतत्पुरुष-यदि तत्पुरुषसमास के प्रथमपद में तथा द्वितीयपद में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ हों तो उसे व्यधिकरणतत्पुरुषसमास कहते हैं।
जैसे-हरिणा त्रातः = हरित्रात: यहाँ पूर्वपद में तृतीया तथा उत्तरपद में प्रथमा विभक्ति होने से यह व्यधिकरणतत्पुरुष समास है।
☸️व्यधिकरणतत्पुरुष भेद ☸️
कारक विभक्तियों के आधार पर व्यधिकरणतत्पुरुष छ: प्रकार का होता है। यद्यपि विभक्तियाँ सात होती हैं तथापि प्रथमातत्पुरुष नहीं हो सकता क्योंकि तब प्रथम और द्वितीय दोनों पदों में समान विभक्ति होने से वह समानाधिकरणतत्पुरुष बन जायेगा। शेष द्वितीया, तृतीया आदि विभक्तियों के तत्पुरुष उस-उस विभक्ति के आधार पर द्वितीयातत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष आदि नामों से पुकारे जाते हैं। प्रथमपद की विभक्ति के आधार पर ही समास का नाम रखा जायेगा।
☸️ उदाहरण
द्वितीयातत्पुरुषः-पूर्वपद में द्वितीया विभक्ति होना अनिवार्य शर्त है।इसमें श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यस्त, प्राप्त, एवं आपन्न शब्दों का द्वितीयान्त के साथ विकल्प से (ऐच्छिक) समास होता है। यथा
कृष्णं श्रितः कृष्णश्रित: कृष्ण पर आश्रित।
अग्निं पतितः अग्निपतितः अग्नि में गिरा हुआ।
प्रलयं गतः प्रलयगतः विनाश को प्राप्त।
मेघम् अत्यस्त: मेघात्यस्तः मेघ से परे पहुँचा हुआ।
☸️ तृतीया-तत्पुरुष-समास:-पूर्वपद में तृतीया विभक्ति होती है। यथा
ईश्वरेण त्रातः ईश्वरत्रातः ईश्वर से रक्षित। नखैर्भिन्नः नखभिन्न: नाखूनों से नोंचा हुआ।
मासेन पूर्वः मासपूर्वः महीना पहले।
मात्रा सदृशः मातृसदृशः माता के समान।
☸️ चतुर्थीतत्पुरुषसमास:-पूर्वपद में चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा
यूपाय दारु यूपदारु यज्ञस्तम्भ के लिए लकड़ी कुम्भाय मृत्तिका कुम्भमृत्तिका घड़े के लिए मिट्टी द्विजाय द्विजाय अयम् द्विजार्थः ब्राह्मण के लिए
भूतेभ्यो बलिः भूतबलिः भूतों (जीवों) के लिए बलिः ब्राह्मणाय हितम् ब्राह्मणहितम् ब्राह्मण का हित
☸️पञ्चमीतत्पुरुषसमासः- पूर्वपद में पञ्चमी विभक्ति होती है। यथा
चौराद् भयम् चौरभयम् चोर से डर।
सिंहाद् भीत: सिंहभीत: शेर से डरा हुआ। स्तोकात् मुक्तः। स्तोकान्मुक्तः थोड़ा देकर मुक्त हुआ अन्तिकात् आगतः अन्तिकादागतः नजदीक से आया हुआ। दूरात् आगतः। दूरादागतः दूर से आया हुआ।
☸️स्तोक, अन्तिक, दूर आदि के साथ पञ्चमीतत्पुरुष समास तो होता है परन्तु पञ्चमी विभक्ति का लोप नहीं। केवल दोनों पद एकपद बन जाते हैं।
☸️पष्ठीतत्पुरुषसमासः-पूर्वपद में पष्ठी विभक्ति होती है। यथा
राज्ञः पुरुषः। = राजपुरुष: राजा का सेवक
देवस्य पूजकः देवपूजकः देवता का पुजारी
राज्ञः परिचारक:। राजपरिचारकः राजा का सेवक
✡️ कतिपय शब्दों में षष्ठयन्त शब्द बाद में आता है। यथा
पूर्वं कायस्य। पूर्वकायः शरीर का पूर्वभाग
अपरं कायस्य अपरकायः शरीर का दूसराभाग उत्तरं कायस्य = उत्तरकायः शरीर का उत्तरभाग अधरं कायस्य अधरकायः शरीर का निचलाभाग
☸️सप्तमीतत्पुरुषसमासः- पूर्वपद मे सप्तमीविभक्तिः होती है। सप्तम्यन्त शब्दों का प्रायः शौण्ड, धूर्त, कितव, निपुण, प्रवीण, पण्डित, कुशल, सिद्ध, शुष्क, पक्व, पल, पटु, संवीत, अन्तर अधि, बन्ध आदि शब्दों के साथ समास होता है। यथा
अक्षेषु शौण्डः। अक्षशौण्डः पाशे खेलने में चतुर। प्रेम्णि धूर्तः। प्रेमधूर्तः स्नेह में कपट करने वाला। द्यूते कितवः। द्यूतकितवः जुआ खेलने में कपटी। कलायाम् प्रवीण: = कलाप्रवीण: कलाकुशल। रणे कुशलः। रणकुशलः युद्धविद्या में निपुण।
☸️ समानाधिकरणतत्पुरुष-यदि तत्पुरुषसमास के दोनों पदों में समान विभक्ति का प्रयोग हो; तो उसे समानाधिकरण तत्पुरुषसमास कहते हैं।
जैसे-कृष्णः सर्पः = कृष्णसर्पः, रक्तं कमलम् = रक्तकमलम् इन दोनों उदाहरणों में कृष्ण तथा सर्प एवं रक्त तथा कमल दोनों में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग हुआ है। रक्त एवं कमल नपुंसकलिङ्ग शब्द हैं। अत: उनमें द्वितीया विभक्ति नहीं समझनी चाहिए। समा👉समानाधिकरण, एक अर्थ यह भी है कि इस समास में जो दो शब्द प्रयुक्त होते हैं; उनका आधार समान अर्थात् एक ही होता है।
जैसे-कृष्णसर्पः में प्रयुक्त कृष्ण=काला रंग और सर्प =साँप एक ही आधार साँप में उपलब्ध हैं। रंग और सर्प पृथक्-पृथक् नहीं हैं।
✡️समानाधिकरणतत्पुरुष के भेद✡️ समानाधिकरणतत्पुरुष के मुख्यरूप से दो भेद हैं
1. कर्मधारय
2. द्विगु
☸️ 1. कर्मधारयः-☸️जिस समास में एकपद विशेषण हो और दूसरा विशेष्य तब वह कर्मधारय समास कहलाता है। इसके विशेषणपूर्वपद, उपमानपूर्वपद, उपमेयपूर्वपद तथा विशेषणोभयपद आदि उपभेद हैं।
☸️ विशेषणपूर्वपद कर्मधारय
कृष्ण :+सर्पः कृष्णसर्पः कालासाँप
नीलम् + उत्पलम् नीलोत्पलम नीलाकमल
रक्तं + कमलम् रक्तकमलम् लालकमल कुत्सितः पुरुषः कुपुरुषः बुराआदमी
☸️विशेषणोभयपद कर्मधारयः- यदि समास के दोनों पद विशेषण ही हों तो। वह विशेषणोभयपदसमास कहलाता है। जैसे
कृष्णः च श्वेत: च कृष्णश्वेतः (अश्वः) काला और सफेद
कृतश्च अकृतश्च कृताकृतम् (कर्म)। अधूरा
चरञ्च अचरञ्च चराचरम् (जगत्) जड़ चेतन
☸️उपमानपूर्वपद कर्मधारयः- इस समास में उपमानपूर्वपद होता है तथा उपमेय उत्तरपद। जिस वस्तु से किसी की तुलना (उपमा) की जाय उसे उपमान कहते हैं तथा जिसकी तुलना की जाय; उसे उपमेय कहते हैं।
जैसे-घन इव श्यामः यहाँ पर श्याम (काले रंग) की तुलना घन (मेघ) से की गई है तथा उपमान "घन" के पूर्वपद होने के कारण यह उपमानपूर्वपद कर्मधारय समास है। अन्य उदाहरण
निशा इव शान्तः निशाशान्तः रात्रि के समान शान्त। वानरः इव चंचल: वानरचंचल: बन्दर के समान चंचल। हिमम् इव श्वेतः हिमश्वेतः बर्फ के समान सफेद।
☸️उपमानउत्तरपदकर्मधारयः-इस समास में उपमेय पूर्वपद होता है तथा उपमान उत्तरपद। जैसे
पुरुषः व्याघ्रः इव पुरुषव्याघ्रः बाघ के समान पुरुष। मुखं कमलमिव मुखकमलम् कमल के समान मुँह। ना सिंह: इव नृसिंहः विष्णु नृ शब्द का मुखं चन्द्रः इव मुखचन्द्रः चन्द्रमा के समान मुँह
☸️द्विगुतत्पुरुषसमासः-कर्मधारयसमास में जब प्रथम शब्द संख्यावाची हो; तो उसे द्विगुसमास कहते हैं। महर्षि पाणिनि ने कहा है-“संख्यापूर्वोद्विगुः।" यह तथ्य “द्विगु" नाम से भी स्पष्ट है क्योंकि नाम में पहला शब्द 'द्वि' संख्यावाचक है। द्विगुसमास तद्धितप्रत्यायान्त शब्द के साथ एवं समूह अर्थ में होता है। यथा
षण्णां मातॄणामपत्यं पुमान् --------षाण्मातुरः (छः माताओं की सन्तान
पञ्चानां गवां समाहारः -------- पञ्चगवम्
पञ्चानाम ग्रामाणां समाहारः-----पञ्चग्रामम्
चतुर्णां युगानां समाहारः---------चतुर्युगम्
पञ्चानां पात्राणां समाहारः-----पञ्चपात्रम्
त्रयाणां भुवनानां समाहारः-------त्रिभुवनम्
पञ्चानां तन्त्राणां समाहारः-----+++पञ्चतन्त्रम्
☸️तत्पुरुषसमास के कतिपय अन्य भेद
नञ्-तत्पुरुष-यदि पूर्वपद "न" हो और दूसरा कोई संज्ञा या विशेषण; तो उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते हैं। इसके नाम से ही स्पष्ट है कि जिस समास में "न" कहा गया हो अर्थात् विलोम शब्द बनाये गये हो; वह "नञ् समास" कहलाता है।
✡️1️⃣-(i) न के आगे यदि व्यंजनवर्ण हो तो "न" को "अ" हो जाता है। जैसे-
न लोभी = अलोभी,
न क्षत्रिय = अक्षत्रिय।
✡️2️⃣(ii) न के आगे स्वरवर्ण आने पर "न" अन् में परिवर्तित हो जाती है। "तस्मान्नुडचि" सूत्र से न के बचे हुए । के मध्य नुड् का झामम होता है। जैसेन अश्व = अनश्व, न उपकार = अनुपकार । अन्य उदाहरण
न ब्राह्मण = अब्राह्मण
न सम्भव = असम्भव
न ज्ञान = अज्ञान
न पूर्ण =अपूर्ण
न विद्या =अविद्या
न चरम् =अचरम्
न प्रसिद्ध=अप्रसिद्ध
☸️प्रादितत्पुरुषसमासः-यदि प्र या परा आदि उपसर्गों में से कोई तत्पुरुषसमास के आरम्भ में आये तो उसे प्रादितत्पुरुषसमास कहते हैं। जैसे
प्रगतः आचार्य: प्राचार्यः (वरिष्ठ आचार्य)
प्रगत: पितामहः प्रपितामहः (परदादा)
प्रतिगत: अक्षम् प्रत्यक्षम् (आँखों के सामने)
उद्गतः वेलाम् उद्वेल: (किनारे से दूर)
☸️गतितत्पुरुषसमासः
कुछ कृत् प्रत्ययान्त अर्थात् क्त, क्त्वा, तव्यत, आदि में अन्त होने वाले शब्दों का ऊरी, शुक्ली, स्वी, पटपटा, भू, अलं (भूषणार्थक) सत् एवं असत् आदि के साथ समास होता है, उसे गतितत्पुरुष कहते हैं। इसका नाम गति इसलिए रखा गया है कि ऊरी आदि शब्दक्रिया के साथ प्रयुक्त होने पर गति संज्ञा को प्राप्त हो जाते हैं। उदाहरण
अनूरी ऊरी कृत्वा ऊरीकृत्य
अशुक्लं शुक्लं कृत्वा शुक्लीकृत्य। पटपटा इति शब्दं कृत्वा पटपटाकृत्य
अनीलं नीलं कृत्वा। = नीलीकृत्य
अलं कृत्वा। = अलंकृत्य सत् कृत्वा
☸️उपपदतत्पुरुषसमासः-जब किसी समास के पूर्वपद में कोई ऐसा अव्यय या संज्ञा हो जिसके न रहने से, उस समास का द्वितीय शब्द निरर्थक सा हो जाये; उसे उपपद- तत्पुरुषसमास कहते हैं। उपपद का अर्थ है-पूर्वपद। जैसेकुम्भं करोति = कुम्भकार: यहाँ कुम्भपूर्वपद है, जिसके हटने से कारः निरर्थक हो जायेगा।
साम गायति इति सामग:
स्वर्णं करोति इति। स्वर्णकार:
विश्वं जयति इति विश्वजित्
Roll no 1901Hi044
ReplyDeleteTanu Bala 1901hi079
ReplyDeleteSiya pathania 1901hi074
ReplyDeleteSonali Devi 1901hi039
ReplyDeleteShaveta kaler 1901hi058
ReplyDeleteKalpna choudhary Roll no 1901HI065
ReplyDeleteKalpna choudhary Roll no 1901HI065
ReplyDeletePooja Devi
ReplyDelete1901HI029
Nancy
ReplyDelete1901HI009
Manisha 1901hi010
ReplyDeleteRekha Devi
ReplyDeleteRoll no. 1901HI024
Ankita Kumari Roll No 1901Hi035
ReplyDelete
ReplyDeletePriyanka
roll number 1901hi059
Rupinder 1901HI004
ReplyDeletePriya choudhary 1807ph124
ReplyDeletePalvid13@gmail.com
ReplyDeleteTamanna 1901hi068
ReplyDeleteSakshi Devi
ReplyDelete1901hi015
Vandna Bharti roll no 1901HI031
ReplyDeleteNancy
ReplyDelete1901HI009
1801EN036
ReplyDeletePooja
simran devi
ReplyDelete1901hi077
major Hindi
Anu bala180hi058
ReplyDeleteAnu bala180hi058
ReplyDeleteAnkita Kumari Roll No 1901Hi035
ReplyDeleteManisha 1901hi054
ReplyDeleteIshita
ReplyDelete1901HI070
1901hi021
ReplyDeleteAmisha 1901HI001
ReplyDeleteShruti Pathania
ReplyDelete1901HI014
shikhamanhas 1901HiO72
ReplyDeletePooja Devi
ReplyDelete1901HI029
Tanu Bala 1901hi079
ReplyDeletePriyanka
ReplyDelete1901Hi034
Shweta kumari 1901hi011
ReplyDeleteAnu bala 1801hi058
ReplyDeleteTamanna Roll No 1901Hi068
ReplyDeleteManisha 1901hi010
ReplyDeleteSakshi Devi
ReplyDelete1901hi015
Sakshi 1901hi005
ReplyDeleteIshita
ReplyDelete1901HI070
Tanu Bala 1901hi079
ReplyDeleteRiya sharma
ReplyDelete1901hi002
Vandna Bharti roll no 1901hi031
ReplyDeleteVandna Bharti roll no 1901hi031
ReplyDeleteShaweta choudhary
ReplyDelete1901hi038
Sakshi 1901hi005
ReplyDeletePriyanka.
ReplyDelete1901Hi034