विदूषक

 🌼विदूषक नामक संस्कृत नाटकों के पात्र को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है उत्तम, मध्यम और निम्न।

नायक नायकादि उत्तम कोटि में

 नट तथा उसके सहायक मध्यम कोटि में एवं 

नायक-नायिका के परिचर निम्न कोटि में रखे जाते हैं। 

इन श्रेणियों में विदूषक की गणना मध्यम श्रेणी में की जाती है। संस्कृत नाटकों का यह पात्र राजा का सहायक और नर्मसचिव होता है। यह राजा का अन्तरंग मित्र होता है जिसके कारण राजा अपने निजी जीवन की प्रेम प्रसंगों से सम्बन्धित तथा अन्त:पुर की अन्य बातों को भी विदूषक से कह देता है। विदूषक हास-परिहास पूर्ण अपने कथनों से बहुत-सी सच्ची और उपयोगी बातें राजा को बता देता है। संस्कृतनाटकों में यह प्रायः पेट्ट, हंसोड़, विचित्र वेशभूषा धारण करने वाला पात्र होता है। विदूषक को प्रायः कुसुम, वसन्तक, वैधेय आदि नामों से पुकारा जाता है। यह नाटक के अन्य पात्रों का कलह करवाकर भी अपना काम निकालने में निपुण पात्र होता है। साहित्यदर्पण में विदूषक को निम्न प्रकार से पारिभाषित किया गया है। यथा

कुसुमवसन्ताद्यभिधः कर्मपटुर्वेषभाषाद्यैः। 

हास्यकरः कलहरतिर्विदूषकः स्यात्कर्मज्ञः॥


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