सत्कार्यवाद्
असद्करणाद् उपादानग्रहणात् सर्वसंभवाऽभावात् ।
शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावात् च सत्कार्यम्।।"
👉1) असद्करणात् - उदाहरण -तिल से ही तेल निकलता है, बालू से नहीं। बाल, में तेल नहीं होता अतः उससे कितने भी प्रयत्न करने पर तेल कदापि नहीं निष्पन्न होता।
👉2) उपादानग्रहणात् प्रत्येक कार्य के लिये विशिष्ट उपादान कारण का ही ग्रहण आवश्यक होता है। उदाहरणार्थ, घटनिर्माण करने के लिए मिट्टी ही आवश्यक होती है, तन्तु नहीं।
👉3) सर्वसम्भवाऽभावात् - सभी कार्य सभी कारणों से नहीं उत्पन्न होते । बालू से तेल या तिल से घट नहीं निर्माण होता।
👉4) शक्तस्य शक्यकरणात् - शक्तिसम्पन्न वस्तु से शक्य वस्तु की ही उत्पत्ति होती है। जैसे दूध से दही हो सकता है किन्तु तेल, घट या पट नहीं।
👉5) कारणभावात् - प्रत्येक कार्य, कारण का ही अन्य स्वरूप है। घटरूप कार्य, मिट्टि स्वरूप कारण का ही अन्य रूप है। दोनों का स्वभाव एक ही होता है।
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