काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला

 🌻 काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला🌻

काव्य दृश्य एवं श्रव्य दो भेदों से युक्त हैं। श्रव्यकाव्य पुनः गद्य एवं पद्य दो प्रकार के होते हैं। जिन काव्यों में गद्य एवं पद्य दोनों का प्रयोग होता है; उन्हें चम्पू काव्य कहा जाता है। पुनः मुक्तक, प्रबन्ध (महाकाव्य) एवं कथा तथा आख्यायिका आदि काव्य के अनेक भेद हैं।
काव्य के दृश्य भेद के अन्तर्गत रूपक (नाटक) आते हैं। अभिनेयता इनकी प्रमुख विशेषता है तथा इनमें गद्य एवं पद्य दोनों का प्रयोग होता है। ये नाटक किसी प्रसिद्ध कथानक को लेकर लिखे होते हैं तथा इनका विभाजन अंकों में होता है। रूपकों के दस भेद नाटक, प्रकरण, भाण, व्यायोग, समवकार, डिम, ईहामृग, अंक, वीथी एवं प्रहसन है।
भरत के नाट्य-शास्त्र में नाटकों की उत्पत्ति के विषय में कहा गया है कि सांसारिक मनुष्यों को अतीव दुःखी देखकर इन्द्रादि देवों ने ब्रह्मा के पास जाकर किसी ऐसे बेद की रचना के लिए प्रार्थना की जिसका आनन्द चारों वर्णों के लोग अर्थात् जो ऋग्वेदादि को पढ़ने के अधिकारी नहीं है या स्त्रियाँ एवं बच्चे जो वेदों को पढ़ने में सक्षम नहीं है; वे सब प्राप्त कर सकें। यह सुनकर ब्रह्मा ने चारों वेदों का ध्यान किया और ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गान, यजुर्वेद से अभिनय तथा अथर्ववेद से रस लेकर "नाट्यवेद" नामक पञ्चमवेद की रचना की। नाट्यशास्त्र में लिखा है-
जग्राह पाठ्यमृग्वेदात्सामभ्योगीतमेव च।
यजुर्वेदादभिनयान् रसानाथर्वणादपि।।
स्पष्ट है कि नाटक की रचना समाज के सभी वर्गों के आनन्द हेतु ही हुई है। तथा अपनी अभिनेयता एवं अनुकृति के कारण इसका प्रभाव दर्शकों पर अधिक होता है। इसीलिए काव्य की समस्त विधाओं में नाटक को श्रेष्ठ माना जाता है। इससे सिद्ध हुआ कि "काव्येषु नाटकं रम्यम्।" भरतमुनि का यह कथन कि-
न तज्ज्ञानं न तचिछिल्पं 
न सा विद्या न सा कला।
न स योगो न तत्कर्म 
नाटके यन्न दुश्यते। ।
भी नाटक को काव्य की अन्य विधाओं से श्रेष्ठ स्थापित करता है।
परन्तु समीक्षकों का कथन है कि नाटकों में भी महाकवि कालिदास विरचित नाटक " अभिज्ञानशाकुन्तलम्" अतीव रुचिकर है। समीक्षकों के इस कथन के निम्न कारण हो सकते हैं-
1. लोकव्यवहार की सार्वकालिक शिक्षा-महाकवि कालिदास ने "अभिज्ञानशाकुन्तलम्" में बेटी को ससुराल
भेजते समय महर्षि कण्व के मुख से लोकव्यवहार की जो शिक्षा दिलवायी है। वह आज भी उतनी ही उपयोगी है जितनी उस समय थी। वे कहते हैं कि बेटी ससुराल में जाकर अपने से बड़ों की सेवा करना सौतनों के साथ प्रिया सखियों जैसा व्यवहार करना, कदाचित् पति के क्रोधित हो जाने पर भी उसके विरुद्ध आचरण मत करना, नौकर-चाकरों के प्रति उदार बन कर रहना तथा समृद्धि पर गर्व मत करना जो युवतियाँ इन नियमों का पालन करती हैं; वे उत्तम गृहिणी के पद को प्राप्त करती हैं तथा जो ऐसा व्यवहार नहीं करती है; वे उस कुल के लिए मानसिक चिन्ता का कारण बन जाती हैं।

2. माता-पिता की उपेक्षा का विपरीत फल -महाकवि कालिदास ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् के मूलोक्देश्य के रूप में माता-पिता की अनुमति के विना किये गये विवाह को रखा है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि राजा या रंक जो कोई भी माता-पिता की अनुमति के बिना प्रेम-विवाह की राह पर चलता है; उसे दुष्यन्त एवं शकुन्तला की तरह कष्ट भोगने पड़ते हैं तथा तिरस्कृत होना पड़ता है। ई०पू० प्रथम शताब्दी में दिया गया यह उपदेश आज के युग के युवाओं के लिए भी उतना ही उपयोगी है। जितना उस समय था कालिदास जी ने महर्षि कण्व के शिष्य शार्ङ्गरव के माध्यम से दो टुक शब्दों में कहलवाया है कि-
अतः परीक्ष्य कर्त्तव्यं विशेषात् संगतं रहः।
अज्ञात हदयेष्वेवं वैरी भवति सौहृदम् ।

3. अतिथि देवो भव की शिक्षा-शकुन्तला अपने प्रेमी राजा दुष्यन्त के राजधानी लौट जाने पर उसके रख्यालों में इतनी डब गयी कि उसे द्वार पर भिक्षा मांग रहे तपस्वी की आवाज भी नहीं सुनायी दी, जिससे अतिथि ने स्वयं को तिरस्कृत अनुभव किया और क्रोध में श्राप दे डाला कि जिसके विषय में सोचने के कारण तुम मेरा अपमान कर रही हो; वह याद करवाने पर भी तुम्हें याद नहीं करेगा।
नाटक में इस घटना के समावेश से महाकवि कालिदास लोक को अंतिथि सत्कार करने की समुचित शिक्षा देना चाहते है।

4. प्रकृतिसंरक्षण की शिक्षा देना- " अभिजञनशाकृन्तलम्" नाटक पग-पग पर हमें प्रकृति संरक्षण की शिक्षा देता है। नाटक के आरम्भ में अन्य तापस कन्याओं के साथ कुलपति की कन्या शकुन्तला द्वारा भी पौधों को सिंचाई करना यह दर्शाता है कि प्रकृति संरक्षण सबका कार्य है। पुनः कन्याओं द्वारा वृक्षों के थांवलों से जल पी रहे पक्षियों को न डराना एवं हरिण का शिकार करने वाले राजा दष्यन्त और हरिण के बोच में आकर तपस्वियों द्वारा उसे यह कहकर जीव हिंसा
से रोकना कि-
आर्त्तत्राणाय वः शस्त्र न प्रहर्तुमनागसि ।
अर्थात् राजन् तुम्हें अस्त्र-शस्त्र दुःखियों को रक्षा के लिए दिये गये हैं निरपराध प्राणियों पर प्रहार करने के लिए नहीं। प्रकृति के घटक जीवों की रक्षा का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा जहाँ राजा को भी दो टूक बात कहकर जीव हिंसा से रोका गया है।
इसी प्रकार शकुन्तला द्वारा बननज्योत्सना नामक लता को बहिन बनाना और मृगछौने को पुत्र मानना ये सभी वर्णन प्रकृतिसंरक्षण की शिक्षा देते हैं। प्रकृतिसंरक्षण का एक अद्भुत उदाहरण तब हमारे समक्ष आता है। जब शकुन्तला की विदाई के समय महर्षि कण्व कहते हैं कि-
पातुं न प्रथमं व्यवस्यति जलं युष्मास्थपीतेषु या
नादत्ते प्रियमण्डनापि भवतां स्नेहेन या पल्लवम्।
अर्थात् हे वनस्पतियो! जो आपकी सिंचाई किये अगैर स्वयं जल तक ग्रहण नहीं करती थी तथा शृंगार प्रिया होने पर भी जो आपके स्नेह के कारण वेणी में लगाने के लिए पुण्प एवं कोंपलों को नहीं तोड़ती थी, वह शकुन्तला आज पतिगृह जा रही है। प्रकृतिसंरक्षण का इससे बड़ा उदाहरण विश्व में दुर्लभ है।
इसके अतिरिक्त राजा द्वारा सजातीय विवाह के सागाजिक नियम का पालन करना, मछलियाँ मारने के व्यवसाच को हिंसा के कारण निन्दित गानना, पुलिस की रिश्वतखोरी को प्रकट करना, दुष्यन्त एवं शकुन्तला के पुत्र भरत की वीरता का वर्णन आदि अनेक ऐसी शिक्षाएं हैं जो इस नाटक को अन्य नाटकों से भिन्न सिद्ध करती हैं।रस, भाव, शैली, अलंकारों का समुचित प्रयोग संवादों का गाधुर्य, चरित्रों की उल्कृष्टता आदि ऐसे अनेक गुण हैं-जो इस नाटक को संस्कृत के अन्य नाटकों से अधिक रम्य (मनोहर) सिद्ध करते हैं।
सम्भवतः यही कारण था कि इस नाटक के मात्र अनुवाद को पढ़कर हो जर्मनी के राष्ट्रकवि गेटे नाटक की प्रति को सिर पर रखकर प्रसन्नता से नाचने लग पड़े कि यह अद्भुत नाटक है।
इसके साथ ही नाट्य नियमों के समुचित निर्वहरण, अलंकारों के स्वाभाविक प्रयोग, वैदर्भी रीति कथावस्तु में औत्सुक्य विधान, घटनाओं के संयोजन पात्रों के सटीक चरित चित्रण, शृंगाररस के संयोग एवं वियोग दोनों रूपों के हृदय स्पर्शी वर्णन, संवादों की प्रवाहत्मकता और नाटक की अभिनेयता आदि गुणों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समीक्षक ने यह सत्य ही कहा है कि-
"काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला।"


Comments

  1. Poonam devi sr no 23 major political science

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  2. Name Richa Sr.no 35
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  5. Priyanka devi, Major History,Ser No 30.

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  6. Chetan choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13

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    Major pol.science

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    Sr.no.- 01

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  9. Priyanka Devi
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    Major history

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  10. Name Shivani Devi
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    Major political science.
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    Major -History
    Sr. No. -76

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  14. Tanu Guleria
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  15. Name rahul kumar
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  16. Name rahul kumar
    Major history
    Sr no. 92

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  17. Shivani Devi
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  18. Name Simran kour
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  19. Name palvinder kaur major history sr no

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  21. Pallvi choudhary
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    Minor- history
    Sr. No-72

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  22. Name rahul kumar
    Major history
    Sr no. 92

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  23. ektaekta982@gmail.com
    Varsha Devi Pol 24

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  24. Name Simran kour
    Sr no 36
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  26. Name. Tanvi Kumari
    Roll no. 2001pso36
    Major. Pol.science

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