याज्ञवल्क्य

 ✡️याज्ञवल्क्य✡️इनके द्वारा लिखित याज्ञवल्क्यस्मृति, 

योगयाज्ञवल्क्य और बृहद्योगी-याज्ञवल्क्य नामक तीन ग्रंथ माने 

जाते हैं। धर्मशास्त्र इतिहास के लेखक भारतरत्न काणे, 

स्मृतिकार योगशास्त्रकार याज्ञवल्क्य को भिन्न मानते । उसका

कारण यह है कि याज्ञवल्क्य कृत स्मृति और योग विषयक 

ग्रंथों में दस यमों एवं दस नियमों का उल्लेख है किन्तु दोनों 

ग्रंथ नामोल्लेख में मेल नहीं खाते। बृहदारण्यक उपनिषद् में 

याज्ञवल्क्य की मैत्रेयी और कात्यायनी नामक दो पत्नियों का 

निर्देश है। मैत्रेयी अध्यात्मप्रवण और कात्यायनी संसाराभिमुख 

थी। जनक की राजसभा में उपस्थित अश्वल, आर्तभाग, भुज्यु, 

लाह्यायनि, उषस्त, चाक्रायण, कहोड के समान गार्गी वाचक्नवी 

का याज्ञवल्क्य से संवाद हुआ था। वहां गार्गी अन्य लोगों 

के समान याज्ञवल्क्य के ब्रह्मनिष्ठ होने के अधिकार पर विरोध

प्रकट करती है। तब याज्ञवल्क्य उसकी भर्त्सना करते हैं और

कहते हैं कि यदि वह उसी प्रकार तर्क का आश्रय लेती

चलेगी तो उसका सिर भ्रमित हो जायेगा। योगीयाज्ञवल्क्य के

सम्पादक पी.सी. दीवाणजी ने गार्गी को याज्ञवल्क्य की पत्नी

कहा है। बृहदारण्यक उपनिषद् में "याज्ञवल्क्यस्य द्वे भार्ये

बभूवतुः । मैत्रेयी च कात्यायनी च” कहा गया है। इस वाक्य

में केवल दो पत्नियों का स्पष्ट निर्देश होने से वाचक्नवी गार्गी

का ही अपरनाम मैत्रेयी माना जाता है।

श्वेताश्वतर उपनिषद् के भाष्य में शंकराचार्य ने योगियाज्ञवल्क्य

ग्रंथ से साढे चार श्लोक उद्धृत किये हैं। अपरार्क एवं

स्मृतिचन्द्रिका ने लगभग 100 श्लोक बृहद् योगियाज्ञवल्क्य से

उद्धृत किये है।

कृत्यकल्पतरु ने लगभग 70 श्लोक बृहद्योगि-याज्ञवल्क्य

से उद्धृत किये हैं। बंगाल के राजा बल्लालसेन (ई. 1152-79) 

ने अपने दानसागर में बृहद्योगि-याज्ञवल्क्य से बहुत से उद्धरण

लिए हैं।


Comments

Popular posts from this blog

ईशावास्योपनिषद 18 मंत्र

महाकवि दण्डी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जीवन-चरित-

भर्तृहरि की रचनाएँ