महिम भट्ट
महिम भट्ट : इन्होंने "व्यक्ति-विवेक" नामक काव्यशास्त्र के
युगप्रवर्तक ग्रंथ की रचना की है जिसमें व्यंजना या ध्वनि
का खंडन कर उसके सभी भेदों का अंतर्भाव अनुमान में
किया गया है। इनकी उपाधि "राजानक" थी आर ये काश्मीर
के निवासी थे।
समय- ई. 11 वीं शती का मध्य । पिता-श्रीधैर्य व गुरु
श्यामल। इन्होंने अपने ग्रंथ में कुंतक का उल्लेख किया है,
और अलंकारसर्वस्वकार रुय्यक ने इनके ग्रंथ 'व्यक्तिविवेक'
की व्याख्या लिखी है। इससे इनका समय ई. 11 वीं शती
का मध्य ही निश्चित होता है। महिमभट्ट नैयायिक हैं। इन्होंने
न्याय की पद्धति से ध्वनि का खंडन का उसके सभी भेदों
को अनुमान में गतार्थ किया है और ध्वनिकार द्वारा प्रस्तुत
किये गये उदाहरणों में अत्यंत सूक्ष्मता के साथ दोषान्वेषण
कर उन्हें अनुमान का उदाहरण सिद्ध किया है। इन्होंने
ध्वन्यालोक में प्रस्तुत किये गये ध्वनि के लक्षण में 10 दोष
ढूंढ निकाले हैं जिससे इनका प्रौढ पांडिल्य झलकता है। इनके
समान ध्वनि-सिद्धांत का विरोधी कोई नहीं हुआ। इनका प्रौढ
पांडित्य व सूक्ष्म विवेचन संस्कृत काव्यशास्त्र में अद्वितीय है।
इन्होंने व्यंग्यार्थ को अनुमेय स्वीकार करते हुए ध्वनि का नाम
'काव्यानुमिति' दिया है। इनके अनुसार काव्यानुमिति वहां होती
है जहां वाच्य या उसके द्वारा अनुमित अर्थ, दूसरे अर्थ को
किसी संबंध से प्रकाशित करे (व्य.वि. 1-25)।
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