ईशावास्योपनिषद्

 ईशावास्योपनिषद् -यह “शुक्लयजुर्वेदीय  वाजसनेयी संहिता का अंतिम (40 वां) अध्याय है। इसमें 18 मंत्र हैं तथा प्रथम मंत्र के आधार पर इसका नामकरण किया गया है।              ईशावास्यमिदं सर्वं यत् किंच जगत्यां जगत् ।                       तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृधः कस्यस्विद् धनम्।।                    इस जगत का संचालन एक सर्वव्यापी अंतर्यामी द्वारा होने का वर्णन है। द्वितीय मंत्र में कर्म सिद्धांत का वर्णन करते हुए निष्काम भाव से कर्म करने का विधान है तथा सर्व भूतों में आत्मदर्शन एवं विद्या व अविद्या के भेद का वर्णन है। तृतीय मंत्र में अज्ञान के कारण मृत्यु के  पश्चात् प्राप्त होने वाले दुःख का वर्णन तथा चौथे से सातवें मंत्र में ब्रह्मविद्या विषयक मुख्य सिद्धांतों का वर्णन है। नवें से ग्यारहवें श्लोक में विद्या व अविद्या के उपासना के तत्त्व का निरूपण तथा कर्मकांड और ज्ञानकांड के पारस्परिक विरोध व समुच्चय का विवेचन है। तद्नुसार ज्ञान व विवेक से रहित कोरे कर्मकांड की आराधना करने वाली व्यक्ति घोर अंधकार में प्रवेश कर जाते हैं। अतः ज्ञान व कर्म के साथ चलने वाला व्यक्ति शाश्वत जीवन तथा परमपद प्राप्त करता है। 12 से 14 वें श्लोक में संभूति व असंभूति की उपासना के तत्त्व का निरूपण है। 15 व 16 वें श्लोक में भक्त के लिये अंतकाल में परमेश्वर की प्रार्थना पर बल दिया गया है और अंतिम दो श्लोकों में शरीर त्याग के समय प्रार्थना तथा परम धाम जाते समय अग्नि की प्रार्थना का वर्णन किया है। इसमें एक परम तत्त्व की सर्वव्यापकता, ज्ञान-कर्म समुच्चयवाद का निदर्शन, निष्काम कर्मवाद की ग्राह्यता, भोगवाद की क्षणभंगुरता, अंतरात्मा के विरुद्ध कार्य : न करने का आदेश तथा आत्मा के सर्वव्यापक रूप का ज्ञान प्राप्त करने का उपदेश है। इस उपनिषद् पर सभी' आचार्यों के भाष्य हैं, अनेक आधुनिक विद्वानों ने भी इस पर भाष्य लिखे हैं।

Comments

  1. Sujata sharma
    Major-history
    Sry. No. 8

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  2. Arpana Devi serial no 50 major Hindi

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  3. Name Ranjana devi
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  6. Jagriti Sharma
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  7. Pallvi choudhary
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  9. Name Richa Sr.no 35
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  10. Monikakalia
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  11. Akriti choudhary
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  12. Vivek Kumar Pol science sr no 38 dehri

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  13. Name Rahul Kumar
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  14. Name jyotika Kumari Major hindi Sr no 5

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  15. Name Simran kour
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