शृंगारशतक

 ✡️शृंगारशतक✡️

 शृंगारशतक में शताधिक पद्य हैं। यह मुक्तक काव्यों की श्रेणी में आता है। क्योंकि इसका प्रत्येक पद्य स्वयं में स्वतन्त्र अर्थ का द्योतक है। इसके श्लोकों का अर्थ जानने के लिए पूर्वापर सन्दर्भ की आवश्यकता नहीं होती है।

इसके प्रथम श्लोक में सौन्दर्य के देवता कामदेव को नमस्कार किया है। यथा-"तस्मै नमो भगवते कुसुमायुधाय।" शृंगारशतक में स्त्रियों को बन्धन कहा है। यथा-समस्त भावैः खलु बन्धनं स्त्रियः। इसी प्रसंग में स्त्रियों के आभूषणों एवं पुरुषों को आकृष्ट करने वाले उनके भ्रूकटाक्ष, मधुरवाक्, लज्जापूर्णहास, धीमी चाल, आदि हाव-भावों का वर्णन किया है। भर्तृहरि कहते हैं कि लाल कमल सदृश आँखों वाली मृगनयनी तरुणियाँ सभी का मन हर लेती हैं। यथा"कुर्वन्ति कस्य न मनो विवशं तरुण्यो" कवि कहते हैं कि नारी की देह वैरागियों को भी क्षुब्ध कर देती है। जैसे

"मुक्तानां सतताधिवासरुचिरं वक्षोजकुंभद्वय

मित्थं तन्विवपुः प्रशान्तमपि ते क्षोभं करोत्येव न॥ 

भर्तृहरि जी कहते हैं कि इन मृगनयनी स्त्रियों के विना संसार शून्यस्वरूप ही है, वस्तुतः ये ही वास्तविक स्वर्गस्वरूपा हैं। कवि ने उन्हें ही घर का सौन्दर्य तथा उनके शरीर के भोग को ही परमपुण्य कहा है। साथ ही विरहीजनों की दशा का वर्णन किया है और कहा है कि प्रेमोन्मत्त नारियों को ब्रह्मा भी नहीं रोक पाता है। यथा

उन्मत्तप्रेम संरम्भादारभन्ते यदंगनाः।

तत्र प्रत्यूहमाधातुं ब्रह्मापि खलु कातरः॥ 

इस प्रकार शृंगारशतक में स्त्री सौन्दर्य, यौवन की उपभोग इच्छा एवं काम की दुर्वार्यता का वर्णन किया गया है। यह भर्तृहरि के यौवन के अनुभवों की रचना प्रतीत होती है। कवि ने काम को विवेक का हन्ता कहकर समाज को इससे बचने का उपदेश भी दिया है।


Comments

  1. Sunali panjaria roll no 1901hi050

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  2. Ankita Kumari Roll No 1901Hi035

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  3. Kalpna choudhary Roll no 1901HI065

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  4. simran devi
    1901hi077
    major Hindi
    2nd year

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