मूर्खपण्डितकथा
मूर्खपण्डितकथा
कस्मिंश्चिदधिष्ठाने चत्वारो ब्राह्मणाः परस्परं मित्रत्वमापन्ना वसन्ति स्म । बालभावे तेषां मतिरजायत-"भोः ! देशान्तरं गत्वा, विद्याया उपार्जनं क्रियेत।" अथान्यस्मिन्दिवसे ते ब्राह्मणाः परस्परं निश्चयं कृत्वा विद्योपार्जनार्थ कान्यकुब्जे गताः तत्र च विद्यामठे गत्वा पठन्ति। एवं द्वादशाब्दानि यावदेकचित्ततया पठित्वा, विद्याकुशलास्ते सर्वे सजाताः।शब्दार्थ-मित्रत्वमापन्ना = मित्र भाव को प्राप्त हुए, बालभावे बचपन में, मतिरजायत = विचार आया, देशान्तरं = दूसरे देश में, गत्वा = जा कर, उपार्जनं = अध्ययन, अन्यस्मिन्दिवसे = दूसरे दिन, कान्यकुब्जे = कन्नौज उ० प्र०, गताः = गए, विद्यामठे = विद्यालय में, द्वादशाब्दानि = बारह वर्ष, एकचित्ततया = एकाग्रचित्त होकर, विद्याकुशलास्ते = विद्यानिपुण, सजाताः = हो गए।
सरलार्थ-किसी नगर में चार ब्राह्मण आपस में मित्र भाव से रहते थे। बचपन में ही उनके मन में विचार आया कि-'अरे ! विदेश जाकर हमें विद्या सीखनी चाहिए। इसके पश्चात् किसी दिन वे ब्राह्मण आपस में निश्चय करके विद्याध्ययन के लिए कान्यकुब्ज चले गये। वहाँ जा कर विद्यालय में पढ़ने लगे। इस प्रकार बारह वर्षों तक एकाग्रचित्त होकर पढ़ कर वे सभी विद्या निपुण हो गये।
ततस्तैश्चतुर्भिर्मिलित्वोक्तम्-वयं सर्वविद्यापारङ्गताः। तदुपाध्यायमुत्कलापयित्वा स्वदेशं गच्छामः। तथैवानुष्ठीयतामित्युक्त्वा ब्राह्मणाः उपाध्यायमुत्कलापयित्वा अनुज्ञां लब्ध्वा पुस्तकानि नीत्वा प्रचलिताः। यावत्किञ्चिन्मार्ग यान्ति, तावद् द्वौ पन्थानौ समायातौ उपविष्टाः सर्वे।
शब्दार्थ-मिलित्वा = मिलकर, उक्तम् = कहा, सर्वविद्या पारङ्गता = समस्त विद्याओं में निपुण, उपाध्यायम् = आचार्य को, उत्कलापयित्वा = पूछ कर, अनुज्ञा = आज्ञा, लब्ध्वा = प्राप्त करके, पुस्तकानि = पुस्तकों को, नीत्वा = ले जाकर, प्रचलिता = चल पड़े, किञ्चिन्मार्ग = कुछ दूरी पर, यान्ति = गये, तावत् = तो, द्वौ = दो, पन्थानौ = मार्ग, समायातौ = आये, उपविष्टा = बैठ गये।
सरलार्थ-तब उन चारों ने मिल कर कहा, हम समस्त विद्याओं में निपुण हो गये हैं। इसलिए आचार्य जी से पूछ कर अपने देश को चलते हैं। ऐसा ही कीजिए ऐसा कहने पर वे ब्राह्मण आचार्य जी को पूछ कर आज्ञा ग्रहण करके तथा पुस्तकों को लेकर चल पड़े। जब कुछ दूरी पर पहुंचे तो दो रास्ते आये। वहाँ सभी बैठ गये।
एकः प्रोवाच-"केन मार्गेण गच्छाम: ?" एतस्मिन्समये तस्मिन् पत्तने कश्चिद् वणिक पुत्रो मृतः। तस्य दाहाय महाजनो गतोऽभूत्। ततश्चतुर्णा मध्यादेकेन पुस्तकमवलोकितम्-"महाजनो येन गतः स पन्था" इति। तन्महाजनमार्गेण गच्छामः। अथ ते पण्डिता यावन्महाजन मेलापकेन सह यान्ति तावदासभः कश्चित्तत्र श्मशाने दृष्टः। अथ द्वितीयेन पुस्तकमुद्घाट्यावलोकितम्
शब्दार्थ-तत्रैकः = उनमें से एक, प्रोवाच = बोला, केन = किस, एतस्मिन् समये = इस समय, पत्तने = नगर में, वणिक् पुत्रः = बनिये का पुत्र, मृतः = मरा था, दाहाय = जलाने के लिए, महाजनः = बनियों का समूह, गतोऽभूत् = जा रहा था, चतुर्णांमध्याद् = चारों में से, अवलोकितम् = देखी महाजनः = महान् व्यक्ति, येन् = जिस (मार्ग) ) द्वारा, गताः = चलते हैं, स = वह, पन्था = मार्ग, इति = इत्यादि, अथ = इसके पश्चात्, महाजनमेलापकेन = बनियों के समूह के साथ, रासभः = गधा, कश्चित् = कोई, श्मशाने = श्मशान घाट पर, दृष्टः = देखा, उद्घाट्य खोल कर। ======
सरलार्थ-उनमें से एक ने कहा-'किस मार्ग में जाना चाहिए ? (संयोग से) इसी समय उस नगर में कोई बनिये का बेटा मर गया था। उसके दाह-संस्कार के लिए बनियों का समूह जा रहा था। उन चारों में से एक ने पुस्तक देखी और कहा कि-महाजन जिस मार्ग से चलते हैं वही असली मार्ग होता है। [वास्तव में इस सूक्ति का अभिप्राय यह है कि-"महान् व्यक्ति जिस प्रकार का आचरण करते हैं वही आचरण या व्यवहार हमें भी करना चाहिए। " परन्तु इन पण्डितों ने महाजन का अर्थ अधिक व्यक्ति लगाया तथा मार्ग का सामान्य अर्थ रास्ता ही समझा।] इसलिए जिधर से अधिक व्यक्ति जा रहे हैं उसी मार्ग में चलते हैं। इसके पश्चात् जब वे पण्डित बनियों के समूह के साथ चले गये ते श्मशान घाट पर उन्होंने किसी गधे को देखा। तब दूसरे पण्डित ने पुस्तक खोल कर देखा कि
उत्सवे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसङ्कटे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ॥ 23 ॥
शब्दार्थ-उत्सवे = माङ्गलिक अवसर पर, व्यसने = आपत्ति के, प्राप्ते = प्राप्त होने पर, दुर्भिक्षे = अन्न संकट में, शनुसङ्कटे = शत्रुओं द्वारा उत्पादित भय के समय, राजद्वारे = राज दरबार में, तिष्ठति = मिल जाता है या साथ देता है।
सरलार्थ-उत्सव के समय, आपत्तिकाल में, अकाल (दुर्भिक्ष) पड़ने पर या शत्रुओं द्वारा घिर जाने पर अथवा राजदरबार में, श्मशान घाट पर जो मिलता है या साथ देता है वह बन्धु कहलाता है।
तदहो। अयमस्मदीयो बान्धवः। ततः कश्चित्तस्य ग्रीवायां लगति, कश्चित् पादौ प्रक्षालयति। अथ यावत्ते पण्डिताः दिशावलोकनं कुर्वन्ति तावत्कश्चिदुष्ट्रो दृष्टः। तैश्चोक्तम्-"एतत्किम्" ? तावत्तृतीयेन पुस्तकमुद्घाट्योक्तम्-"धर्मस्य त्वरिता गतिः। तनूनमेष धर्मस्तावत्।" चतुर्थेनोक्तम्-"इष्टं धर्मेण योजयेत्।" अथ तैश्च रासभ उष्ट्रग्रीवायां बद्धः। तत्तु केनचित्तस्यस्वामिनो रजकस्याग्रे कथितम् यावद्रजकस्तेषां मूर्ख- पण्डितानां प्रहारकरणाय समायातस्तावत्ते प्रणष्टाः।
शब्दार्थ-अयम् = यह, अस्मदीयः = हमारा, ग्रीवायाम् = गले, लगति = मिलता है, पादौ = पैरों को, प्रक्षालयति = धुलाता है, दिशावलोकनम् कुर्वन्ति = इधर-उधर देखते हैं, उष्ट्रः = ऊंट, तृतीयेन = तीसरे ने, त्वरिता तेज़, गतिः = चाल, नूनम् = निश्चित रूप से, एषः यह, इष्टम् = अपने प्रिय को, योजयेत् = लगा दे या जोड़ दे, तैः = उन्होंने, रासभः = गधा, ग्रीवायां = गले में, बद्धः = बाँध दिया, स्वामिनः = मालिक, रजकस्य = अग्रे = पास, रजकः = धोबी, प्रहारकरणाय = पीटने के लिए, समायातः = आया, तावत् = तब तक, प्रणष्टाः = भाग गए।
सरलार्थ-इसलिए अरे ! यह हमारा बन्धु है। इसके पश्चात् कोई उसके गले लगने लगा तथा कोई उसके पैर धुलवाने लगा। इसके पश्चात् जब उन पण्डितों ने दूसरी दिशा में दृष्टि डाली तो कोई ऊँट दिखाई दिया। तब उन्होंने कहा-"यह क्या है ?" तब तीसरे ने पुस्तक खोलकर बताया-"तेज़ गति धर्म की होती है।" (ऊँट भी तीव्र गति से चल रहा था) तो यह निश्चय ही धर्म है। चौथे ने कहा-"अपने प्रिय को धर्म से जोड़ना चाहिए।" तब उन्होंने गधे को ऊँट के गले में बाँध दिया। इस बात को किसी ने गधे के स्वामी धोबी से कह दिया। परन्तु जब तक धोबी उन मूर्खपण्डितों को पीटने के लिए आता है तब तक वे भाग गये।
ततो यावदने किञ्चित्स्तोकं मार्ग यान्ति तावत्काचिन्नदी समासादिता। तस्य जलमध्ये पलाशपत्रमायान्तं दृष्ट्वा पण्डितेनैकेनोक्तम्-"आगमिष्यति यत्पत्रं तदस्मांस्तारयिष्यति। एतत्कथयित्वा तत्पत्रस्योपरि पतितो यावन्नद्या नीयते तावत्तं नीयमानमालोक्यान्येन पण्डितेन केशान्तं गृहीत्वोक्तम्
शब्दार्थ-अग्रे = आगे, स्तोकं = थोड़ा-सा, काचित् = कोई, समासादिता मिली, पलाशपत्रम् = पलाश वृक्ष के पत्ते को, आयान्तम् = आता हुआ, दृष्ट्वा = देखकर, आगमिष्यति = आयेगा, यत् = जो, तत् = वह, अस्मान् = हमें, तारयिष्यति पार कर देगा, कथयित्वा = कह कर, पत्रस्योपरि = पत्ते के ऊपर, पतितः गिर गया, नद्या = नदी द्वारा, नीयते = बहाया जाने लगा, तावत् = तो, नीयमानम् = ले जाए जाते हुए को, आलोक्य = देखकर, केशान्तं चोटी, गृहीत्वा = पकड़ कर।
सरलार्थ-इसके पश्चात् वे जब कुछ और दूर गये तो उन्हें एक । उसके जल में आते हुए पलाश के पत्त को देखकर उनमें से एक पण्डित ने कहा-"जो पत्ता आएगा, वह हमें पार उतारेगा।" ऐसा कह कर उसने उस पत्ते के ऊपर छलांग लगा दी। जब नदी उसे बहाने लगी तो उसे बहता हुआ देखकर उनमें से एक पण्डित ने उसको चोटी से पकड़ कर कहा
सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्यजति पण्डितः।
अर्धेन कुरुते कार्य, सर्वनाशो हि दुःसहः।।24॥
शब्दार्थ-सर्वनाशे = सर्वनाश, समुत्पन्ने = प्राप्त होने पर, अर्ध = आधे को, त्यजति = छोड़ देता है, पण्डितः ज्ञानी मनुष्य, हि क्योंकि, दुःसह = सहन न करने योग्य।
सरलार्थ-सर्वनाश की स्थिति उत्पन्न होने पर बुद्धिमान् व्यक्ति आधे का त्याग कर देता और आधे से ही अपना कार्य कर लेता है क्योंकि सर्वनाश दुःसह होता है।
इत्युक्त्वा तस्य शिरश्छेदो विहितः। अथ तैश्च पश्चाद् गत्वा कश्चिद् ग्राम आसादितः। तेऽपि ग्रामीणैर्निमन्त्रिताः पृथग् गृहेषु नीताः। ततः एकस्य सूत्रिका घृतखण्डसंयुता भोजने दत्ताः। ततो विचिन्त्य पण्डितेनोक्तं यत् “दीर्घसूत्री विनश्यति।" एवमुक्त्वा भोजनं परित्यज्य गतः। तथा द्वितीयस्य मण्डका दत्ताः।
तेनाप्युक्तम्-"अतिविस्तारविस्तीर्ण तद्भवेन्न चिरायुषम्।" स भोजनं त्यक्त्वा गतः। अथ तृतीयस्य वटिका भोजने दत्ता। तत्रापि तेन पण्डितेनोक्तम्"छिद्रेष्वना बहुली भवन्ति।" एवं ते त्रयोऽपि पण्डिताः, क्षुत्क्षामकण्ठाः, लोकै हास्यमानास्ततः स्थानात् स्वदेशं गताः।
शब्दार्थ-उक्त्वा = कहकर, शिरश्छेदो विहितः = शिर काट लिया, आसादितः = प्राप्त किये या पहुँचे, निमन्त्रिताः = बुलाए हुये, पृथग् = अलग-अलग, गृहेषु = घरों में, नीता = ले जाये गये, सूत्रिकाः = सेवइयाँ, घृतखण्डसंयुताः घी, शक्कर से मिश्रित, दत्ताः = दी, विचिन्त्य सोचकर, दीर्घसूत्री = आलसी, विनश्यति = नष्ट हो जाता है, परित्यज्य = छोड़ कर, गतः = चला गया, मण्डकाः = पतली-पतली एवं बहुत बड़ी-बड़ी विशेष प्रकार की रोटियाँ, दत्ता = दी, अतिविस्तार विस्तीर्णं = अत्यधिक विस्तृत, न भवेत् = नहीं होता है, चिरायुषम् = दीर्घायु वाला, वटिका बड़े या भल्ले, छिद्रेषु = आपत्ति में (छेद युक्त में) अनर्थाः = आपत्तियाँ, बहुली = बहुत अधिक, भवन्ति = होती हैं, क्षुत्क्षामकण्ठाः = भूख से व्याकुल कण्ठ होकर, लोके = समाज में या लोक में, हास्यमानाः = उपहास का विषय बने हुये, ततःस्थानात् = उस स्थान से।
सरलार्थ-ऐसा कह कर उसका सिर काट दिया। तत्पश्चात् आगे चलकर वे किसी ग्राम में पहुँचे। ग्रामवासियों ने उन्हें निमन्त्रण देकर पृथक्-पृथक् घरों में बुलाया। एक को घी एवं शक्कर युक्त सेवइयाँ खाने के लिए दीं। तब सोचकर पण्डित ने कहा कि-लम्बी-लम्बी सेवइयां नष्ट कर देती हैं। (दीर्घसूत्री विनश्यति का वास्तविक अर्थ है कि आलसी व्यक्ति विनष्ट हो जाता है) ऐसा कह कर भोजन छोड़ कर चला गया। दूसरे को (ग्रामवासियों ने) बड़ी-बड़ी रोटियाँ दी। उसने कहा-"जो अतीव विस्तृत वस्तु होती है वह दीर्घायु देने वाली नहीं होती है। ऐसा कहकर वह भी भोजन त्याग कर चला गया। उनमें से तीसरे को खाने के लिए बड़े (दही बड़े) दिये। वहाँ भी उस पण्डित ने कहा-"छिद्र युक्त से अनेक आपत्तियाँ आती हैं (सूक्ति का वास्तविक अभिप्राय है कि आपत्ति में अनेक आपत्तियाँ आ घेरती हैं।) इस प्रकार वे तीनों पण्डित भूख से व्याकुल होकर उपहास को प्राप्त होकर उस स्थान से अपने देश (स्थान) को लौट गए।
Anchal
ReplyDeleteSr. No 22
Major history
Name:Priti
ReplyDeleteSr.no.24
Name -Riya
ReplyDeleteMajor -History
Sr. No. -76
Mehak
ReplyDeleteSr.no.34
Major.Political science
Sr no 36
ReplyDeleteMajor hindi
Name Priya major history sr no 6
ReplyDeleteSr no 36
ReplyDeleteMajor hindi
Jagriti Sharma
ReplyDeleteSerial no. 2
Major- Hindi
Vivek Kumar Pol science sr no 38 dehri
ReplyDeleteManu
ReplyDeletemajor history
sr no 75
Akanksha sharma sr no 13
ReplyDeleteMajor hindi
Name Akshita Kumari Major Political Science Sr.No.70
ReplyDeleteShikha
ReplyDeleteSr.no.7
Major history
Sr no.86
ReplyDeleteMajor history
Isha
ReplyDeleteMajor history
Sr.no 10
Name Simran kour
ReplyDeleteSr no 36
Major history
Name Richa Sr.no 35
ReplyDeleteMajor hindi
Priyanka Devi
ReplyDeleteSr.no.23
Major history
Sejal kasav
ReplyDeleteMajor sub.- pol science
Minor sub.- hindi
Sr.no.-01
Divya Kumari major political science sr.no 60.
ReplyDeleteChetna choudhary Major pol science minor Hindi sr no 13
ReplyDeleteTaniya sharma
ReplyDeleteSr no. 21
Pol. Science
Palvinder kaur major history sr no 9
ReplyDeleteAnish khan
ReplyDeleteSr no.78
Major hiatory
Anjli
ReplyDeleteMajor political science
Minor history
sr.no 72
Anjli
ReplyDeleteMajor-Political science
Minor-history
sr.no-73
Poonam devi sr no 23 major political science
ReplyDeleteMajor history
ReplyDeleteSr no 29
Arti sharma
ReplyDeleteSr no 32
Major hindi
Tanvi Kumari
ReplyDeleteSr. No. 69
Major. Pol. Science
Shivani Devi
ReplyDeleteSr no 46
Major Hindi
Minor history
Sejal Mehta
ReplyDeleteSr no 33
Major Hindi
Name Sakshi
ReplyDeleteSr no 14
Major Hindi
Minor history
Major History
ReplyDeleteSr.no.85
Name:Palak
ReplyDeleteSr. No.22
Major:Hindi
Sonali dhiman major political science Sr. no. 19
ReplyDeleteName jyotika Kumari Sr no 5 major Hindi
ReplyDeleteMonikasharma sr no.26 major hindi
ReplyDeleteMajor Hindi
ReplyDeleteSr no 16
Monika Dadwal
ReplyDeleteMajor History
Sr No. 72
Mamta Bhardwaj
ReplyDeleteSr no 01
Major history
Major History, Ser No 30
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