♎मम्मटाचार्य♎

 मम्मटाचार्य, समय-, ई. 12 वीं शती। 'राजानक' की

उपाधि। इनके नाम से ज्ञात होता है कि ये काश्मीर निवासी

रहे होंगे। इन्होंने 'काव्यप्रकाश' नामक युगप्रवर्तक काव्यशास्त्रीय

ग्रंथ का प्रणयन किया है जिसकी महत्ता व गरिमा के कारण

ये 'वाग्देवतावतार' कहे जाते हैं। 'काव्यप्रकाश' की 'सुधाकर'

नामक टीका के प्रणेता भीमसेन दीक्षित ने इन्हें काश्मीरदेशीय

जैयट का पुत्र तथा पतंजलिकृत 'महाभाष्य' के टीकाकार कैयट

एवं चतुर्वेदभास्कर उव्वट का ज्येष्ठ भ्राता माना है। पर इस

विवरण को आधुनिक विद्वान् प्रामाणिक नहीं मानते। इसी

प्रकार नैषधकार श्रीहर्ष को मम्मट का भागिनेय कहने कीमत

अनुश्रुति भी पूर्णतः संदिग्ध है, क्यों कि श्रीहर्ष काश्मीरी नहीं

थे। 'अलंकारसर्वस्व' के प्रणेता रुय्यक ने 'काव्यप्रकाश' की

टीका लिखी है और इसका उल्लेख भी किया है। रुय्यक

का समय 1128-1149 ई. के आसपास है। अतः मम्मट

का समय उनके पूर्व ही सिद्ध होता है । यह अवश्य है कि

रुय्यक, मम्मट के 40 या 50 वर्ष बाद ही हुए होंगे।

'काव्यप्रकाश' के प्रणेता के प्रश्न को लेकर भी विद्वानों में

मतभेद है कि मम्मट ने संपूर्ण ग्रंथ की रचना अकेले नहीं

की है। परंतु अनेक प्रमाणों के आधार पर आचार्य मम्मट

ही इस संपूर्ण ग्रंथ के प्रणेता सिद्ध होते हैं। काव्यप्रकाश के

अतिरिक्त शब्दव्यापारविचार तथा संगीतरत्नावली नामक दो 

अन्य ग्रंथ भी इन्होंने लिखे हैं।

इनका प्रमुख ग्रंथ काव्यप्रकाश, संस्कृत- साहित्य शास्त्र का

आकरग्रंथ माना जाता है। उसके संबंध में कहा जाता है कि

"काव्यप्रकाशस्य कृता गृहे गृहे टीका तथाप्येष तथैव दुर्गमः"

अर्थात् काव्यप्रकाश पर घर-घर में टीका लिखी गई, परंतु

वह दुर्गम ही है।


Comments

Popular posts from this blog

ईशावास्योपनिषद 18 मंत्र

महाकवि दण्डी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जीवन-चरित-

भारवि और उनके किरातार्जुनीयम् का परिचय