प्रस्तावना (स्थापना🏵️
🏵️🏵️ प्रस्तावना (स्थापना) 🏵️🏵️
प्रथमाङ्क के आरम्भ में प्रस्तावना का प्रयोग होता है। इसे आमुख तथा स्थापना भी कहा जाता है। वस्तुतः कथानक के इस भाग में सूत्रधार अपनी पत्नी अथवा अपने अन्य सहचरों के साथ बातचीत के माध्यम से नाटक के प्रमुख पात्रों का प्रवेश रंगमञ्च पर करवाते हैं। इसलिए मुख्यकथा के प्रस्ताव के कारण प्रस्तावना तथा मुख्यकथा की स्थापना के कारण इस भाग को स्थापना कहा जाता है। यह नाटक का आरम्भिक भाग होता है ; इसलिए आमुख भी कहलाता है। साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ जी ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है
नटी विदूषको वापि पारिपार्श्विकः एव वा।
सूत्रधारेण सहिताः संलापं यत्र कुर्वते।
चित्रैर्वाक्यैः स्वकार्योत्थैः प्रस्तुताक्षेपिभिर्मिथः ।
आमुखं तत्तु विज्ञेयं नाम्ना प्रस्तावनापि सा॥
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