नीतिशतक 4️⃣5️⃣6️⃣

              🕎🕎नीतिशतक 4️⃣5️⃣6️⃣🕎🕎

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अज्ञः सुखमाराध्य सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः।

ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्माऽपि तं नरं न रजयति॥4॥

🇮🇳अन्वयः-अज्ञः सुखम् आराध्यः । विशेषज्ञः सुखतरम् आराध्यते। ज्ञानलव-दुर्विदग्धं तं नरं ब्रह्मा अपि न रजयति ॥

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-अज्ञः = अज्ञानी। सुखम् = आसानी से। आराध्य - प्रसन्न किया जा सकता है अथवा सिखाया जा सकता है। विशेषज्ञः = विशिष्टज्ञान से युक्त यानि विद्वान्, सुखतरम् (सुख + तरम्) और भी अधिक सरलता से। आराध्यते = सिखाया या समझाया जा सकता है। (परन्तु) ज्ञानलवदुर्विदग्धम् = ज्ञानस्य लवेन दुर्विदग्धम्। लेशमात्र

(कणमात्र) ज्ञान से अभिमानी बने हुए। तम् नरम् = उस व्यक्ति को यानि दुरभिमानी को। ब्रह्मा अपि = स्वयं सृष्टि का निर्माता भी। न = नहीं। रज्जयति = प्रसन्न कर सकता है या सिखा सकता है।

🇮🇳हिन्दी अनुवाद - अल्पज्ञानी की दुरभिमानिता का वर्णन करते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि अज्ञानी व्यक्ति अर्थात् जो कुछ भी न जानता हो उसे सिखाना आसान है विशिष्ट विद्वानों को सिखाना प्रसन्न करना और भी आसान है परन्तु जो अल्पज्ञान पाकर विद्याभिमानी बने हुए हैं। ऐसे लोगों को तो सृष्टि का निर्माता ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकता और

को तो बात हो क्या।

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प्रसह्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्त्रदंष्ट्रान्तरात,

समुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदुर्मिमालाकुलम्।

भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद् धारयेत,

न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्॥5॥

🇮🇳अन्वयः-मकरवक्त्रदंष्ट्रान्तरात् प्रसह्य मणिम् उद्धरेत् । प्रचलत् उर्मिमालाकुलम् समुद्रमपि सन्तरेत् । कोपितं भुजङ्गमपि पुष्पवद् शिरसि धारयेत् । तु प्रतिनिविष्ट मूर्खजनचित्तं न आराधयेत् ॥

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-मकरवक्त्रदंष्ट्रान्तरात् ( मकरस्य वक्त्रे विद्यमानाः याः दंष्ट्राः तेषाम् अन्तरात्) =मगरमच्छ के मुँह में विद्यमान दाढ़ों के बीच से । प्रसह्य = बलपूर्वक । मणिम् = मणि को। उद्धरेत् = निकाला जा सकता है। (उत् उपसर्ग धृ धातु विधिलिङ् प्र० पु० एकवचन) प्रचलत् उर्मिमाला आकुलम् = चलती हुई तरंगों से युक्त (उर्मिणाम् माला = उर्मिमाला तया आकुलम् = उर्मिमालाकुलम् षष्ठी एवं तृतीया तत्पु० समास) । समुद्रम् अपि = समुद्र को भी। सन्तरेत् = (कोई) तैर ले। कोपितम् = क्रुध हुए। भुजंगमपि = सर्प को भी। पुष्पवद् = फूल की तरह। शिरसि = सिर पर। धारयेत् = रख ले। तु = परन्तु। प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तम् = (प्रतिनिविष्टः यः मूर्खजन: तस्य चित्तम्) ,दुराग्रही (हठी) मूर्खव्यक्ति के मन को। न = नहीं। आराधयेत् = प्रसन्न कर सकता है।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-मूर्ख व्यक्ति के अड़ियल स्वभाव को प्रकट करते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि मगरमच्छ के मुँह के भीतर स्थित दाढ़ों में से कोई बलपूर्वक मणि को तो निकाल भी सकता है, प्रचण्ड तरंगों से युक्त समुद्र को कोई तैर भी सकता है अर्थात् पार कर सकता, क्रोधित सर्प को कोई प्रयत्न करके फूल की भान्ति सिर पर धारण कर सकता है;परन्तु हठी मूर्खव्यक्ति के मन को कोई प्रसन्न नहीं कर सकता है।

🇮🇳भावार्थ यह है कि दुनिया का कठिन से कठिन कार्य किसी न किसी तरह पूरा किया जा सकता है परन्तु मूर्ख को समझाना सर्वाधिक कठिन कार्य है।

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लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्,

पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दितः ।

कदाचिदपि पर्यटशशविषाणमासादयेत्,

न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत्।।6।।

🇮🇳अन्वयः- यत्नतः पीडयन् सिकतासु अपि तैलम् लभेत् पिपासादितः मृगतृष्णिकासु सलिलं पिबेत् च। पर्यटन् कदाचित् शशविषाणम् अपि आसादयेत्। तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तं न आराधयेत् ।

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण -लभेत = (Vलभ् विधिलिङ् प्र०पु० एकवचन) प्राप्त कर ले। सिकतासु = रेत में से।तैलम् = तेल। अपि = भी। यत्नतः = प्रयास करके। पीडयन् = निचोड़कर (पेलकर)। पिपासादितः = (पिपासया

अर्दितः तृतीया तत्पु० स०) । पातुम् इच्छा = पिपासा (पा+सन् स्त्री०) प्यास से व्याकुल। मृगतृष्णिकासु = मरुस्थल में। सलिलम् = जल को। पिबेत् = पी ले। च =और। पर्यटन् = (परि + अट् + शतृ) घूमता हुआ। कदाचित् -संयोगवश। शशविषाणम् अपि = खरगोश के सींग को भी। आसादयेत् = प्राप्त कर ले। तु = परन्तु ।प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तम् = जिद्दी मूर्ख व्यक्ति के मन को। न = नहीं। आराधयेत् = प्रसन्न कर सकता है।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-मूर्ख व्यक्ति के हठ को सर्वोपरि बताते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि यद्यपि रेत में तेल नहीं होता है तथापि सम्भव है कि प्रयत्न करके कोई रेत से तेल निकाल ले, प्यास से व्याकुल कोई (हरिण) शायद मरुस्थल में भी जल प्राप्त कर ले तथा घूमते-घूमते हो सकता है किसी को खरगोश का सींग मिल जाये परन्तु हठी मूर्ख के चित्त को कदापि प्रसन्न नहीं किया जा सकता है।

🇮🇳भावार्थ यह कि असंभव से असंभव कार्य की सिद्धि भी किसी न किसी तरह संभव हो सकती है परन्तु मूर्ख को समझाना नितान्त कठिन कार्य है।

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Comments

  1. Jagriti Sharma
    Serial no. 2
    Major- Hindi

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  2. Name tanu guleria
    Sr. No.32
    Major political science
    Minor hindi

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  3. Akriti choudhary
    Major history
    Sr no 11

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  4. Shivani Devi
    Sr no 46
    Major Hindi
    Minor history

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  5. Poonam devi
    Sr no 23
    Major
    Political science

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  6. Sujata Sharma serial no 8 major history

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  7. Name - anjli
    Major- Political science
    Minor- history
    Sr no-73

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  8. Divya Kumari
    Sr.No 60.
    Major pol science.

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  9. Sonali dhiman political science Sr. no. 19

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  10. Mehak
    Sr.no.34
    Major.political science

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  11. Taniya sharma
    Sr no. 21
    Pol. Science

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  12. Neme rahul kumar
    Major history
    Sry no. 92

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  13. Name Simran kour
    Sr no 36
    Major history

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  14. Name arti sharma
    Sr no32
    Major Hindi

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  15. Sr no.49
    Major - political science
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  16. Pallvi choudhary
    Major sub- pol. Sc
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    Sr. No. -72

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  17. Pallvi choudhary
    Major sub- pol. Sc
    Minor sub- history
    Sr. No. -72

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  18. Pallvi choudhary
    Major sub- pol. Sc
    Minor sub- history
    Sr. No. -72

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  19. Rishav sharma major pol science sr no 65

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  20. Name jyotika Kumari Major hindi Sr no 5

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  21. Tanvi Kumari
    Sr . No. 69
    Major. Pol. Science

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