मंत्र 2️⃣1️⃣🕉️2️⃣2️⃣🕉️2️⃣3️⃣🕉️2️⃣4️⃣🕉️2️⃣5️⃣🕉️2️⃣6️⃣

 पृथिवी पर उत्पन्न होने वाले अरण्य और ग्राम में उत्पन्न होने वाले जो पक्षहीन पशु हैं तथा आकाश में संचार करने वाले जो पक्षी हैं, वे सब ब्रह्मचारी बने हैं।21।

पदार्थ पृथक-पृथक अपने अन्दर प्राणों को धारण करते हैं। ब्रहमचारी में रहा हुआ प्रजापति परमात्मा से उत्पन्न हुए सब ही ज्ञान उन सबका रक्षण करता है।22।

देवों का यह उत्साह देने वाला सबसे श्रेष्ठ तेज चलता है। उससे ब्रह्मसम्बन्धी श्रेष्ठ ज्ञान हुआ है और अमर मन के साथ सब देव प्रकट हो गये ।23 ।

चमकने वाला ज्ञान ब्रह्मचारी धारण करता है। इसलिये उसमें सब देव रहते हैं। वह प्राण, अपान, व्यान, वाचा, मन, हृदय, ज्ञान और मेधा प्रकट करता है। इसलिये हे ब्रह्मचारी! हम सबमें चक्षु, श्रोत्र, यश, अन्न, वीर्य, रुधिर और पेट पुष्ट करो ।24-25 ।

ब्रहमचारी उनके विषय में योजना करता है। जल के समीप तप करता है। इस ज्ञान समुद्र में तप्त होने वाला यह ब्रह्मचारी जब स्नातक हो जाता है, तब अत्यन्त तेजस्वी होने के कारण वह इस पृथिवी पर बहुत चमकता है।26।

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