ईशावास्योपनिषद 18 मंत्र

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 ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।                            पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ वह ( परब्रह्म) पूर्ण है और यह (कार्यब्रम्हा) भी पूर्ण है, क्योंकी पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है । तथा (प्रलयकालमें ) पूर्ण ( कार्यब्रम्हा) का पूर्णत्व लेकर ( अपने में लीन करके ) पूर्ण (परब्रह्म) ही बचा रहता है ।
त्रिविध ताप की शांति हो।
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ॐ ईशा वास्यमिदम् सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।। 1 ।।
१. जगत में जो कुछ स्थावर - जंगम संसार है , वह सब इश्वर के द्वारा आच्छादित है ( अर्थात उसे भगवत स्वरूप अनुभव करना चाहिये)। उसे त्याग भाव से तू अपना पालन कर ; किसी के धन की इच्छा ना कर ।
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कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतम् समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥2॥
२. इस लोक में कर्म करते हुए ही सो बर्ष जीने की इच्छा
करे । इस प्रकार मनुष्यत्व का अभिमान रखने वाले तेरे लिए इसके सिवा और कोई मार्ग नहीं है, जिससे तुझे ( अशुभ) कर्म फल का लेप ना हो ।।
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असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः।
ताम्स्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥3॥
३. वे असुर सम्बंधित लोक आत्मा के अदर्शनरूप अज्ञान से आच्छादित है । जो कोई भी आत्मा के हनन करने वाले लोग है , वे मरने के अनंत्तर उन्हें प्राप्त होते है ।।
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अनेजदेकं मनसो जवीयो नैनद्देवा आप्नुवन्पूर्वमर्षत्।
तद्धावतोऽन्यानत्येति तिष्ठत्तस्मिन्नपो मातरिश्वा दधाति ॥4॥
४. वह आत्मतत्व अपने स्वरूप से विचलित न होने वाला , एक तथा मन से भी तेज गति वाला है। इसे इन्द्रिया प्राप्त नहीं कर सकी, क्योंकी यह उन सबसे पहले (आगे) गया हुआ ( विद्यमान ) है । यह स्थिर होने पर भी अन्य सब गतिशिलो को अतिक्रमण कर जाता है । उसके रहते हुए ही (अर्थात उसी के सत्ता में ही ) वायु समस्त प्राणियों के प्रवृतिरुप कर्मो का विभाग करता है।
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तदेजति तन्नेजति तद्दूरे तद्वन्तिके।
तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ।।5।।
५. वह आत्मतत्व चलता है और नहीं भी चलता है । वह दूर है और समीप भी है । वह सबके अन्दर है और वहो इस सबके बाहर भी है ।।
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यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते ॥6॥
६. जो ( साधक ) सम्पूर्ण भूतो को आत्मा में ही देखता है और समस्त भूतो में भी आत्मा को ही देखता है वह इस (सर्वात्म दर्शन ) के कारण ही किसी से घृणा नहीं करता ।।
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यस्मिन्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः।
तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः ॥7॥
७. जिस समय ज्ञानी पुरुष के लिए सब भुत आत्मा ही हो गये उस समय एकत्व देखने वाले उस विद्वान् को क्या शोक और क्या मोह हो सकता है ?
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स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरम् शुद्धमपापविद्धम्।
कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूयथातथ्यतोऽर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः ॥8॥
८. वह आत्मा सर्वगत , शुद्ध , अशरीरी , अक्षत , स्नायु से रहित , निर्मल ,अपापहत , सर्वद्रष्टा , सर्वज्ञ , सर्वोत्कृष्ट और स्वयंभू ( स्वयं ही होने वाला)है। उसी ने नित्यसिद्ध संवत्सर नामक प्रजापतियो के लिए यथायोग्य रीती से अर्थो ( कर्तव्यों अथवा पदार्थो) का विभाग किया है ।।
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अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायाम् रताः ॥9॥
९. जो अविद्या (कर्म) की ही उपासना करते है वे ( अविद्यारूप) घोर अंधकार में प्रवेश करते है और जो विद्या (उपासना ) में ही रत रहते है वे मानो उससे भी घोर अंधकार में प्रवेश करता है ।।
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अन्यदेवाहुर्विद्ययाऽन्यदाहुरविद्यया।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे ॥10॥
१०. विद्या ( देवताज्ञान ) से और ही फल बताया गया है तथा अविद्या (कर्म) से और ही फल बताया गया है । ऐसा हमने बुद्धिमान पुरुषो से सुना है, जिन्होंने हमारे प्रति उसकी व्याख्या की थी ।।
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विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयम् सह।
अविद्यया मृत्यु ती विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥11॥
११. जो विद्या और अविद्या -- को एक ही साथ जनता है वह अविद्या से मृत्यु को पार करके विद्या से अमरत्व प्राप्त कर लेता है ।।
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अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽसम्भूतिमुपासते।
ततो भूय इव ते तमो य उ सम्भूत्याम् रताः ॥12॥
१२. जो असम्भूति ( अव्यक्त प्रकृति ) की उपासना करते है वे घोर अंधकार में प्रवेश करते है और जो सम्भूति (कार्यब्रम्हा) में रत है वे मानो उससे भी घोर अंधकार में प्रवेश करते है ।।
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अन्यदेवाहुः सम्भवादन्यदाहुरसम्भवात्।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे ॥13॥
१३. कार्यब्रम्हा की उपासना से और ही फल बताया गया है ; तथा अव्यक्तोपासना से और ही फल बताया गया है । ऐसा हमने बुद्धिमानो से सुना है, जिन्होंने हमारे प्रति उसकी व्याख्या की थी ।।
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सम्भूतिं च विनाशं च यस्तद्वेदोभयम् सह।
विनाशेन मृत्युं तीर्खा सम्भूत्याऽमृतमश्नुते ।।14।।
१४. जो असम्भूति और कार्यब्रम्हा - इन दोनों को साथ साथ जनता है वह कार्यब्रम्हा की उपासना से मृत्यु को पार करके असम्भूति के द्वारा (प्रकृतिलयरुप) अमरत्व को प्राप्त हो जाता है ।।
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हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्।
तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥15॥
१५. आदित्यमंडलस्थ ब्रह्म का मुख ज्योतिर्मय पात्र से ढका हुआ है । हे पूषन ! मुझ सत्यधर्मा को आत्मा की उपलब्धि कराने के लिए तू उसे उघाड़ दे।।
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पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य
व्यूह रश्मीन् समूह तेजः।
यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि
योऽसावसी पुरुषः सोऽहमस्मि ॥16॥
१६. हे जगत पोषक सूर्य ! हे एकाकी गमन करने वाले ! हे यम (संसार नियमन करने वाले ) ! हे सूर्य (प्राण और रस का शोषण करने वाले) ! हे प्रजापतिनंदन ! तू अपनी किरणों को हटा ले ( अपने तेज को समेट ले ) । तेरा जो अतिशय कल्याणमय रूप है उसे मैं देखता हूँ । यह जो
आदित्यमंडलस्थ पुरुष है वह मैं हूँ।
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वायुरनिलममृतमथेदं भस्मांतम् शरीरम्।
ॐ क्रतो स्मर कृतम् स्मर क्रतो स्मर कृतम् स्मर ॥17॥
१७. अब मेरा प्राण सर्वात्मक वायुरूप सूत्रात्मा को प्राप्त हो और यह शरीर भस्म शेष हो जाये । हे मेरे संकल्पात्मक मन अब तू स्मरण कर, अपने किये हुए को स्मरण कर , अब तू स्मरण कर, अपने किये हुए को स्मरण
कर ।।
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अग्ने नय सुपथा राये अस्मान्
विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्।
युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो
भविष्ठां ते नमोक्तिं विधेम ॥18॥
१८. हे अग्ने ! हमें कर्म फल भोग के लिए सन्मार्ग से ले चल । हे देव ! तू समस्त ज्ञान और कर्मो को जानने वाला है । हमारे पांडवपूर्ण पापो को नष्ट कर । हम तेरे लिए अनेको नमस्कार करते है ।।
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Comments

  1. Name -Riya
    Major -History
    Sr. No-76

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  2. Name Ranjan devi
    sr no 40
    Major Hindi

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  3. Name -Riya
    Major -History
    Sr. No-76

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  4. Sahil Rana
    Major english
    Sr number 5

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  6. Priyanka Devi
    Sr.no.23
    Major history

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  7. Anjli
    Major-Political science
    Minor-history
    sr.no-73

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  8. Diksha Devi
    Major history
    Sr. No. 50

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  9. Diksha Devi
    Major history
    Sr. No.50

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  10. Name jyotika Kumari Major hindi Sr no 5 minor history

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  11. Jagriti Sharma
    Serial no. 2
    Major- Hindi

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  12. Name rahul kumar major history
    Sr no. 92

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  13. Name rahul Kumar
    Major history
    Sr no. 92

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  14. Akriti choudhary
    Major History
    Sr.no 11

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  15. VIVEk Kumar Pol science sr no 38 dehri

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  16. Name Sejal Mehta
    Sr no 33
    Major Hindi

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  17. Name Sakshi
    Sr no 14
    Major Hindi
    Minor history

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  18. Shivam choudhary
    Sr. No. 78
    Major Political science

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  19. Sourabh Singh major hindi Roll no 2001hlo15

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  20. Name Ranjana Devi
    Sr no 40
    Major Hindi
    Minor history

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  21. Name-sakshi Major-English Rollno.----2007MA004

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  22. Nam arvind g fefar
    Gujarat

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