नीतिशतक1️⃣7️⃣🕉️1️⃣8️⃣🕉️1️⃣9️⃣

 🕉️नीतिशतक1️⃣7️⃣🕉️1️⃣8️⃣🕉️1️⃣9️⃣🕎🕎

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हतुर्याति न गोचरं किमपि शं पुष्णातियत्सर्वदा

ऽप्यर्थिभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धिं पराम्। 

कल्पान्तेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्याख्यमन्तर्धनम्

येषां तान्प्रति मानमुन्झतनृपाः कस्तैः सह स्पर्धते॥17॥ 

🇮🇳अन्वयः-यत् (विद्याधनम्) हर्तुः गोचरं न याति, सर्वदा किम् अपि शं पुष्णाति, अर्थिभ्यः अनिशं प्रतिपाद्यमानं परां वृद्धिं प्राप्नोति। कल्पान्तेषु अपि निधनं न प्रयाति, तत् विद्याख्यम् अन्तर्धनं येषां तान् प्रति हे नृपाः । मानम् उज्झत, तैः सह क: स्पर्धते॥

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-यत् = जो विद्या रूपी धन। हर्तुः = चुराने वाले के। गोचरम् = समक्ष। न = नहीं। याति = जाता है (निराकार होने के कारण)। सर्वदा = हमेशा। किमपि = कुछ न कुछ। शम् = कल्याण। पुष्णाति = देता है या करता है। अर्थिभ्यः = याचकों के लिए। अनिशम् = निरन्तर । प्रतिपाद्यमानम् = दिये जाने पर। पराम् = अत्यन्त। वृद्धिम् = वृद्धि को। प्राप्नोति = प्राप्त करता है। कल्पान्तेषु अपि = युगों के पश्चात् भी जो। निधनम् = विनाश को। न प्रयाति = प्राप्त नहीं होता है। तत् = वह। विद्याख्यम् = विद्या नाम से विख्यात। अन्तर्धनम् = गुप्तधन। येषाम् । जिनके पास है। तान् प्रति = उनके प्रति। हे नृपाः = हे राजा लोगो। मानम् = अभिमान को। उज्झत = छोड़ दो। तैः सह = उनके साथ। कः = कौन। स्पर्धते स्पर्धा कर सकता है।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-विद्या एवं विद्वानों की सर्वोच्चता बतलाते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि जो विद्याधन चोरों को दिखायी नहीं देता है, जो सदैव कुछ न कुछ कल्याण करता है, जो याचकों को निरन्तर दिये जाने पर भी अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होता है तथा जो युगों तक क्षय को प्राप्त नहीं होता है ऐसा विद्यारूपी गुप्तधन जिनके पास है उनके प्रति हे राजा लोगो स्पर्धा को छोड़ दो क्योंकि उनके साथ कोई स्पर्धा नहीं कर सकता है।

🇮🇳भावार्थ यह है कि "नृपत्वं च विद्वत्त्वं च नैव तुल्यं कदाचन" अर्थात् राजत्व और विद्वत्व कभी भी समान नहीं हो सकते क्योंकि विद्वत्व नृपत्व से श्रेष्ठ है।

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अधिगतपरमार्थान्पण्डितान्मावमंस्था

स्तृणमिव लघुलक्ष्मीनॆव तान्संरुणद्धि। 

अभिनवमदलेखाश्याम-गण्डस्थलानाम्,

न भवति बिसतन्तुवारणं वारणानाम्॥18॥

🇮🇳 अन्वयः-(हे नृप!) अधिगतपरमार्थान् पण्डितान् मा अवमंस्था। तृणम् इव लघुलक्ष्मीः तान् नैव संरुणद्धि। बिसतन्तुः अभिनवमदलेखाश्यामगण्डस्थलानां वारणानाम् वारणं न भवति।

🇮🇳शब्दार्थ,,,अधिगतः = प्राप्त कर लिया है। परमार्थः = तत्त्वज्ञान यानि तत्त्वज्ञान को प्राप्त किये हुए। पण्डितान् = विद्वानों को। मा अवमंस्था= अपमान मत करो। तृणम् इव = तिनके के समान। लघुलक्ष्मीः = तुच्छ धन-दौलत। तान् = उनको। नैव = (न + एव वृद्धि सन्धि) नहीं। संरुणद्धि = रोक सकती है। बिसन्तुः = कमलनाल की डोरी। अभिनवमदलेखया = तत्काल सवितमद रेखा से (रेखा, लेखा, रूद्र, लूद्र, रज्जु-लज्जु समानार्थक शब्द हैं क्योंकि संस्कृत में नियम है कि “रलयोरभेदः" अर्थात् र और ल में भेद नहीं है।) श्यामगण्डस्थलानाम् = मलिन हुए गालों वाले। वारणानाम् = हाथियों का। वारणम् = रोकने वाला यानि बन्धन । न भवति नहीं हो सकता।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-(हे राजन्!) तत्त्वज्ञानी पण्डितों का अनादर मत करो। तिनके के समान तुच्छलक्ष्मी (धनलोभ) उनको ठीक उसी प्रकार नहीं रोक सकती जिस प्रकार कमलनाल का तन्तु नवीन मदजल से मलिन गालों वाले मदमस्त हाथियों के लिए बन्धन नहीं बन सकता है। भावार्थ यह है कि विद्वान् मान-सम्मान का भूखा होता है धन-दौलत का नहीं।

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अम्भोजिनीवनविहार-विलासमेव, 

हंसस्य हन्ति नितरां कुपितो विधाता। 

न त्वस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धम्

वैदग्ध्यकीर्तिमपहर्तुमसौ समर्थः॥19॥ 

🇮🇳अन्वयः-विधाता कुपितः (सन्) हंसस्य अम्भोजिनीवनविहारविलासम् एव नितरां हन्ति । तु असौ अस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धां वैदग्ध्यकीर्तिम् अपहर्तुं न समर्थः ।

🇮🇳शब्दार्थ एवं व्याकरण-विधाता = राजा (प्रसंगानुसार यहाँ विधाता का अर्थ राजा है।)। कुपितः = क्रोधित हुआ। हंसस्य = हंस के। अम्भोजिनीवनविहारविलासम् = (अम्भोजिनीनां वनं = अम्भोजिनीवनम् अम्भोजिनीवने विहारः अम्भोजिनीवनविहारः तस्य विलासम्) कमलनियों के वन में घूमने के आनन्द को। एव = ही। नितराम् = पूर्णतया। हन्ति -रोक सकता है। तु = परन्तु। असौ = यह राजा। अस्य = इस हंस की। दुग्धजलभेदविधौ = दूध एवं पानी को पृथक् करने में। प्रसिद्धाम् = विख्यात । वैदग्ध्यकीर्तिम् = चातुर्य के यश को। अपहर्तुम् = (अप + ह + तुमुन्) हरण करने में या नष्ट करने में। न समर्थः = समर्थ नहीं होता।

🇮🇳हिन्दी-अनुवाद-विद्या का श्रेष्ठ्य सिद्ध करते हुए भर्तृहरि जी कहते हैं कि राजा यदि कुपित हो जाये तो वह अपने कमलनियों के वन में हंसों के विहार पर तो प्रतिबन्ध लगा सकता है परन्तु वह हंस के नीरक्षीरविवेचन के गुण का हरण नहीं कर सकता।

🇮🇳भावार्थ यह कि विद्या का कोई अपहरण नहीं कर सकता है तथा धनी धनबल से भी इसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

🇮🇳विशेष-हंस पक्षी के सन्दर्भ में शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि यदि उसके सामने असली एवं नकली मोती मिलाकर रख दिये जायें तो हंस असली मोतियों को चुन लेता है तथा नकलियों को छोड़ देता है। इसी प्रकार कवियों के वर्णनों से यह भी ज्ञात होता है कि हंस के समक्ष यदि पानी मिला हुआ दूध रखा जाये तो हंस दूधदूध पी लेता है तथा पानी को छोड़ देता है। इसीलिए उसे नीर (जल) क्षीर (पानी) विवेकी (नीरक्षीरविवेकी) कहा जाता है। सम्भवतः उसके इसी कौशल (वैदग्ध्य) के कारण विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का वाहन भी ऋषियों ने हंस ही माना है। क्योंकि विद्या पढ़ने पर भी मनुष्य में सत्य एवं असत्य को पृथक् करने की पहचान आ जानी अपेक्षित होती है।

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Comments

  1. Tanvi Kumari
    Sr. No . 69
    Major . Pol. Science

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  2. Sejal kasav
    Major sub.- pol science
    Minor sub.- hindi
    Sr.no.- 01

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  3. Priyanka Devi
    Sr.no.23
    Major history

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  4. Name Priyanka devi
    Major History
    Ser No 30.

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  5. Name Sakshi
    Sr no 14
    Major Hindi
    Minor history

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  6. Sr.no.49
    Major- political science
    Minor- history

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  7. Anjlj
    Major - political science
    Minor - history
    Sr.no 73

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  8. Name Akshita Kumari Major Political Science Sr. No. 70

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  9. Major hindi name Leela Devi SR no 41

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  10. Mehak
    Sr.no.34
    Major.political science

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  11. Tanu guleria
    Sr.no. 32
    Major political science

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  12. Sonali dhiman political science Sr. no. 19

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  13. Riya thakur
    Sr. No. 22
    Major political science

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  14. Chetan Choudhary major pol science minor hinHi sr no 13

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  15. Akriti choudhary
    Major history
    Sr.no 11

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  16. Divya Kumari
    major political science.
    Sr.no 60.

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  17. ektaekta982@gmail.com
    Varsha Devi Pol 24

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  18. Palvinder kaur major history sr no 9

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  19. Name Simran kour
    Sr no 36
    Major history

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  20. Anjli
    Major -political science
    Minor - history
    Sr.no - 73

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