मन्त्र 1️⃣2️⃣3️⃣4️⃣5️⃣

 - ब्रह्मचारी पृथिवी और धुलोक- इन दोनों को पुनः पुनः अनुकूल बनाता हुआ चलता है, इसलिये उस ब्रह्मचारी के अन्दर सब देव अनुकूल मन के साथ रहते हैं। वह ब्रह्मचारी पृथिवी और धुलोक का धारणकर्ता है और वह अपने तप से आचार्य को परिपूर्ण बनाता है।।।

देव, पितर, गंधर्व और देवजन- ये सब ब्रह्मचारी का अनुसरण करते हैं। तीन, तीस, तीन सौ और छः हजार देव हैं। इन सब देवों का वह ब्रह्मचारी अपने तप से पालन करता है।2।

ब्रह्मचारी को अपने पास करने वाला आचार्य उसको अपने अन्दर करता है। उस ब्रह्मचारी को अपने उदर में तीन रात्रि तक रखता है, जब वह ब्रह्मचारी द्वितीय जन्म लेकर बाहर आता है, तब उसको देखने के लिये सब विद्वान सब प्रकार से एकत्रित होते हैं।।3

यह पृथिवी प्रथम समिधा है और द्वितीय समिधा द्युलोक है। इस समिधा से वह ब्रह्मचारी अन्तरिक्ष की पूर्णता करता है। समिधा,मेखला, श्रम करने का अभ्यास और तप इनके द्वारा वह ब्रह्मचारी सब लोकों को पूर्ण करता है।4।

ज्ञान के पूर्व ब्रह्मचारी होता है। उष्णता धारण करता हुआ तप से ऊपर उठता है। उस ब्रह्मचारी से ब्रह्मसम्बन्धी श्रेष्ठ ज्ञान प्रसिद्ध होता है तथा सब देव अमृत के साथ होते हैं।5।

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