✡️ भामह, ✡️

 ✡️ भामह, ✡️

समय- ई. 6 वीं शती का मध्य । "काव्यालंकार"

नामक ग्रंथ के प्रणेता । अनेक आचार्यों ने दंडी को भामह

से पूर्ववर्ती माना है पर अब निश्चितव हो गया है कि दंडी

भामह के परवर्ती थे। भामह के व्यक्तिगत जीवन के बारे में

कुछ भी पता नहीं चलता। अपने काव्यालंकार ग्रंथ के अंत

में इन्होंने स्वयं को "रक्रिलगोमिन्'" का पुत्र कहा है (6-64)

"रक्रिल" नाम के आधार पण कुछ विद्वानों ने इन्हें बौद्ध

माना है पर अधिकांश विद्वान् इससे सहमत नहीं क्यों कि

भामह ने अपने ग्रंथ में बुद्ध की कहीं भी चर्चा नहीं की

है। इसके विपरीत उन्होंने सर्वत्र रामायण व महाभारत के

नायकों का निर्देश किया है। अतः वे निश्चित रूप से

वैदिक-धर्मावलंबी ब्राह्मण थे। वे काश्मीर-निवासी माने

 जाते हैं।भामह अलंकार-संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं।

 इन्होंने अलंकार को ही काव्य का विधायक तत्त्व स्वीकार

 किया है।

इन्होंने ही सर्वप्रथम काव्य-शास्त्र को स्वतंत्र शास्त्र का रूप

प्रदान किया और काव्य में अलंकार की महत्ता स्वीकार

 की।भामह के अनुसार बिना अलंकारों के कविता कामिनी

 उसी प्रकार सुशोभित नहीं हो सकती जिस प्रकार

 आभूषणों के बिना कोई रमणी। इन्होंने रस को "रसवत्"

 आदि अलंकारों में अंतर्भूत कर उसकी महत्ता कम कर दी

 है।

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