उद्भट्ट

 उद्भट- नाम से ये काश्मीरी ब्राह्मण प्रतीत होते हैं।

इनका समय ई. 8 वीं शती का अंतिम चरण व 9 वीं शती

का प्रथम चरण माना जाता है। कल्हण की 'राजतरंगिणी' से ज्ञात होता है कि ये काश्मीर- नरेश जयापीड के सभा-पंडित थे और उन्हें प्रतिदिन एक लाख दीनार वेतन के रूप में प्राप्त होते थे-

विद्वान् दीनारलक्षेण प्रत्यहं कृतवेतनः ।

भट्टोऽभूदुद्भटस्तस्य भूमिभर्तुः सभापतिः।।

जयापीड का शासनकाल 779 ई. से 813 ई. तक माना

जाता है। अभी तक उद्भट के 3 ग्रंथों का विवरण प्राप्त

होता  है-

काव्यालंकार-सारसंग्रह। उनमें भामह-विवरण भामहकृत

'काव्यालंकार' की टीका है, जो संप्रति अनुपलब्ध है। कहा

जाता है कि यह ग्रंथ इटाली से प्रकाशित हो गया है पर

भारत में अभी तक नहीं आ सका है। इस ग्रंथ का उल्लेख

प्रतिहारेंदुराज ने अपनी 'लघुविवृति' में किया है। अभिनवगुप्त,रुय्यक तथा हेमचंद्र भी अपने ग्रंथों में इसका संकेत करते हैं। इनके दूसरे प्रंथ- कुमारसंभव का उल्लेख प्रतिहारेंदुराज की 'विवृति' में है। इनमें महाकवि कालिदास के 'कुमारसंभव'के आधार पर उक्त घटना का वर्णन है 'कुमारसंभव' के कई श्लोक उद्भट ने अपने तीसरे ग्रंथ 'काव्यालंकार सारसंग्रह 'मे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किये हैं । प्रतिहारेंदुराज व राजानक तिलक, उद्भट के दो टीकाकार हैं, जिन्होंने क्रमशः 'लघुविवृति' तथा 'उद्भट-विवेक' नामक टीकाओं का प्रणयन किया है। उद्भट भामह की भांति अलंकारवादी आचार्य हैं।

'अभिनव भारती के छठे अध्याय में इनका उल्लेख है-

निर्देशे चैतत्क्रमव्यत्यासनादित्यौद्भटाः । अभिनवभारती में

'नैतदिति भट्टलोल्लटः' उल्लेख के कारण, इन्हें लोल्लट का

पूर्ववर्ती माना जाता है। अतः ये सातवीं शती के अन्तिम

अथवा आठवीं राती के आरंभिक के भाग के माने जा सकते हैं।

उद्भट ने 'उद्भटालंकार' नामक एक और ग्रंथ की रचना

की है और भरत मुनि के 'नाट्य-शास्त्र' पर टीका लिखी है।

इनके समय जयापीड की राजसभा में मनोरथ, शंखदत्त,

चटक, संधिमान् तथा वामन मंत्री थे। सद्गुरु-सन्तान-परिमल ग्रंथ (कामवरेटिपीठ के 38 वें आचार्य के समय की रचना)में भी यह दर्शित है। राजा जयापीड, कल्लट नाम धारण कर, अन्यान्य राज्यों का भ्रमण करते हुए गौड देश में आया।वहां पौण्डरवर्धन गांव के कार्तिकेय-मन्दिर में उसने भरत नाट्य देखा। वह इतना प्रभावित हुआ कि कमला नामक नर्तिका को अपने साथ ले गया तथा उसे अपनी रानी बनाया।

संभवतः इसी राजा के आदेश से उद्भट ने अपनी साहित्य-शास्त्रीय कृति 'काव्यालंकार-सारसंग्रह' की रचना की है।

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