बाणभट्ट
बाणभट्ट,,समय ई. 7 वीं शती। संस्कृत के सर्वश्रेष्ठ
कथाकार व संस्कृत गद्य के सार्वभौम सम्राट् । संस्कृत के
साहित्यकारों में एकमात्र बाण ही ऐसे कवि हैं, जिनके
जीवन के संबंध में पर्याप्त मात्रा में प्रामाणिक जानकारी
उपलब्ध होती है। इन्होंने अपने ग्रंथ "हर्षचरित" की
प्रस्तावना "कादंबरी" के प्रारंभ में अपना परिचय दिया है।
इनके पूर्वज सोननद के निकटस्थ प्रीतिकूट नामक नगर के
निवासी थे। कतिपय विद्वानों के अनुसार यह स्थान बिहार
प्रांत के आरा जिले में "पियरो" नामक ग्राम है, तो अन्य
कुछ विद्वान उसे गया जिले के "देव" नामक स्थान के
निकट "पिट्रो" नामक ग्राम मानते हैं । बाण का कुल
पांडित्य के लिये विख्यात था। ये वात्स्यायन गोत्रीय
ब्राह्मण थे। इनके यहां अनेक छात्र यजुर्वेद का पाठ किया
करते थे । कुबेर के चार पुत्र हुए इनमें से पाशुपत के पुत्र
का नाम अर्थपति था। अर्थपति के 11 पुत्र, थे जिनमें से
चित्रभानु के पुत्र बाणभट्ट थे। बाण की माता का नाम
राजदेवी था।
इनकी मां का देहांत इनकी बाल्यावस्था में ही हो चुका
था। पिता द्वारा ही इनका पालन पोषण हुआ। 14 वर्ष का
आयु में बाण के पिता भी इन्हें छोड स्वर्गवासी हुए।
अतः योग्य अभिभावक के संरक्षण के अभाव में ये अनेक
प्रकार की शैशवोचित चपलताओं में फंस गए और देशाटन
करने के लिये निकले। इन्होंने अनेक गुरुकुलों में अध्ययन
किया और कई राजकुलों को देखा।
विद्वत्ता के प्रभाव से इन्हें महाराज हर्षवर्धन की सभा में
स्थान प्राप्त हुआ। कुछ दिनों तक वहां रहकर बाण अपनी
जन्मभूमि को लौटे और हर्षवर्धन की जीवन गाथा प्रस्तुत
की।फिर इन्होंने अपने महान् ग्रंथ "कादंबरी" का प्रणयन
प्रारंभ किया, किन्तु इनके जीवन काल में यह ग्रंथ पूस- न
हो सका।उनकी मृत्यु के पक्चात् उन्हीं की शैली में उनके
पुत्र भूषणभट्ट ने उनकी "कादंबरी" के उत्तर भाग को पूर्ण ,
किया कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि कई स्थलों
पर बाणतनय ने अपने पिता से भी अधिक प्रौढता प्रदर्शित
की है।बाण की संतति के बारे में किसी भी प्रकार का
उल्लेख नहीं है।
धनपाल की "तिलकमंजरी" में बाणतनय पुलिंध्र का वर्णन
है, जिसके आधार पर विद्वानों ने उनका नाम पुलिनभट्ट
निश्चित कर दिया है।
"केवलोऽ पि स्फुरन् बाणः करोति विमदान् कवीन् ।
किं पुतः क्लुप्तसंधानः पुलिं्कृतसन्निधिः ।।"
अनुमान है कि इनके गुरु भचु नामक महापंडित थे और
इनका विवाह मयूरभट्ट नामक एक विद्वान पंडित की
भगिनी के साथ हुआ था।
बाणकृत 3 प्रंथ प्रसिद्ध हैं। हर्षचरित, कादंबरी और
चण्डीशतक। इनकी अन्य दो कृतियां भी प्रसिद्ध हैं, वे हैं :
पार्वतीपरिणय व मुकटताडितक पर विद्वान् इन्हें अन्य
बाणभट्ट नामधारी लेखक की रचनाएं मानते हैं। बाणभट्ट
के बारे में अनेक कवियों की प्रशस्तियां उपलब्ध होती हैं।
बाणभट्ट का समय 607 ई. से 648 ई. (महाराज हर्षवर्धन
का शासनकाल)तक है।
वाणभट्ट अत्यंत प्रतिभाशाली साहित्यकार हैं। इन्होंने
कादंबरी की रचना कर, संस्कृत कथा साहित्य में युग
प्रवर्तन किया। हर्षचरित की प्रस्तावना में इनकी अलंकार
प्रचुर शैली संबंधी मान्यता का पता चलता है। इनके वर्णन
संस्कृत काव्य की निधि हैं। धनपाल ने उन्हें अमृत उत्पन्न
करने वाला गंभीर समुद्र कहा है। अपनी वर्णनचातुरी के
लिये बाण प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध रहे हैं और आचार्यों
ने इनके इस गुण पर मुग्ध हो कर "बाणोच्छिष्टं जगत
सर्वम" तक कह दिया है।
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