आर्यभट्ट

आर्यभट्ट - ज्योतिष-शास्त्र के एक महान् आचार्ष।

कुसुमपुर (पटना) के निवासी। भारतीय ज्योतिष का क्रमबद्ध इतिहास आर्यभट्ट (प्रथम) से ही प्रारंभ ह्यता है। इनके विश्वविख्यात ग्रंथ का नाम 'आर्यभटीय' है जिसकी रचना इन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर की है। जन्मकाल- 476 ई. ।इन्होंने 'तंत्र' नामक एक अन्य ग्रंथ की भी रचना की है।

इनके ये दोनों ही ग्रंथ आज उपलब्ध हैं। इन्होंने सूर्य तथा तारों को स्थिर मानते हुए, पृथ्वी के घूमने से रात और दिन होने के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ'आर्यभटीय' की रचना, पटना में हुई थी। इस ग्रंथ में आर्यभट्ट ने चंद्रग्रहण व सूर्यग्रहण के वैज्ञानिक कारणों का विवेचन किया है। 'आर्यभटीय' का अंग्रेजी अनुवाद डॉ. केर्न ने 1874 ई. लाइडेन (हॉलँड) में प्रकाशित किया था। इसका हिन्दी अनुवाद उदयनारायणसिंह ने सन् 1903 में किया था। संस्कृत में 'आर्यभटीय' की 4 टीकाएं प्राप्त होती हैं। सूर्यदेव यज्वा की टीका सर्वोत्तम मानी जाती है जिसका नाम है 'आर्यभट्ट-प्रकाश' । मूल ग्रंथ के चार पाद हैं- गातिकापाठ, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलपाद। श्लोक-संख्या 121है। द. भारत में इस ग्रंथ का प्रचार विशेष रूप से हुआ।इसके आधार पर बना पंचांग दक्षिण के वैष्णवपंथी लोगों को मान्य है।

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