वराहपुराणम्

वराहपुराणम् - पारंपारिक क्रमानुसार यह 12 वां पुराण है।

इस पुराण में भगवान् विष्णु के वराह अवतार का वर्णन है।

विष्णु द्वारा वराह का रूप धारण कर पाताल लोक से पृथ्वी

का उद्धार करने पर इस पुराण का प्रवचन किया था। यह

पुराण है। नारदपुराण व मत्स्यपुराण के अनुसार इसकी

श्लोक संध्या- 24 सहस है, किंतु कलकत्ता की एशियाटिक

सोयाइटी द्वारा प्रकाशित संस्करण में केवल 10,700 श्लोक

है। इसके अध्यायों की संख्या 217 है तथा गौडीय और

दाक्षिणात्य नामक दो पाठ-भेद उपलब्ध होते हैं जिनके अध्यायों

की संख्या में भी अंतर दिखाई देता है। एक ही विषय के

वर्णन में श्लोकों में भी अंतर आ गया है। इस पुराण में

सृष्टि व राज-वंशावलियों की संक्षिप्त चर्चा है, पर पुराणोक्त

विषयों की पूर्ण संगति नहीं दीख पाती। ऐसा प्रतीत होता है

कि यह पुराण, विष्णु-भक्तों के निमित्त प्रणीत स्तोत्रों एवं

पूजा-विधियों का संग्रह है। यद्यपि यह वैष्णव पुराण है तथापि

इसमें शिव व दुर्गा से संबद्ध कई कथाओं का वर्णन विभिन्न

अध्यायों में है। इसमें मातृ-पूजा एवं देवियों की पूजा का भी

वर्णन 90 से 95 अध्याय तक किया गया है, तथा गणेशजन्म

की कथा व गणेश-स्तोत्र भी इसमें दिया गया है। इस पुराण

में श्राद्ध, प्रायश्चित्त, देवप्रतिमा की निर्माण-विधि आदि का भी

कई अध्यायों में वर्णन है, तथा कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा

के माहात्म्य का वर्णन 152 से 168 तक के 17 अध्यायों

में है। मथुरामाहात्म्य में मथुरा का भूगोल दिया गया है तथा

उसकी उपादेयता इसी दृष्टि से है। इसमें नचिकेता का उपाख्यान

भी विस्तारपूर्वक वर्णित है जिसमें स्वर्ग और नरक का वर्णन

| विष्णु-संबंधी विविध व्रतों के वर्णन पर इसमें विशेष बल

दिया गया है, तथा द्वादशी-व्रत का विस्तारपूर्वक वर्णन करते

हुए विभिन्न मासों में होने वाली द्वादशियों का कथन किया

गया है। प्रस्तुत पुराण के अनेक अध्याय पूर्णतया गद्य में

निबद्ध है (81 से 83, 86-87, 74) तथा कतिपय अध्यायों

में गद्य व पद्य दोनों का मिश्रण है। "भविष्यपुराण" के दो

वचनों को उद्धृत किये जाने के कारण यह पुराण उससे

अर्वाचीन सिद्ध होता है। (177-51) । इस पुराण में रामानुजाचार्यक  मत का विशद रूप से वर्णन है। इन्हीं आधारों पर विद्वानोंन  इसका रचनाकाल नवम-दशम शती के बीच निश्चित किया है।


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