अमरुक (अमरु)

 अमरुक (अमरु)

मुक्तक काव्य के रचयिता। इसमें एक सौ से अधिक स्फुट

पद्य हैं। इनके जीवन-वृत्त के विषय में अधिकृत जानकारी

प्राप्त नहीं होती। अन्य ग्रथों में उद्धृत इनके पद्यों के आधार पर 

इनका समय 750 ई. के पूर्व निश्चित होता है।

अमरुक से संबंधित निम्न दो प्रशस्तियां प्राप्त होती हैं।

भ्राम्यन्तु मारवग्रामे विमूढा रसमीप्सवः।

अमरुद्देश एवासौ सर्वतः सुलभो रसः । ।

अमरुक-कवित्व-डमरुक नादेन विनिहता न संचरति।

श्रृंगारभणितिरन्या धन्यानां श्रवणविवरेषु ।।

'अमरु-शतक' नामक प्रसिद्ध शृंगारिक (सूक्ति-मुक्तावली 4-101)

एक किंवदंती के अनुसार अमरुक जाति के स्वर्णकार थे।

ये मूलतः श्रृंगार रस के कवि हैं। अपने सुप्रसिद्ध मुक्तक

काव्य में इन्होंने तत्कालीन विलासी जीवन (दांपत्य एवं

प्रणय-व्यापार) का सरस चित्र खींचा है, जिसे परवर्ती

साहित्याचार्यों ने अपने लक्षणों के अनुरूप देखकर, लक्ष्य के रूप में उद्धृत किया है।

शांकरदिग्विजय में कहा गया है कि शंकराचार्य ने जिस

मृत राजा की देह में प्रवेश किया था, उसका नाम अमरु

था। कहा जाता है कि अमरु की देह में प्रवेश करने के

बाद, वात्स्यायन-सूत्र के आधार पर शंकराचार्य ने कामशास्त्र की

 विविध अवस्थाओं और प्रसंगों पर सौ श्लोक लिखे।

अमरुशतक संस्कृत प्रणय-काव्य की सर्वश्रेष्ठ रचना है। दीर्घ और

 नादमधुर छंद इसकी विशेषता है।अमरु के अनुसार प्रणय ही 

सर्वकश देवता है एक मुग्धा का शब्दचित्र प्रस्तुत है

मुग्धे मुग्धतयैव नेतुमखिलः कालः किमारभ्यते

मानं धत्स्व, धृत्तिं बधान, ऋजुतां दूरे कुरु प्रेयसि।

सख्यैवं प्रतिबोधिता प्रतिवचस्तामाह भीतानना

नीचैः शंस हृदि स्थितो हि ननु मे प्राणेश्वरःश्रोष्यति ।।

अर्थ- हे मुग्धे, तू अपना समय मुग्धावस्था (भोलेपन) में

ही क्यों व्यतीत कर रही है? अरी प्रेमिके, जरा रूठ, धैर्य

रख और प्रियतम से सरलता को दूर रख। सखी के इस

उपदेश पर, प्रेयसी मुद्रा पर भय दिखाते हुए सखी से बोली-अरी

 जरा धीरे बता ह्रदय में बसा मेरा प्राणेश्वर सुन लेगा

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