कात्यायन
कात्यायन (वैयाकरण) - "अष्टाध्यायी" पर वार्तिक लिखने वाले प्रसिद्ध वैयाकरण जिन्हें "वार्तिककार कात्यायन" के नाम से ख्याति प्राप्त है। श्री. युधिष्ठिर मीमांसक के अनुसार *महाभाष्य 3/2/118) में इनका स्थितिकाल वि. पू. 2700 वर्ष है। संस्कृत व्याकरण के मुनित्रय में पाणिनि, कात्यायन एवं पतंजलि का नाम आता है। पाणिनीय व्याकरण को पूर्व बनाने के लिये ही कात्यायन ने अपने वार्तिकों की रचना की थी जिनमें अष्टाध्यायी के सूत्रों की भांति ही प्रौढता व मौलिकता के दर्शन होते हैं। इनके वार्तिक, पाणिनीय व्याकरण के महत्त्वपूर्ण अंग हैं जिनके बिना वह अपूर्ण लगता है।</p>
प्राचीन वाङ्मय में कात्यायन के लिये कई नाम आते हैं।कात्य, कात्यायन, पुनर्वसु, मेधाजित् तथा वररुचि, और कई कात्यायनों का उल्लेख प्राप्त होता है-कात्यायन कौशिक, आंगिरस, भार्गव एवं काल्यायन द्वामुष्यायण । "स्कंदपुराण" के अनुसार इनके पितामह का नाम याज्ञवल्क्य, पिता का नाम-कात्यायन और इनका पूरा नाम वररुचि कात्यायन कात्यायन बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न व्यक्ति थे। इन्होंने व्याकरण के अतिरिक्त काव्य, नाटक, धर्मशास्त्र व अन्य अनेक विषयों पर स्फुट रूप से लिखा है। इनके ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है। स्वर्गारोहण(काव्य) इसका उल्लेख "महाभाष्य"(4/3/110) में "वाररुच" काव्य के रूप में प्राप्त होता तथा समुद्रगुप्त के "कृष्णचरित" में भी इसका निर्देश है।इसके अनेक पद्य "शार्ङ्गधर पद्धति", "सदुक्तिकर्णामृत" व"सूक्तिमुक्तावली" में प्राप्त होते हैं। इन्होंने कोई काव्यशास्त्रीय ग्रंथ भी लिखा था जो संप्रति अनुपलब्ध है, किन्तु इसका विवरण "अभिनवभारती" व "श्रृंगारप्रकाश" में है।इनके अन्य प्रंथों के नाम हैं-"भ्राज", "संज्ञक श्लोक" तथा "उभयसारिकाभाण"। कात्यायन के नाम पर कुल 26 ग्रन्थ प्राप्त होते हैं।p>
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