पार्थसारथि

 पार्थसारथि मिश्र- (मीमांसाकेसरी) -मीमांसादर्शन के अंतर्गत


भाट्ट-मत के एक आचार्य । पिता-यज्ञात्मा समय- ई. 12


वीं शती। मिथिला के निवासी। इन्होंने अपनी रचनाओं द्वार


भट्ट-परंपरा को अधिक महत्त्व व स्थायित्व प्रदान किया


मीमांसा-दर्शन पर इनकी विद्वन्मान्य 4 कृतियां उपलब्ध होतं


हैं- तंत्ररत्न, न्याय-रत्नाकर, न्याय-रतल्माला व शास्त्र दीपिक


(पूर्व मीमांसा)। "तंत्रत्न", प्रसिद्ध मीमांसक कुमारिल भट्


रचित "टुप्टीका" नामक ग्रंथ की टीका है। "न्याय-रत्नाकर


भी कुमारिल भट्ट की रचना " श्लोकवार्त्तिक" की टीका है


"न्याय-रत्नमाला" इनकी मौलिक कृति है जिस पर रामानुजाचा


ने (17 वीं शती) "नाणकरत्न" नामक व्याख्या-ग्रंथ की रच


की है। "शास्त्र-दीपिका" भी प्रौढ कृति है। इसी ग्रंथ


कारण इन्हें "मीमांसा-केसरी" की उपाधि प्राप्त हुई ४


"शास्त्र-दीपिका" पर 14 टीकाएं उपलब्ध हैं। सोमनाथ उ


अप्पय दीक्षित की क्रमशः "मयूख-मालिका" व मयूखावलं


नामक टीकाएं प्रसिद्ध हैं।


अपने ग्रंथों द्वारा पार्थसारथि मिश्र ने बौद्ध तत्त्वज्ञान


नास्तिकवाद, विज्ञानवाद व शून्यवाद का सप्रमाण खंडन व


हुए वेदान्त-शास्त्र के व्यावहारिक दृष्टिकोण को स्पष्ट किया


उनकी टीका की शैली व्यंगपूर्ण है। उन्होंने अनेक नवीन


प्रस्थापित किये हैं। मीमांसा-दर्शन के इतिहास में इनका स्थ


अद्वितीय माना जाता है। इनके पिता यज्ञात्मा, तत्कालीन विद्वा


में एक दार्शनिक के नाते सुप्रसिद्ध थे। पार्थसारथि ने अप


पिता के ही पास समस्त शास्त्रों का अध्ययन किया था।


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