कपिल,,,सांख्यदर्शन के आद्याचार्य।

 कपिल,,,सांख्यदर्शन के आद्याचार्य।

जन्मस्थान- सिद्धपुर । कर्दम व देवहूति के पुत्र। भागवत पुराण में इन्हें विष्णु का 5 वां अवतार कहा गया है। इनके बारे में महाभारत, भागवत आदि ग्रंथों में परस्पर-विरोधी कथन प्राप्त होते हैं। स्वयं महाभारत में ही प्रथम कथन के अनुसार ये ब्रह्मा के पुत्र हैं, तो द्वितीय वर्णन में अग्नि के अवतार कहे गए हैं (महाभारत, शांतिपर्व, अध्याय 218)। अतः कई देशी-विदेशी आधुनिक विद्वानों ने इन्हें ऐतिहासिक व्यक्ति नं मान कर काल्पनिक ही माना है पर प्राचीन परंपरा में आस्था रखने वाले विद्वान, इन्हें एक ऐतिहासिक व्यक्ति एवं सांख्यदर्शन का आदि प्रवर्तक मानते हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण, स्वयं को सिद्धों में कपिल मुनि बताते हैं। "सिद्धान्तों कपिलो मुनिः"(गीता 10-26)। ब्रह्मसूत्र के "शांकरभाष्य" में शंकर ने इन्हें सांख्य-दर्शन का आद्य उपदेष्टा और राजा सगर के 60 सहस्र

पुत्रों को भस्म करने वाले कपिल मुनि से भिन्न स्वीकार किया है। [ब्रह्मसूत्र, शांकरभाष्य (2-1-1)] । इन विवरणों के अस्तित्व में कपिल की वास्तविकता के प्रति संदेह नहीं किया जा सकता। प्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वान गार्वे ने अपने ग्रंथ "सांख्य फिलॉसफी" में मैक्समूलर व कोलब्रुक के निष्कर्षों का खंडन करते हुए कपिल को ऐतिहासिक व्यक्ति सिद्ध किया है ।महर्षि कपिल रचित दो ग्रंथ प्रसिद्ध है। "तत्वसमास" और "सांख्यसू्त्र"। कपिल के शिष्य का नाम आसुरि था जो सांख्यदर्शन के प्रसिद्ध आचार्य हैं। कपिल के प्रशिष्य पंचशिख हैं और वे भी सांख्यदर्शन के आचार्य हैं। तकों और तथ्यों से निष्कर्ष निकलता है कि कपिल बुद्ध से पहले तथा कम-से-कम कुछ उपनिषद लिखे जाने के पूर्व ही ख्याति प्राप्त कर चुके थे बुद्ध के जन्मस्थान "कपिलवस्तु" का नामकरण भी, वहां कपिल मुनि के वास्तव्य के कारण हुआ माना जाता है। कपिल के सांख्य-शास्त्र में कर्म की अपेक्षा ज्ञान को अधिक महत्त्व दिया गया है। श्वेताश्वर-उपनिषद् में सांख्य-सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है कपिल ने सर्वप्रथम प्रकृति और

पुरुष के भेद-ज्ञान के द्वारा विकासवाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। कपिल निरीक्वरवादी थे कपिल के नाम पर सांख्यसूत्र और तत्त्वसमास के अलावा व्यास-प्रभाकर, कपिल-गीता, कपिल-पंचरात्र, कपिल-संहिता, कपिल-स्तोत्र व कपिल-स्मृति नामक ग्रंथ प्रसिद्ध हैं।

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