मंखक

मंख (मंखक)समय-सन 1120 से 1170। पिता-विश्ववर्त (या विश्वव्रत) । काश्मीर के निवासी । राजतरंगिणी के अनुसार ये काश्मीर के राजा जयसिंह (सन् 1127 से 1149) के संधिविग्रहिक मंत्री थे। सुप्रसिध्द अलंकारशास्त्री रुय्यक इनके गुरु थे। गुरु के आदेश पर इन्होंने 'श्रीकंठ-चरित' की रचना की। 25 सगों के इस महाकाव्य में शंकर द्वारा त्रिपुरासुर के वध की कथा है। महाकाव्य के 25 वें सर्ग में, कवि द्वारा उनके बंधु मंत्री अलंकार के यहां होने वाली विद्वत्सभा तथा उसमें भाग लेने वाले तीस विद्वद्वत्वों का विस्तृत वर्णन है। उसमें आनंद, कल्याण, गर्ग, गोविंद, जल्हण, पट, पद्मराज, भुड्ग, लोष्ठदेव, बागीश्वर, श्रीगर्भ तथा श्रीवत्स नामक कवियों का उल्लेख है। इन्होंने 'मंखकोश' नाम से एक शब्दकोश भी लिखा है। हेमचंद्र ने इसका उल्लेख अपने कोश में किया है। कोश में इन्होंने किसी भी विशिष्ट शब्द का उपयोग विशद करते समय अभिजात संस्कृत वाङ्मय के अवतरण उद्धृत किये हैं। यह इस कोश की विशेषता है। कोश अप्रकाशित है। श्रीकंठचरित' का प्रकाशन काव्यमाला से 1887 ई. में हो चुका है। इस महाकाव्य के कतिपय स्थलों पर आलोचनात्मक उक्तियां भी प्रस्तुत .की गई हैं जिनमें मंखक की कवि एवं काव्य-संबंधी मान्यताएं निहित हैं।

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