अग्निपुराण

💐अग्निपुराण💐

🙏अग्निपुराण 18 पुराणों के पारंपरिक क्रमानुसार 8 वा पुराण । यह पुराण भारतीय विद्या का महाकोश है। शताब्दियों से प्रवाहित भारतीय वाङ्गमय में व्याप्त व्याकरण, तत्त्वज्ञान सुश्रुत का ओषध-ज्ञान, शब्दकोश, काव्यशास्त्र एवं ज्योतिष आदि अनेक विषयों का समाक्नेश इस पुराण में किया गया है। अधिकांश विद्वान इसे 7 वीं से 9 वीं शती के बीच की रचना मानते हैं। डा. हाजरा और पार्जिटर के अनुसार इसका समय 9 वीं श्ती का है। इस पुराण में 383 अध्याय और 11,457 श्लोक हैं। इसमें अग्निरुवाच, ईश्वर उवाच पुष्कर उवाच आदि वक्ताओं के नाम है जिनसे प्रतीत होता है कि तीन-चार वक्ताओं ने मिलकर यह वनाया है इस पुराण का विस्तार परा एवं अपरा विा के आधार पर है।
वेद, उसके षडंग, मीमांसादि दर्शन आदि का निर्देश अपरा
विद्या के रूप में है। ब्रह्मशन जिससे होता है, उस अध्यात्मविद्या का गौरव परा विद्या में किया है अवतार, चरित्र, राजवंश, विश्व की उत्पत्ति, तत्वज्ञान, व्यवहार नीति आदि विविध प्रंथों का इसमें विवेचन है। अध्यात्म का विवेचन अल्प होने से, इसे तामसकोटी का माना गया है शैव धर्म की ओर इस पुराण का झुकाव है। अवतारमालिका में कुर्मावतार का उल्लेख नहीं है। वाल्मीकि रामायण की रामकथा संक्षिप्तरूप में दी है। "रामणवणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव" यह सुमरसिद्ध वचन अग्निपुराण में ही मिलता है।
प्राचीन काल में दैत्य वैदिक कर्मों का आचरण करते थे।
परिणामतः वे बलवान थे। देव-देत्य संप्राम में उनकी विजय
के पक्चात् सारे देव विष्णु के पास पहुंचे। दैत्यों को धर्मध्रष्ट
कर उनका नाश करने हेतु विष्णु ने बुद्धावतार लिया।
अवतारवर्णन के पश्चात् सर्ग-प्रतिसर्ग का वर्णन है। अव्यक्त
ब्रह्म से क्रमशः सूष्टि की उत्पति, देवोपासना मंत्र वास्तुशासत्र,
देवालय, देवताओं की मूर्तियां, देव-प्रतिष्ठा, जीर्णोद्धार की भी चर्चा है। देवप्रतिष्ठा के लिये मध्यदेश का ब्राह्मण ही पात्र
माना है। कच्छ, कावेरी, कोंकण, कलिंग के ब्राह्मण अपात्र
बताये गये हैं।
सप्तद्वीप एवं सागर के नाम अगले अध्याय में है। आदर्श
राजा का लक्षण, "राजा स्यात् जनरंजनात्" यह बताया है।
राजा, प्रजा का प्रेम संपादन करे- अरक्षिताः प्रजा यस्प
नरकस्तस्य मन्दिरम्" (जिसकी प्रजा अरक्षित है, उस राजा का भवन नरकतुल्य है।
जनानुरागप्रभवा राज्ञो राज्यमहीत्रिय = राजा का राज्य, पृथ्वी
और सम्पमत्ति प्रजा के अनुराग से ही निर्माण होते हैं।
इस पुराण में विशेष उल्लेखनीय भाग गीतसार का है।
एक श्लोक में या श्लोकार्थ में उस अध्याय का तात्पर्य
आ जाता है। टान के बारे में अग्निपुराण में कहा गया है.
"देशे काले च पात्रे च दानं कोटिगुणं भवेत्" देश, काल
और पात्र का विचार कर किया गया दान कोटिगुणयुत होता
है। गाय की महत्ता इस श्लोक में बताई है :-
"गावः प्रतिष्ठा भूतानां गावः स्वस्त्यनं परम् ।
अन्नमेव परं गावो देवानां हविरुतमम् ।।"

अर्थात् गाय इस प्राणिमात्र का आधार है गाय परम
मंगल है। गोरसपदार्थ परम अत्र एवं देवताओं का उत्तम
हविर्द्रव्य है।

इस पुराण को समस्त भारतीय विद्या का विश्वकोश कहना
अतिशयोक्ति नहीं है। राजनीति, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र, अलंकारशास्त्र, व्याकरण, छंदःशा्र, कल्पविद्या, मंत्रविद्या, मोहिनीविद्या, वृक्षवैद्यक, अश्वैद्यक औषधि आदि विषयों की भी चर्चा है। इसी कारण कहते हैं, "आग्नेये हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः" । अग्निपुराण में सभी विद्याओं का प्रतिपादन हुआ है।
                💐💐 संस्कृत विश्वकोश💐💐
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