अश्वघोष
महाकवि अश्वघोष
अश्वघोष- एक बौद्ध महाकवि । इनके जीवन-संबंधी अधिक
विवरण प्राप्त नहीं होते। इनके 'सौंदरनेद' नामक महाकाव्य के
अंतिम वाक्य से विदित होता है कि इनकी माता का नाम
सुवर्णाक्षी तथा निवास-स्थान का नाम साकेत था । 'महाकवि' के
अतिरिक्त, ये 'भदन्त', 'आचार्य', 'महावादी' आदि उपाधियों से भी
विभूषित थे उपाधियों की पुष्टि होती है।
इनके ग्रंथों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ये जाति के ब्राह्मण
रहे होंगे। इनकी रचनाओं का प्रधान उद्देश्य है बौद्ध
धर्म के विचारों को काव्य के परिवेश में प्रस्तुत कर, उनका
जनसाधारण के बीच प्रचार करना। अश्वघोष का व्यक्तित्व
बहुमुखी है। इन्होंने समान अधिकार के साथ काव्य एवं
धर्मदर्शन विषयक ग्रंथों का प्रणयन किया है। इनके नाम पर
प्रचलित ग्रंथों का परिचय इस प्रकार है :-
(1) वज्रसूची- इसमें वर्ण-व्यवस्था की आलोचना कर
सार्वभौम समानता के सिद्धांत को अपनाया गया है कतिपय विद्वान इसे अश्वघोष की कृति मानने में संदेह प्रकट करते हैं।
(2) महायान- श्रद्धोत्पाद शास्त्र- यह दार्शनिक प्रंथ है।
इसमें विज्ञानवाद एवं शून्यवाद का विवेचन किया गया है।
(3) सूत्रालंकार या कल्पनामंडितिका- सूत्रालंकार की मूल
प्रति प्राप्त नहीं होती। इसका केवल चीनी अनुवाद मिलता
है जो कुमारजीव नामक बौद्ध विद्वान् ने पंचम शती के प्रारंभ में
किया था इस ग्रंथ में धार्मिक एवं नैतिक भावों से पूर्ण
काल्पनिक कथाओं का संग्रह है।
(4) बुद्धचरित- यह एक प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसमें
भगवान बुद्ध का चरित्र, 28 सर्गों में वर्णित है रघुवंश और
बुद्धचरित में यत्र तत्र साम्य है।
(5) सौंदरनंद- यह भी महाकाव्य है। इसमें भगवान बुद्ध
के अनुज नंद का चरित्र वर्णित है।
(6) शारिपुत्र-प्रकरण-में प्राप्त होता है। इसमें मौद्गल्यायन एवं
शारिपुत्र को बुद्ध द्वारा दीक्षित किये जाने का वर्णन है।
इनकी समस्त रचनाओं में बौद्धर्म के सिद्धांतों की झलक
दिखाई देती है। बुद्ध के प्रति अटूट श्रद्धा तथा अन्य धर्मों
के प्रति सहिष्णुता, इनके व्यक्तित्व की बहुत बड़़ी विशेषता
है। इनका व्यक्तित्व एक यशस्त्री महाकाव्यकार का है। इनकी
कविता में श्रृंगार, करुण, एवं शांतरस की वेगवती धारा अकाध
यह एक नाटक है जो खंडित रूप गति से प्रवाहित होती है।
अश्वघोष, सम्राट् कनिष्क के समसामयिक थे। अतः इनका
स्थिति-काल ई. प्रथम शती है। बौद्ध धर्म के प्रंथों में ऐसे
अनेक तथ्य प्राप्त होते हैं, जिनके अनुसार ये कनिष्क के
समकालीन सिद्ध होते हैं। चीनी परंपरा के अनुसार अश्वघोष
बौद्धों की चतुर्थ संगीति या महासभा में विद्यमान थे। यह सभा
काश्मीर के कुंडलवन में कनिष्क द्वारा बुलाई गई थी।
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