उदयनाचार्य

उदयनाचार्य एक सुप्रसिद्ध मैथिल नैयायिक। इनका जन्म

दरभंगा से 20 मील उत्तर कमला नदी के निकटस्थ मंगरौनी नामक ग्राम में एक संभ्रांत ब्राह्मण-परिवार में हुआ था।

'लक्षणावली' नामक अपनी कृति का रचना-काल इन्होंने 906 शकाब्द दिया है। इनके अन्य ग्रंथ हैं- न्यायवार्तिक-तात्पर्य-टीका-परिशुद्धि, न्यायकुसुमांजलि तथा आत्मतत्व-विवेक । इन ग्रंथों की रचना इन्होंने बौद्ध दार्शनिकों द्वारा उठाये गए प्रश्नों के उत्तर-स्वरूप की थी। इन्होंने 'प्रशस्तपाद-भाष्य' (वैशेषिकदर्शन का ग्रंथ) पर 'किरणावली' नामक व्याख्या लिखी है। इसमें भी इन्होंने बौद्ध-दर्शन का खंडन किया है। 'न्याय-कुसुमांजलि'

भारतीय दर्शन की श्रेष्ठ कृतियों में मानी जाती है और

उदयनाचार्य की यह सर्व श्रेष्ठ रचना है।

ईश्वर के अस्तित्व के लिये बौद्धों से विवाद के समय,

अनुमांन-प्रमाण से ईश्वर का अस्तित्व सिद्ध नहीं कर पाने पर,एक ब्राह्मण और एक श्रमण को लेकर वे एक पहाडी पर चले गये दोनों को वहां से नीचे धकेल दिया। गिरते हुए

ब्राह्मण चिल्लाया- 'मुझे ईश्वर का अस्तित्व मान्य है', तो श्रमण चिल्लाया 'उसे मान्य नहीं। ब्राह्मण बच गया, श्रमण की मृत्यु हो गई परंतु उदयनाचार्य पर हत्या का आरोप लगा।इस पर उदयन पुरी के जगन्नाथ मंदिर में जाकर भगवान् के दर्शन की प्रार्थना करने लगे उस समय मान्यता थी कि भगवान् पुण्यवान् लोगों को ही दर्शन देते हैं। तीसरे दिन भगवान् ने स्वप्न में आकर कहा- काशी जाकर स्वयं को जला कर प्रायश्चित्त करो, उसके बाद ही मेरा दर्शन हो सकेगा।उसके अनुसार उदयनाचार्य ने अग्नि को देह अर्पित किया पर मरते समय उन्होंने कहा-


ऐश्वर्यमदमत्तः सन् मामवज्ञाय वर्तसे।

प्रवृत्ते बौद्धसंपाते मदधीना तव स्थितिः।।


अर्थः- भगवन्, ऐश्वर्य के मद में आप मेरा धिक्कार कर

रहे हैं, पर बौद्धों का प्रभाव बढ़ने पर तो आपका अस्तित्व

मेरे अधीन ही था।

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