भट्ट तौत
भट्ट तौत - अभिनवगुप्ताचार्य के गुरु। "काव्यकौतुक" नामक
काव्य-शास्त्रविषयक ग्रंथ के प्रणेता। इस ग्रंथ में इन्होंने शांतरस
को सर्वश्रेष्ठ रस सिद्ध किया है। "अभिनवभारती' के अनेक
स्थलों में अभिनवगुप्त ने भट्ट तौत के मत को "उपाध्यायाः"
या "गुरवः" के रूप में उद्धृत किया है। उनके उल्लेख से
विदित होता है कि भट्ट तौत ने नाट्य-शास्त्र की टीका भी
लिखी थी। भट्ट तौत का रचना काल 950 ई. से 980 के
बीच माना जाता है। मोक्षप्रद होने के कारण, इनके मतानुसार,
शांतरस सभी रसों में श्रेष्ठ है।
अभिनवगुप्त ने इनका स्मरण "अभिनवभारती" तथा
"ध्वन्यालोक-लोचन" में श्रद्धापूर्वक किया है। नाट्यशास्त्र-विषयक
इनकी गंभीर मान्यताएं भी उद्धत की गई हैं। शान्त रस के
विवरण को मूल पाठ की मान्यता देना, रस की अनुकरणशीलता
का विरोध, काव्य एवं नाट्य में रस-प्रतिपादन आदि विषयों
पर, इनके अपने सिद्धान्त हैं। अपने समय के वे प्रख्यात
नाट्यशास्त्रीय व्याख्याता- आचार्य माने जाते थे। इनके
"काव्यकौतुक" पर अभिनवगुप्त ने विवरण भी लिखा था।
दुर्भाग्य से ये दोनों ग्रंथ अप्राप्य है। हेमचन्द्र ने "काव्यकौतुक"
से तीन पद्य उद्धृत किये है। इससे इस ग्रंथ के अस्तित्व को
प्रामाणिक आधार मिलता है। भट्ट तौत का समय 10 वीं
शती का पूर्वार्ध रहा होगा, क्योंकि अभिनव गुप्त का काल
10 वीं शती के उत्तरार्ध से 11 वीं शती के पूर्वार्ध तक
माना जाता है।
अभिनवगुप्त ने अपने व्याख्यान सन्दर्भो में कीर्तिधर, .
भट्टगोपाल, भागुरि, प्रियातिथि, भट्टशंकर आदि आचायों का
भी उल्लेख किया है परन्तु इनके विषय में अधिक जानकारी नहीं है।
रसनिष्पनि की प्रक्रिया का विवेचन, भट्ट तौत ने इस प्रकार
किया है :- "काव्य का विषय श्रोता के आत्मसात् होने पर
वह प्रत्यक्ष होने की संवेदना होती है तथा उसमें रसनिष्पत्ति
होती है। इस पर शंकुक द्वारा उठाये गये आक्षेपों का भट्ट
तीत ने निवारण किया है।
क्षेमेंद्र, हेमचंद्र, सोमेश्वर आदि संस्कृत साहित्यकार, भट्ट
तौत के मतों का अपने-अपने ग्रंथों में उल्लेख करते हैं।
अभिनवगुप्त के विचारों पर भट्ट तौत के मतों का प्रभाव
परिलक्षित होता है।
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