आनंदवर्धन
आनंदवर्धन
आनन्दवर्धन- काश्मीर के निवासी । समय 9 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध । प्रसिद्ध काव्यशास्त्री व ध्वनि-संप्रदाय के प्रवर्तक।काव्यशास्त्र के विलक्षण प्रतिभासंपतन्न व्यक्ति। ध्वन्यालोक जैसे असाधारण ग्रंथ के. प्रणेता । 'राजतरंगिणी' में इन्हें काश्मीर नरेश अवंतिवर्मा का सभा-पंडित बताया गया है-
मुक्ताकणः शिवस्वामी कविरानन्दवर्धनः।
प्रथां रत्नाकराश्चागात् साम्राज्येऽवन्तिवर्मणः।। (5-4) ।
-मुक्ताकण, शिवस्वामी, आनंदवर्धन एवं रत्नाकर अवंतिवर्मा के साम्राज्य में प्रसिद्ध हुए।
अवंतिवर्मा का समय 855 से 884 ई. तक माना जाता है। आनंदवर्धन द्वारा रचित 5 ग्रंथ- विषमबाणलीला, अर्जुनचरित,देवीशतक, तन्लालोक और ध्वन्यालोक। सर्वाधिक महत्तवपूर्ण ग्रंथ 'ध्वन्यालोक' में ध्वनि-सिद्धांत का विवेचन किया गया है, और अन्य सभी काव्यशास्त्रीय मतों का अंतर्भाव उसी में कर दिया गया है। देवीशतक नामक ग्रंथ (श्लोक 110) में, इन्होंने अपने पिता का नाम 'नोण' दिया है। हेमचन्द्र केकाव्यानुशासन में भी इनके पिता का यही नाम आया है।
आनन्दवर्धन ने प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति के ग्रंथ प्रमाण-विनिश्चय' पर 'धमोत्तमा' नामक टीका भी लिखी है।हरिविजय नामक प्राकृत काव्य के भी ये प्रणेता हैं।
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