वास्तु शास्त्र गंध रस वर्ण प्लव भूमि परीक्षण के चार प्रकार

तत्र भूमिपरीक्षणे वराहः -

क्षेत्रमादौ परीक्ष्येत गन्धवर्णरसप्लवैः ।
सुमध्वाज्यान्नपिशितं गन्धं विप्रानुपूर्वकम् ।।१४।

सितेषद्रक्तहरितकृष्णवर्णा यथाक्रमात् ।॥
मधुरं कटुकं तिक्तं काषायरससन्निभम् ॥१५ ।

गृहनिर्माण के लिए सर्वप्रथम भूमिपरीक्षण आवश्यक है, आचार्य वराहमिहिर के अनुसार. गन्ध, वर्ण, रस व प्लब, ये चार विधि परीक्षण हेतु निर्दिष्ट हैं । विवरण निम्न है।

१- गन्य-परीक्षा-

ब्राह्मण हेतु मधुगन्धा, 
क्षत्रिय के लिए घृतगन्धा, 
वैश्य के लिए अन्नगन्धा
तथा शूद्र के लिए रक्तगन्धा भूमि सुखदायिनी है।

२. वर्ण-परीक्षा-

बाह्मण के लिए श्वेत, 
क्षत्रिय के लिए रक्त, 
वैश्य के लिए पीत, 
शुद्र के लिए कृष्ण (काली) भूमि प्रशस्त मानी गयी है।

३. रस-परीक्षा-

बाह्मण के लिए मधुर, 
क्षत्रिय के लिए कडुआ, 
वैश्य के लिए तिक्त (नीम की तरह)
 एवं शुद्र के लिए कषाय स्वाद की भूमि प्रशस्त है।

४. प्लव-एरीक्षा-
भूमि का ढलान ईशान, पूर्व और उत्तर की ओर हो, वह सभी वर्ण वालों के लिए श्रेष्ठ होती है। अन्य दिशाओं अर्थात् पश्चिम, दक्षिण व आग्रेय, नैर्ऋत्य व वायव्य में ढालू हो तो हानिकारक जानना चाहिए।
पानी का जिस दिशा में बहाव हो, उसी दिशा की वह भूमि प्लव होगी॥१४-१५ ॥

अत्यन्तवृद्धिदं नृणामीशानप्रागुदकप्लवम् ।
अन्य दिक्षुप्लवं तेषां शश्वदत्यन्त हानिदम् ॥4 ।

 जिस भूमि का ढलान ईशान, पूर्व और उत्तर की ओर हो, वह सभी वर्ण वालों के लिए श्रेष्ठ होती है। अन्य दिशाओं अर्थात् पश्चिम, दक्षिण व आग्रेय, नैर्ऋत्य व वायव्य में ढालू हो तो हानिकारक जानना चाहिए।


भूमिपरीक्षणोऽन्यप्रकारः-
तत्रारलिमितं गर्त खनित्वाऽन्तःप्रपूरयेत् ।
प्रातर्दष्टे जले वृद्धिः समं पंके ब्रणे क्षय: ॥१७ ॥।

भवन निर्माण हेतु यथानिर्दिष्ट स्थान पर एक हाथ लम्बा, एक हाथ चौड़ा व एक हाथ गहरा गड्ढ़ा खोदकर सायंकाल जल से भर दे, प्रातः निरीक्षण के समय खाते में जल है तो उत्तम, कीचड़ मात्र से मध्यम, फटा ( दरार) हो, तो अधम (निषिद्ध) भूमि है। ॥१७ ॥


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