नान्दी

🌻🌻 नान्दी संस्कृत नाटकों का एक पारिभाषिक शब्द है। जिसका सामान्य अर्थ है-मंगलाचरण। भारतीय संस्कृति में कार्यारम्भ में मङ्गलाचरण की प्रथा रही है। इसीलिए प्रायः सभी नाटककार भी अपने नाटक के आरम्भ में नान्दी पाठ करते हैं। आचार्य विश्वनाथ जी ने साहित्यदर्पण में नान्दी का लक्षण इस प्रकार दिया है

आशीर्वचनसंयुक्ता स्तुतिर्यस्मात्प्रयुज्यते। 

देवद्विजनृपादीनां तस्मान्नान्दीति संज्ञिता॥

अर्थात् किसी रचना के आरम्भ में देवताओं, ब्राह्मणों एवं राजादि की स्तुति से युक्त तथा आशीर्वाद प्राप्ति की इच्छा वाले मांगलिक वचनों को नान्दी कहते हैं। इसे सुनकर देवता लोग आनन्दित होते हैं ; इसलिए यह नान्दी कहलाती है।नान्दी का प्रयोग प्रथम अंक के आरम्भ में ही होता है।


Comments

Popular posts from this blog

ईशावास्योपनिषद 18 मंत्र

महाकवि दण्डी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व जीवन-चरित-

भर्तृहरि की रचनाएँ