मालतीमाधव

  🌼मालतीमाधव🌼

 भवभूति के इस- नाटक में मालती एवं माधव के प्रेम विवाह की काल्पनिक कथा वर्णित है। मालवी नाटक की नायिका तथा माधव नायक है। इसमें 10 अंक हैं तथा रूपक के दस भेदों में से यह प्रकरण नामक विधा के अन्तर्गत आता है। इस नाटक की संक्षिप्त कथा वस्तु इस प्रकार है-भूरिवसु और देवरात क्रमश: पद्मावती और विदर्भ के राजमन्त्री थे। उन्होंने परस्पर यह प्रण किया था कि वे अपने पुत्र-पुत्रियों का परस्पर विवाह करेंगे अर्थात् यदि भूरिवसु के पुत्र होता है और देवरात के पुत्री तो देवरात अपनी पुत्री का विवाह भूरिवसु के पुत्र से करेगा यदि इसके विपरीत होता है तो भूरिवसु अपनी पुत्री का विवाह देवरात के पुत्र से करेगा। समय आने पर देवरात के पुत्र और भूरिवसु के पुत्री हुई। भूरिवसु अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपनी पुत्री मालती का विवाह देवरात के पुत्र माधव से करना चाहते थे, परन्तु राजा का साला नन्दन से विवाह करने के लिए लालायित था। राजा का समर्थन भी उसे प्राप्त था। माधव का एक मित्र मकरन्द है तथा मालती की सखी नन्दन की बहन मदयन्तिका है। ये दोनों भी एक दूसरे को प्रेम करते हैं। मालती और माधव एक शिव मन्दिर में मिलते हैं। उधर मदयन्तिका को मकरन्द एक सिंह से बचाता है। मकरन्द की वीरता देखकर मदयन्तिका माधव के मित्र मकरन्द के प्रति आकृष्ट हो जाती है। उधर राजा मालती का विवाह नन्दन से करवाने के लिए तैयार हैं। माधव मालती को पाने के लिए श्मशान पर तन्त्र-सिद्धि कर रहा है। वहाँ उसे एक स्त्री की चीख सुनायी पड़ती है। वह चीख का अनुसरण करता है तो देखता है कि एक तान्त्रिक अघोरघण्ट और उसकी शिष्या कपालकुण्डला मालती की चामुण्डा के लिए बलि देने का प्रयास कर रहे हैं। माधव अघोरघण्ट की हत्या करके मालती को बचा लेता है। तभी मालती को ढूँढते हुए राजा के सैनिक श्मशान पर पहुँचते हैं और मालती को अपने साथ ले जाते हैं। मालती और नन्दन के विवाह की तैयारी की जाती है। परन्तु भूरिवसु की हितैषिणी तापसी कामन्दकी चतुराई से नन्दन का विवाह मकरन्द से हो जाता है। साथ ही कामन्दकी मालती और माधव का विवाह शिवमन्दिर में सम्पन्न करवा देती है। उधर प्रथम मिलन यानि सुहागरात के अवसर पर मकरन्द नन्दन को पीट देता है। मार खाकर नन्दन अपने कक्ष से चला जाता है। भाई की पिटाई की बात सुनकर नन्दन की बहन अपनी भाभी को समझाने उसके कक्ष में जाती है परन्तु वहां अपने प्रेमी मकरन्द को पाकर वह उसके साथ भाग जाती है परन्तु सैनिक मकरन्द को पकड़ लेते हैं। यह सुनकर माधव मालती को छोड़कर अपने मित्र मकरन्द की सहायता के लिए चल पड़ता है। मौके का लाभ उठाकर अघोरघण्ठ की शिष्या कपालकुण्डला अपने गुरु की हत्या का बदला लेने के लिए मालती का अपहरण करके उसे श्रीपर्वत पर ले जाती है। दूसरी ओर सैनिकों के साथ मकरन्द तथा माधव का भयानक युद्ध होता है। उनकी वीरता देखकर राजा उन्हें छोड़ देता है। अब माधव मकरन्द के साथ मालती की खोज में विन्ध्य पर्वत की ओर निकल जाता है। मार्ग में कामन्दकी की शिष्या सौदामिनी बतलाती है कि मालती मेरी कुटिया में सुरक्षित है। मालती के मिलने की सूचना मकरन्द भूरिवसु और मदयन्तिका को देता है। मालती-माधव के मिलन के पश्चात् मकरन्द और मदयन्तिका का विवाह सम्पन्न हो जाता है।

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